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Chaitra Navratri 2023: चैत्र नवरात्रि के दौरान इस तरह से करें दुर्गा सप्तशती का पाठ, इन नियमों का पालन जरूरी

Chaitra Navratri 2023, Durga Saptashati Path: 22 मार्च से चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) प्रारंभ होने जा रहे हैं. मान्यता है कि इन दिनों दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से व्यक्ति की मनोकामना जल्द पूरी होती है.

Chaitra Navratri 2023: चैत्र नवरात्रि की शुरूआत हो चुकी है. मान्यता है कि इन दिनों दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से व्यक्ति की मनोकामना जल्द पूरी होती है. लेकिन, दुर्गा सप्तशती का पाठ अगर सही समय पर किया जाए तो माता रानी की विशेष कृपा प्राप्त होती है

तीन चरित्रों में है दुर्गा सप्तशती का पाठ

दुर्गा सप्तशती में 13 अध्याय हैं, जिनको तीन चरित्रों में बांटा गया है। हर अध्याय में मां भगवती की महिमा और उनके रूपों के बारे में वर्णन किया गया है. दुर्गा सप्तशती का प्रथम चरित्र में मधु कैटभ वध कथा, मध्यम में महिषासुर का संहार और उत्तर चरित्र में शुम्भ-निशुम्भ वध और सुरथ एवं वैश्य देवी मां से मिले वरदान का विवरण है.

दुर्गा सप्तशती पाठ का महत्व पुराणों के अनुसार, भगवान शिव ने माता पार्वती को यह उपाय बताया था. उन्‍होंने माता पार्वती से कहा कि जो अर्गला, कालक और कवच का का पाठ करते हैं, उन्हें पुण्य फल की प्राप्ति होती है और संपूर्ण दुर्गा सप्तशती के पाठ का लाभ भी मिलता है. मान्यतानुसार, कुंजिका स्त्रोत के सिद्ध किए हुए मंत्र को कभी किसी का अहित करने के लिए नहीं प्रयोग करना चाहिए. ऐसा करने से उस व्यक्ति का ही अहित हो सकता है.

दुर्गा सप्तशती पढ़ते वक्त इन नियमों का पालन करें

दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के दौरान शुद्धता (Purity) का पालन करना बेहद जरूरी है. इसलिए स्नान आदि करके साफ वस्त्र पहकर ही पाठ करें. कुशा के आसन या ऊन के बने आसन पर बैठकर ही पाठ करें. साथ ही पाठ करते वक्त हाथों से पैर का स्पर्श न करें.

नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती के पाठ से पहले और बाद में नर्वाण मंत्र ”ओं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे” का जाप करना (Mantra jaap) जरूरी होता है.

अगर संस्कृत भाषा में दुर्गा सप्तशती के पाठ का उच्चारण करने में कठिनाई हो रही हो तो इसे हिंदी में किया जा सकता है. लेकिन जो भी पढ़ें उसे सही और स्पष्ट बोलें.

कम समय में ऐसे करें दुर्गा सप्तशती का पाठ

कम समय में दुर्गा सप्तशती का संपूर्ण लाभ पाने के लिए सबसे पहले कवच, कीलक और अर्गला स्त्रोत का पाठ करना होता है. फिर कुंजिका स्त्रोत का पाठ किया जाता है. पंडित लोग बताते हैं कि इस विधि से दुर्गा सप्तशती का पाठ करने पर संपूर्ण पाठ का फल प्राप्‍त होता है.

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