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लॉकडाउन में ऐसे रहें अपने घर में

लंबा समय साथ व्यतीत करने से कुछ समस्याएं भी आने लगती हैं. ऐसे में एक-दूसरे के साथ बातचीत कैसे करनी है, यह बहुत ही अहम है. ज्यादा आदेश-उपदेश न करें.

डॉ राजीव मेहता

उपाध्यक्ष, इंस्टीट्यूट ऑफ साइकियाट्री, सर गंगाराम हॉस्पिटल, नयी दिल्ली

हम इस समय बहुत ही मुश्किल घड़ी से गुजर रहे हैं. कोरोना वायरस से पैदा हुए संकट का मानसिक प्रभाव ऐसे लोगों पर तो है ही, जो पहले से ही बीमार थे या जिन्हें अवसाद, तनाव जैसी मानसिक परेशानियां थीं. लेकिन कुछ ऐसे लोग भी इसके असर में हैं, जिन्हें पहले से कोई मानसिक परेशानी नहीं थी. जो लोग पहले से ही मानसिक तौर पर परेशान थे, उनके लिए दिक्कतें स्वाभाविक तौर पर बढ़ गयी हैं और जिन्हें पहले से जोखिम है, उन्हें पैनिक होना शुरू हो गया है. घबराहट, परेशानी, बुखार जैसे थोड़ी-सी समस्या आने पर मन में ख्याल आने लगता है कि कहीं कोरोना का संक्रमण तो नहीं है.

इसे मेडिकल की भाषा में हाइपोकोन्ड्राइसिस कहते हैं. इसका मतलब है ऐसा लगना कि हमें कोई बीमारी हो गयी है, जिसका कोई इलाज नहीं है. अभी कुछ ऐसा ही होता दिख रहा है. लोगों में भय के कारण लड़ाई-झगड़े भी बढ़ रहे हैं. अगर वे डॉक्टर के पास जाते हैं और वे कहते हैं कि उन्हें कोरोना नहीं है, तो उन्हें डॉक्टर पर भी संदेह होने लगता है कि वह हमारा इलाज नहीं करना चाहता. दूसरे लोग, जिन्हें पहले से कोई बीमारी नहीं है, वे भी थोड़ा भयभीत दिखते हैं.

चारदिवारी के अंदर रहना मुश्किल काम है. कहा जाता है कि नजदीकियां दूरियां बढ़ाती हैं. आपस में बात करने का तरीका कैसा है, यह समझना बहुत जरूरी हो गया है. आप जितना पास रहते हैं, दूसरों में उतनी ही कमियां और खामियां नजर आने लगती हैं. आप सामनेवाले को अपने हिसाब से चलाने की कोशिश करने लगते हैं. फिर टकराव बढ़ने लगता है. बच्चों में भी अभी तेजी से बदलाव आ रहा है. आप बच्चों को घर के भीतर बांधकर नहीं रख सकते हैं. ऐसे में आशंका जतायी जा रही है कि इस संकट के बाद संबंधों में एक हद तक दूराव के मामले बढ़ेंगे. इस दौरान बच्चों की आबादी बढ़ने की संभावना भी है.

वर्तमान और आसन्न समस्याओं से बचने का तरीका यही है कि जिन लोगों को पहले से कोई बीमारी है, वे संयम रखें और अपने डॉक्टर पर विश्वास रखें. जब घबराहट या परेशानी हो, तो अपनी दवाई लें. ज्यादा दिक्कत होने पर वेबसाइट से पता कर सकते हैं कि कोरोना के जो लक्षण हैं, उससे मिल रहे हैं कि नहीं. जानकारी और जांच के लिए सरकारी हेल्पलाइन की मदद ली जा सकती है. सरकार संक्रमण के एक-एक मामले को पकड़ना चाहती है, क्योंकि एक भी संक्रमित व्यक्ति पूरे समुदाय को खतरे में डाल सकता है. इस लॉकडाउन का मकसद ही यही है कि वह हर एक संक्रमित मामले को पहचानना चाहती है. अगर किसी मामले में संदेह होगा, तो उसकी जांच की व्यवस्था की गयी है. अगर टेस्ट नहीं करा रहे हैं, तो इसका मतलब है कि डॉक्टर आपको ठीक कह रहे हैं. डॉक्टर पर पूरा विश्वास करने की जरूरत है.

यह बीमारी उन लोगों के लिए भयावह है, जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कम है यानी जो 60 साल से ऊपर हैं या जो बच्चे 10 साल से कम उम्र के हैं, या फिर जो पहले से ही बीमार हैं. धूम्रपान और शराब जैसी बुरी आदतों को छोड़ने के लिए यह समय बहुत अच्छा है. जिन लोगों को पहले से समस्या नहीं है, वे परेशान न हों. आप घर में सुरक्षित हैं. कुछ लोगों के मन में यह वहम जरूर है कि मुझे कुछ नहीं हो सकता. इसी बेवकूफी में कुछ लोगों ने जनता कर्फ्यू को तोड़ा या लॉकडाउन को लेकर गंभीर नहीं हैं. ऐसे लोगों को विशेष रूप से सावधान रहना चाहिए. अति आत्मविश्वास घातक है. सरकार जो भी बता रही है, वह सोच-समझकर जनता की भलाई के लिए बता रही है. हमें सरकारी निर्देशों का पालन करना चाहिए.

अब घर में रहकर ऐसे कार्यों को निपटायें, जो बहुत दिनों से लंबित हैं. घर की साफ-सफाई कीजिये. गैर-जरूरी सामानों को बाहर निकालिये और घर की साज-सज्जा करें. इसमें दो-तीन दिन निकल जायेंगे. कुछ वक्त घरवालों के साथ बैठकर टीवी देखने में और इनडोर गेम खेलने में गुजारें. चेस, लूडो, कैरम आदि न हों, तो इनके एप डाउनलोड कर लें. चित्रकारी, बागवानी, गीत-संगीत जैसे पुराने शौक को पूरा करें. अपने दिन के समय को बांटकर काम करें. बच्चों को साथ समय बिताना बहुत जरूरी है. बच्चों के पास अधिक ऊर्जा होती है, उनके साथ बात करें, कहानी बनायें, नये-नये खेल खेलें. इनमें बच्चों को भी आनंद आता है. अगर बच्चे 10 साल से ऊपर हैं, तो उन्हें घर के काम में भी लगा सकते हैं. उनकी तारीफ भी करें, इससे उनका मनोबल बढ़ेगा.

लंबा समय साथ व्यतीत करने से कुछ समस्याएं भी आने लगती हैं. ऐसे में एक-दूसरे के साथ बातचीत कैसे करनी है, यह बहुत ही अहम है. ज्यादा आदेश-उपदेश न करें. जब आप बहुत टोका-टाकी करेंगे, तो संबंधों में दरार आयेगी. हर काम में नुक्ताचीनी के बजाय जिंदगी को जीना सीखिये. आप छोटे-छोटे काम की तारीफ कीजिये. अगर आपको काम कराना है, तो कहें, क्या इसे ऐसे किया जाये, क्या यह किया जाये आदि. हर किसी- बच्चे, जीवनसाथी, बुजुर्ग- के साथ सकरात्मकता के साथ पेश आयेंगे, तो समस्या का स्वतः समाधान होता जायेगा.

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