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स्वस्थ मां, सुरक्षित पीढ़ियां

घर-आंगन को गुलजार कर परिवार को आकार देनेवाली माताएं खानदान की पीढ़ियां रचती हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि बाल विवाह, अशिक्षा और बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में कई बार गर्भवती महिलाओं की मौत हो जाती है? कई बार तो जच्चा-बच्चा दोनों को जान गंवानी पड़ती है, लेकिन झारखंड में बेहतर होती स्वास्थ्य सेवाओं और महिलाओं में जागरूकता के कारण अब सुरक्षित संस्थागत प्रसव से मातृ-शिशु मृत्यु दर में तेजी से कमी आयी है.

गुरुस्वरूप मिश्रा

चैत्र नवरात्र में मां के नौ रूपों की पूजा होती है. शक्ति के लिए मां दुर्गा, विद्या के लिए मां सरस्वती और धन के लिए मां लक्ष्मी की आराधना करते हैं, लेकिन खानदान की पीढ़ियों को रचनेवाली मातृशक्ति अपनी मां, बहन व बेटियों के बेहतर स्वास्थ्य को लेकर शायद ही हम सजग रहते हैं. गांव-जवार की हालत तो और चिंताजनक है. बेटे-बेटियों में कम होते फर्क के बीच अपने घर की दुर्गा-लक्ष्मी व सरस्वती के स्वास्थ्य और शिक्षा की अनदेखी कतई न करें. एक गर्भवती के निधन से न केवल बच्चों से उनकी मां का आंचल छीन जाता है, बल्कि पूरा परिवार बिखर जाता है.

सुरक्षित मातृत्व के लिए बाल विवाह रोकिए

देश में बाल विवाह की दर 26.80 फीसदी है. 18 वर्ष से कम उम्र की 21 फीसदी लड़कियां गर्भधारण कर रही हैं. राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4) के अनुसार 38 फीसदी बाल विवाह के साथ झारखंड देश में तीसरे स्थान पर है. राज्य में सर्वाधिक 63.50 फीसदी गोड्डा, जबकि सबसे कम 14.70 प्रतिशत बाल विवाह सिमडेगा जिले में होते हैं. बिटिया की 18 और बेटे की शादी 21 के बाद ही करें.

संस्थागत प्रसव से जच्चा-बच्चा सुरक्षित

वर्ष 2000 में जब झारखंड बना, उस वक्त संस्थागत प्रसव सिर्फ 13.50 फीसदी होते थे. नीति आयोग की हेल्दी स्टेट्स-प्रोग्रेसिव इंडिया रिपोर्ट के अनुसार, 2015-16 में 64.4 फीसदी, जबकि 2017-18 में 88.2 फीसदी संस्थागत प्रसव हुए. पूर्ण टीकाकरण की दर 88.1 फीसदी से बढ़ कर 100 फीसदी हो गयी है.

मातृ-शिशु मृत्यु दर में आयी कमी

वर्ष 2000 में राज्य में मातृ मृत्यु दर प्रति लाख 400 थी, जो घटकर प्रति लाख 165 हो गयी है. शिशु मृत्यु दर प्रति हजार 72 से घटकर 21 हो गयी.

108 एंबुलेंस सेवा बनी वरदान

108 एंबुलेंस सेवा सुदूरवर्ती इलाकों में गर्भवती महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रही है.

पीएम सुरक्षित मातृत्व अवार्ड

वर्ष 2018 में झारखंड को प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अवार्ड दिया गया. मातृत्व मृत्‍यु दर घट कर 208 से 165 हो गयी है, जबकि राष्ट्रीय औसत 130 है. वर्ष 2017 में सबसे निचले पायदान पर रहने वाला झारखंड नौवें स्थान पर आ गया है.

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सुरक्षित मातृत्व के लिए जागरूकता जरूरी : डॉ सुमन दुबे

डॉ सुमन दुबे कहती हैं कि सुरक्षित मातृत्व के लिए लड़की की उम्र 18 साल से कम और 35 से ज्यादा न हो, दो प्रसव के बीच 2 वर्ष या इससे कम का अंतर न हो, गर्भवती महिला कुपोषित या एनीमिया से पीड़ित न हो और महिला का वजन बहुत कम न हो. राज्य की 65 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं. बाल विवाह व कुपोषण के कारण 40 फीसदी महिलाओं को प्रसव व शिशु स्वास्थ्य में दिक्कत होती है. प्रसव के दौरान 2200 महिलाओं की मौत चिंताजनक है.

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कुपोषणमुक्त झारखंड हमारा संकल्प : हेमंत सोरेन

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि कुपोषणमुक्त झारखंड हमारा संकल्प है. सुनहरे 1000 दिन में गर्भावस्था से लेकर दो साल की उम्र तक बच्चे का खास ख्याल रखें. शिशु को पौष्टिक आहार दें. एनीमिया की रोकथाम के लिए आयरनयुक्त आहार लें. बच्चे को दूषित भोजन और पानी न दें. खाना और पानी ढंक कर रखें. भोजन बनाने, खाने से पहले और शौच के बाद हाथ साबुन से जरूर धोयें. किशोरियां माहवारी के दौरान व्यक्तिगत साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें.

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