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अगर इन बातों का नहीं रखा ख्याल तो चेक क्लोनिंग गिरोह आपके बैंक खाते को भी कर सकते हैं खाली…

सीटीसी में चेक के स्थान पर क्लीयरिंग हाउस की ओर से इसकी इलेक्ट्रॉनिक फोटो अदाकर्ता शाखा को भेज दी जाती है. इसके साथ इससे संबंधित जानकारी भेज दी जाती है. लिहाजा चेक की प्रोसेसिंग की तमाम प्रक्रियाएं आसान और सुविधानजक हो जाती हैं. लेकिन खाताधारक के चेक को चेक क्लियरिंग करने के काम के लिए सभी बैंकों ने निजी एजेंसी नियुक्त कर रखी है. ऐसे में अब एजेंसी के काम पर सवाल उठने लगे हैं कि कहीं चेक क्लोनिंग(cheque cloning) के खेल में चेक क्लियरिंग हाउस में काम करने वाले लोगों की संलिप्तता तो नहीं है.

सीटीसी में चेक के स्थान पर क्लीयरिंग हाउस की ओर से इसकी इलेक्ट्रॉनिक फोटो अदाकर्ता शाखा को भेज दी जाती है. इसके साथ इससे संबंधित जानकारी भेज दी जाती है. लिहाजा चेक की प्रोसेसिंग की तमाम प्रक्रियाएं आसान और सुविधानजक हो जाती हैं. लेकिन खाताधारक के चेक को चेक क्लियरिंग करने के काम के लिए सभी बैंकों ने निजी एजेंसी नियुक्त कर रखी है. ऐसे में अब एजेंसी के काम पर सवाल उठने लगे हैं कि कहीं चेक क्लोनिंग के खेल में चेक क्लियरिंग हाउस में काम करने वाले लोगों की संलिप्तता तो नहीं है.

बैंक के कॉल सेंटर से फोन कर मांग लेते हैं चेक की फोटो

बैंक अधिकारियों की मानें, तो क्लोनिंग करने वाले गिरोह के सदस्य बैंक के जुड़े संलिप्त कर्मी से मोबाइल से किसी चेक की फोटो खींच कर मंगा लेते हैं. फिर उस ग्राहक को बैंक का कॉल सेंटर बता कर उनसे फोन पर खाते की जानकारी मांगी जाती है. कोरल ड्रॉ सॉफ्टवेयर की मदद से क्लोन चेक तैयार करते हैं. क्लोन चेक तैयार होने के बाद खाताधारक के बैंक खाते के स्टेटमेंट व फर्जी हस्ताक्षर पता कर लेते हैं. फिर उसी बैंक की किसी शाखा में नया खाता खुलवा कर और खाताधारक के बैंक खाते से पासबुक, चेकबुक और एटीएम कार्ड तक निकाल लेते हैं.

केमिकल का भी सहारा

बैंक से मिली चेक बुक में खाताधारक के नाम, खाता नंबर और एमआइसीआर कोड को केमिकल से मिटा देते हैं. इसके बाद प्रिंटर की मदद से उस पर प्रयोग किये चेक पर खाताधारक का नाम, खाता संख्या और एमआइसीआर कोड डालकर चेक तैयार कर लेते हैं. क्लोनिंग होने के बाद खाताधारक के फर्जी साइन कर किसी भी बैंक में चेक लगाकर कैश दूसरे खाते में ट्रांसफर कर देते हैं. सच्चाई यह है कि असली चेकबुक से ही नकली चेक के टैम्पलेट तैयार किये जाते हैं, जो कभी भी असली ग्राहक तक पहुंचते ही नहीं हैं.

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बैंककर्मी और बीमा एजेंट संदेह के घेरे में

बैंकिंग सेक्टर से जुड़े जानकार की मानें, ताे बैंककर्मी, एलआइसी और जीआइसी एजेंट के जरिये गैंग बैंक में जमा किये गये असली चेक की फोटो हासिल करता है और उसका क्लोन तैयार कर खातेदार के बैंक अकाउंट से पैसे निकाल लेता है. गैंग कोरल ग्राफिक डिजाइनर के जरिये चेकबुक से ब्रांच का नाम और चेक का सीरियल नंबर बदल दिया करते हैं और उसके बाद फर्जी साइन करके इन्हें बैंक में जमा कर रकम निकाल लिया करते हैं.

हाइ वैल्यू क्लीयरिंग

50 हजार रुपये या उससे ज्यादा के चैक को हाइवैल्यू कहा जाता है. हाइ वैल्यू क्लीयरिंग (एचवीसी) से पहले चेक जारी करने वाले को अलर्ट भेजा जाता है. आमतौर पर यह अलर्ट एसएमएस के जरिये भेजा जाता है, लेकिन बहुत बड़ी राशि होने पर ग्राहक को फोन करके बताया जाता है. सहमति मिलने पर ही ऐसे चेक क्लियर किये जाते हैं.

इन बातों को रखना होगा विशेष ख्याल

ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के संयुक्त सचिव डीएन त्रिवेदी ने बताया कि साइबर अपराध और चेक क्लोन के बढ़ते मामले के प्रति हर खाताधारकों के सजग रहने की आवश्यकता है, क्योंकि हर कुछ दिन बाद जालसाजी का ट्रेंड बदल जाता है. इसलिए लोगों को चेक जारी करने के क्रम में इन बातों का विशेष ध्यान रखना होगा.

– चेक जमा करने के बाद अपनी स्लिप को संभालकर रखें.

– चेक खो जाने की स्थिति में शीघ्र बैंक को सूचित करें.

– किसी एजेंट को बीमा राशि या किस्त राशि जमा करने के लिए चेक देने के बजाय नेटबैंकिग का उपयोग करें.

– पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद ही किसी को बड़ी रकम का चेक दें

– चेक जारी करने के बजाय चेक मांगने वाले को ऑनलाइन ट्रांजेक्शन के लिए आग्रह करें

Posted By :Thakur Shaktilochan

Prabhat Khabar News Desk
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