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यूरोप के दौरे पर जयशंकर

विदेश मंत्री की ब्रसेल्स यात्रा तब हो रही है, जब भारत और इयू के बीच मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) को लेकर बातचीत अंतिम चरण में है और इस वर्ष के अंत तक एफटीए होने की पूरी संभावना है. यू

पहलगाम हमले के जवाब में भारत द्वारा शुरू किये गये ऑपरेशन सिंदूर के एक महीने बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर के यूरोप दौरे को यदि कूटनीतिक लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण बताया जा रहा है, तो यह अकारण नहीं है. इस दौरान वह फ्रांस, यूरोपीय संघ और बेल्जियम के नेताओं से द्विपक्षीय संबंधों के विभिन्न आयामों पर विचार-विमर्श करने के अलावा आतंकवाद के खिलाफ भारत के जीरो टॉलरेंस अभियान पर बात करेंगे और उम्मीद है कि वह यूरोपीय नेताओं को सीमापार आतंकवाद से निपटने में नयी दिल्ली के दृढ़ नजरिये से भी अवगत करायेंगे. फ्रांस भारत का सदाबहार दोस्त और सबसे विश्वसनीय रणनीतिक साझेदारों में से है. दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी के 25 वर्ष पूरे हो चुके हैं. फ्रांस में वरिष्ठ नेतृत्व, थिंकटैंक और मीडिया प्रतिनिधियों के साथ बैठक के अलावा विदेश मंत्री मार्सिले में भूमध्यसागरीय रायसीना वार्ता के उद्घाटन संस्करण में भी भाग लेंगे, जो रणनीतिक चर्चाओं का एक नया मंच है. ऐसे एक मंच पर जयशंकर की उपस्थिति, जाहिर है, यूरोप को आतंकवाद-विरोध समेत विभिन्न मुद्दों पर भारत के नजरिये के बारे में बताने में काफी मददगार साबित होगी.

ऐसे ही, पेरिस में फ्रांस के विदेश मंत्री से उनकी वार्ता इसी महीने कनाडा में होने वाली जी-7 बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों के बीच होने वाली मुलाकात की जमीन तैयार करेगी. यूरोपीय संघ (इयू) के उपराष्ट्रपति के साथ जयशंकर की रणनीतिक वार्ता को भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. सिर्फ यही नहीं कि इयू के साथ भारत के रिश्ते पिछले कुछ वर्षों में मजबूत हुए हैं, बल्कि विगत फरवरी में इयू के आयुक्तों की पूरी टीम भारत के पहले दौरे पर भी आयी थी. विदेश मंत्री की ब्रसेल्स यात्रा तब हो रही है, जब भारत और इयू के बीच मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) को लेकर बातचीत अंतिम चरण में है और इस वर्ष के अंत तक एफटीए होने की पूरी संभावना है. यूरोप दौरे के अंतिम चरण में विदेश मंत्री बेल्जियम जायेंगे, जहां आपसी बातचीत व्यापार और निवेश, हरित ऊर्जा, प्रौद्योगिकी, फार्मास्युटिकल्स और हीरा क्षेत्र में संबंधों को मजबूत करने पर केंद्रित होगी. कुल मिलाकर, विदेश मंत्री की यह यात्रा मूल यूरोपीय देशों के साथ भारत की रणनीतिक साझेदारी को गहरा करने के अलावा विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग की संभावनाओं का पता लगाने के लिए है.

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