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Vande Mataram 150 Years : स्वतंत्रता संग्राम के जीवनदायिनी गीत ‘वंदे मातरम’ को गाना हर भारतीय के लिए क्यों नहीं है जरूरी?

Vande Mataram 150 Years : वंदे मातरम गीत की जब बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने रचना की थी, तो शायद उन्हें भी यह अनुमान नहीं रहा होगा कि यह गीत इतना सफल होगा कि यह पूरे भारत की आत्मा बन जाएगा. इस गीत ने भारत को मां भारती के रूप में चित्रित किया और उसकी स्तुति कर लोगों के मन में राष्ट्रवाद की ऐसी भावना जागृत कर दी, जिसने अंग्रेजों को परेशान कर दिया. शायद यह पहली बार हुआ होगा कि भारत देश को मां के रूप में चित्रित कर, लोगों को भावनात्मक रूप से जागृत किया गया होगा. वंदे मातरम गीत के प्रकाशन के 150 वर्ष 7 नवंबर 2025 को पूरे हो गए हैं.

Vande Mataram 150 Years : भारत के लिए जीवनदायिनी गीत वंदे मातरम ने अपने 150 वर्ष पूरे कर लिए हैं. इस मौके पर दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम में साल भर के एक कार्यक्रम की शुरुआत हुई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वंदे मातरम सिर्फ शब्द नहीं संकल्प है. यह गीत मां भारती की आराधना करता है और हर भारतीय के अंदर आत्मविश्वास का भाव जगाता है. वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने का जश्न पूरे देश में वर्ष भर तक मनाया जाएगा. वंदे मातरम गीत का इतिहास काफी स्वर्णिम रहा है और इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक तरह से प्राण फूंके थे, आइए याद करते हैं, उन पलों को.

वंदे मातरम गीत कब प्रकाशित हुआ था?

वंदे मातरम गीत 7 नवंबर 1875 को पहली बार सामने आया था, यानी इसी दिन यह गीत साहित्यिक पत्रिका ‘बंगदर्शन’ में प्रकाशित हुआ था. हालांकि वंदे मातरम गीत का उस वक्त सार्वजनिक रूप से गायन नहीं हुआ था, लेकिन गीत का प्रकाशन हुआ था. इस गीत में भारत को माता के रूप में वर्णित कर उसकी स्तुति की गई है.

वंदे मातरम गीत के लेखक कौन हैं?

वंदे मातरम गीत के लेखक बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय हैं. वे बंगाली भाषा के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कवि और लेखक थे. उन्होंने वंदे मातरम गीत के जरिए देश में राष्ट्रवाद की भावना का संचार किया. उनकी रचना ने लोगों को एकजुट कर दिया और वे राष्ट्रवाद की भावना से ओत-प्रोत हो गए. बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की रचना वंदे मातरम को राष्ट्रवादी आंदोलन में मील का पत्थर माना जाता है.

क्या है वंदे मातरम का इतिहास?

वंदे मातरम का प्रकाशन 1875 में हुआ, उसके बाद बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने इस गीत को अपने उपन्यास ‘आनंद मठ’ में शामिल कर लिया. इस उपन्यास का प्रकाशन 1882 में हुआ था. इस गीत को संगीतबद्ध गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने किया था. इस गीत को संस्कृत और बांग्ला के मिश्रण के रूप में लिखा गया है. गीत में भारत माता को देवी के रूप में चित्रित किया गया है और उसकी स्तुति की गई है. गीत में भारत माता को शौर्य, मातृत्व और शक्ति का संगम बताया गया है.

वंदे मातरम गीत की स्वतंत्रता आंदोलन में क्या थी भूमिका?

वंदे मातरम गीत ने स्वतंत्रता आंदोलन में प्रेरणा गीत बनकर काम किया. इस गीत ने लोगों को जगाया और उनमें उत्साह भरा. इसे जागृति मंत्र के तौर पर देखा जाता था. पहली बार 1896 में रवींद्रनाथ टैगौर ने सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में इसे गाया और उसके बाद इसकी प्रसिद्धि देशभर में हो गई. 1905 में जब बंगाल का विभाजन हुआ, तो यह गीत क्रांति की जननी बन गया और वंदे मातरम क्रांति का जयघोष बन गया. इसकी लोकप्रियता इस कदर बढ़ी कि अंग्रेजों ने इस गीत के गाने पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन तबतक यह गीत लोगों के मन में रच बस गया था और वंदे मातरम को नारा बनाकर सैकड़ों क्रांतिकारी फांसी के फंदे पर लटक गए. महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ ठाकुर, अरविंद घोष, लाला लाजपत राय जैसे नेताओं ने वंदे मातरम गीत को देशप्रेम और एकता का स्रोत बताया था.

वंदे मातरम को कब मिला राष्ट्रीय गीत का दर्जा?

वंदे मातरम को आजादी के बाद 1947 में राष्टीय गीत का दर्जा दिया गया. संविधान सभा ने जन गण मन को राष्ट्रगान और वंदे मातरम को राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया. इस गीत के दो पद अधिकारिक रूप से मान्य हैं, जिसमें भारत की सुंदरता, शक्ति और समृद्धि का वर्णन है.

वंदे मातरम गीत से जुड़ा विवाद क्या है?

वंदे मातरम गीत भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की प्राणवायु भले ही रहा हो, लेकिन बदलते दौर में इसे हिंदू राष्ट्रवाद की भावना से जोड़ दिया गया. कवि ने इस गीत में मां भारती को देवी दुर्गा के रूप में चित्रित किया है और उनकी स्तुति की है. इस बात पर इस्लामिक दृष्टिकोण के नेताओं को आपत्ति है और वे कहते हैं कि वे गीत का सम्मान करते हैं, लेकिन अपने धार्मिक कारणों से इसका गायन नहीं कर सकते हैं, क्योंकि यह इस्लाम के एकेश्वरवाद की धारणा से मेल नहीं खाता है. संविधान सभा में भी जब बहस हुई थी तो इसे राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार ना करके राष्ट्रगीत के रूप में स्वीकार इसलिए किया गया, ताकि दूसरे धर्म के लोगों की धार्मिक भावना आहत ना हो. विवाद तब बढ़ा, जब वंदे मातरम के गायन को सबके लिए अनिवार्य करने की मांग उठी. अदालत ने कहा है कि इसका गायन अनिवार्य नहीं है और स्वेच्छा से लोग इसका गायन कर सकते हैं.

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वंदे मातरम गीत के दो पद क्या हैं, जिसे संविधान सभा ने स्वीकार किया?

वन्दे मातरम्।
सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्,
शस्यश्यामलाम् मातरम्।
शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनिम्,
फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनिम्,
सुहासिनिम् सुमधुर भाषिणिम्,
सुखदां वरदां मातरम्।
वन्दे मातरम्।

वंदे मातरम गीत को कितने वर्ष हो गए?

वंदे मातरम गीत को 150 वर्ष हो गए.

वंदे मातरम गीत के 150 वर्ष के कार्यक्रम का उद्‌घाटन कौन करेगा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

वंदे मातरम 150 क्या है?

वंदे मातरम गीत के प्रकाशन के 150 वर्ष पूरे होने को वंदे मातरम 150 कहा जा रहा है.

वंदे मातरम का इतिहास क्या है?

वंदे मातरम गीत को संविधान सभा ने 24 जनवरी 1950 को राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया था.

वंदे मातरम गीत का थीम क्या है?

वंदे मातरम गीत में भारत देश को मां मान कर उसकी आराधना की जाताी है.

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Rajneesh Anand
Rajneesh Anand
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक. प्रिंट एवं डिजिटल मीडिया में 20 वर्षों से अधिक का अनुभव. राजनीति,सामाजिक मुद्दे, इतिहास, खेल और महिला संबंधी विषयों पर गहन लेखन किया है. तथ्यपरक रिपोर्टिंग और विश्लेषणात्मक लेखन में रुचि. IM4Change, झारखंड सरकार तथा सेव द चिल्ड्रन के फेलो के रूप में कार्य किया है. पत्रकारिता के प्रति जुनून है.

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