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क्या विपक्ष जवाब दे पायेगा

सच यह है कि कामगारों का यह विशाल भारत पूरी भारतीय राजनीति के लिए अदृश्य था. यह वर्तमान राजनीति पर एक तीखी टिप्पणी है, जो बताती है कि मौजूदा राजनीतिक दल और नेता आम जन और उनके हालात से कितना कट गये हैं.

नवीन जोशी, वरिष्ठ पत्रकार

naveengjoshi@gmail.com

भारतीय जनता पार्टी के नेता आम तौर पर यह नहीं कहते कि उनसे या उनकी सरकार से भी कोई चूक हो सकती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह तो कतई नहीं. पिछले दिनों दूसरे कार्यकाल का पहला वर्ष पूरा होने पर भी उन्होंने अपनी सरकार की उपलब्धियां ही खूब गिनायीं. एक वर्ष पूरा होने के अवसर पर उन्होंने स्वाभाविक ही उसे पहले कार्यकाल के पांच वर्षों से जोड़ा और कहा कि उपलब्धियां तो पूरे छह साल की देखिए.

शाह ने अपने लेख में यह भी दावा किया था कि भाजपा सरकार ने छह साल साल में (कांग्रेस की) साठ साल की गड़बड़ियों को दुरस्त कर डाला है. यह तेवर शुरू से ही मोदी और शाह की आक्रामक राजनीति का हिस्सा रहा है.

हाल में अमित शाह ने कोरोना महामारी से निपटने के संदर्भ में यह कहकर कि ‘हमसे गलती हुई होगी, हम कहीं कम पड़ गये होंगे, कुछ नहीं कर पाये होंगे…’ अपनी आक्रामक राजनीति को नया आयाम दे दिया. यह वास्तव में अपनी सरकार की कमियां मानने से अधिक विपक्ष पर और हमलावर होना है क्योंकि उन्होंने विपक्ष के सामने चुनौती भी फेंकी- ‘मगर आपने क्या किया? कोई स्वीडन में बात करता है, अंग्रेजी में, देश की कोरोना की लड़ाई लड़ने के लिए, कोई अमेरिका में बात करता है.. आपने क्या किया, यह हिसाब तो जनता को दो जरा…’

स्पष्टत: अमित शाह का हमला कांग्रेस और मुख्य रूप से राहुल गांधी पर है, जिन्होंने इस बीच कुछ विशेषज्ञों से ऑनलाइन बात की और उसे प्रचारित किया. विशेषज्ञों से राहुल की इन वार्ताओं में मोदी सरकार के कतिपय कदमों की, विशेष रूप से आर्थिक पैकेज में नकद राशि की बजाय ऋण देने का ऐलान करने और कामगारों की घर वापसी के कुप्रबंधन की आलोचना हुई थी. शाह का इशारा उसी तरफ था. विपक्ष की तरफ यह सवाल उछाल कर कि ‘आपने क्या किया?’ शाह ने पूरे विपक्ष को खूब घेरा है.

भारतीय राजनीतिक मंच पर पिछले कुछ वर्षों से भाजपा के सामने मुख्य विरोधी दल कांग्रेस समेत संपूर्ण विपक्ष की जो स्थिति है, उसमें आशा कम ही है कि इस सवाल का कोई सटीक जवाब आयेगा. वैसे तो महामारी का संकट हो या सामान्य स्थितियां, कुछ करने का मूल दायित्व सरकार का ही होता है. सवाल भी उसी से किया जाना चाहिए, लेकिन विपक्ष अपने उत्तरदायित्व से कैसे बच सकता है?

कोरोना के कारण लंबी बंदी से लाचार कामगार जिन हालात में वापस लौटने को मजबूर हुए, उस पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं. सरकार अगर इस स्थिति के आकलन और फिर उसे संभालने में चूक कर गयी, तो क्या विपक्ष ने बंदी घोषित होते ही सरकार को आगाह किया था कि कैसी विषम स्थिति आ सकती है?

अगर सरकार यह भांप नहीं सकी थी, तो क्या विपक्ष को पता था कि कितनी बड़ी संख्या में कामगार दूसरे राज्यों में मजदूरी करने जाते हैं और कामबंदी में बिना दिहाड़ी के उनके सामने कैसी विकट स्थिति आ सकती है? सच यह है कि कामगारों का यह विशाल भारत पूरी भारतीय राजनीति के लिए अदृश्य था. यह वर्तमान राजनीति पर एक तीखी टिप्पणी है, जो बताती है कि मौजूदा राजनीतिक दल और नेता आम जन और उनके हालात से कितना कट गये हैं.

आपातकाल दलगत राजनीति के लिए नहीं होता. कोरोना महामारी ऐसा ही कठिन समय है. ऐसे में आशा की जाती है कि सभी दल मिलकर काम करेंगे, जैसा युद्ध काल में होता है. मान लिया कि सरकार ने रणनीति बनाने में विपक्ष को आमंत्रित नहीं किया, लेकिन क्या विपक्ष ने ऐसी पेशकश की? कोई रणनीति सुझायी? प्रधानमंत्री मोदी ने एक बड़े आर्थिक पैकेज का ऐलान किया.

उसकी खूबियों या कमियों की बात अलग, लेकिन जिस कांग्रेस पार्टी के पास मनमोहन सिंह और चिदंबरम जैसे अर्थशास्त्री-राजनेता हैं, क्या उसने कोई वैकल्पिक उपाय पेश किया? सरकार उसे मानती या नहीं मानती, लेकिन मुख्य विरोधी दल का कोई दायित्व बनता था? अमित शाह विपक्ष को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास करके स्वाभाविक ही राजनीति कर रहे हैं, लेकिन राजनीतिक चाल के रूप में ही सही, कांग्रेस या बाकी विपक्ष ने क्या किया? विपक्ष किस ठोस आधार पर जनता के सामने जायेगा?

कोरोना काल ने बहुत असामान्य स्थितियां खड़ी कर दी हैं. आर्थिक चुनौतियां सबसे बड़ी हैं. लॉकडाउन बहुत लंबी नहीं खींची जा सकता थी, इसलिए आर्थिक गतिविधियों को क्रमश: खोला जा रहा है. इसे कैसे बेहतर और सुरक्षित ढंग से खोला जाये? उद्योगों को कामगारों का संकट होगा, उसका क्या उपाय है?

क्या घर लौटे कामगारों के लिए वहीं कुछ लघु उद्योग-धंधे शुरू किये जा सकते हैं, जो गांव-कस्बों को धीरे-धीरे स्वावलंबी बनायें? स्कूलों, शिक्षा संस्थानों की परीक्षाओं का क्या हो कि विद्यार्थियों को राष्ट्रीय स्तर पर एक समान धरातल मिले? ऐसे कई महत्त्वपूर्ण सवाल हैं. क्या विपक्ष इनके बारे मे कुछ ठोस सुझाव पेश नहीं कर सकता?

भाजपा ने कोरोना संक्रमण बढ़ने के दौर में भी बिहार, उड़ीसा और बंगाल के लिए अपना चुनावी अभियान शुरू कर दिया है. अमित शाह इन राज्यों की जनता को ‘वर्चुअल रैली’ से संबोधित कर रहे हैं. राजनीतिक चालों की ही बात करें, तो भी विपक्ष भाजपा से मुकाबले के लिए क्या तैयारियां कर रहा है? विपक्ष की मुख्य समस्या ही यह है कि वह भाजपा के पीछे-पीछे चल रहा है, और दूर-दूर. ऐसा एक भी मुद्दा नहीं रहा है, जिसमें विपक्ष ने मोदी-शाह की जोड़ी को पीछे छोड़ा हो. सरकार की गलतियों को भी वे बड़ा मुद्दा नहीं बना पाते.

सच तो यह है कि भाजपा की अपार सफलता के पीछे विपक्ष के बिखराव और उसकी रणनीतिक असफलता का भी बड़ा हाथ है. राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ही है, जो उसका मुकाबला कर सकती है, लेकिन वह अपना ही घर दुरुस्त नहीं कर पा रही. राज्य सभा के चुनाव होने वाले हैं और गुजरात में उसके विधायक भाजपा में जा रहे हैं. मध्य प्रदेश में वह अपनी सरकार नहीं बचा पायी. लंबे समय से उसके पास पूर्णकालिक अध्यक्ष तक नहीं है. ऐसे में क्या कांग्रेस अथवा विपक्ष अमित शाह को कोई जवाब दे पायेगा?

(ये लेखक के निजी विचार है़)

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