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Thursday, March 28, 2024

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विश्व जल सम्मेलन के महत्वपूर्ण संकल्प

हमें यदि इस तीसरे विश्व युद्ध से बचना है, तो धरती और प्रकृति के प्रति स्नेह जाग्रत करना होगा. यह काम भारतीय समाज सदैव करता रहा है.

जल पुरुष राजेंद्र सिंह

रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता

jalpurushtbs@gmail.com

बीते 22 मार्च को संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय न्यूयॉर्क में आयोजित विश्व जल सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि यह पानी पर एक सम्मेलन से अधिक है. यह आज की दुनिया पर एक सम्मेलन है, जहां इसे सबसे महत्वपूर्ण संसाधन के दृष्टिकोण से देखा जाता है.

ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति रहमोन ने प्रस्तावित किया कि तीसरे दुशांबे जल दशक सम्मेलन 2028 में 2018 से 2028 तक के अंतरराष्ट्रीय दशक की कार्रवाई के अंत को चिह्नित करने के लिए आयोजित किया जायेगा तथा प्रतिनिधियों को यह जानकारी दी जायेगी कि जल कार्रवाई के अगले चरण कैसे दिख सकते हैं. उन्होंने ‘हमारे सामूहिक प्रयासों’ की क्षमता पर बल दिया. इस विश्व जल सम्मेलन में भारत सरकार की ओर से केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के साथ तीस सदस्यों का प्रतिनिधि मंडल शामिल हुआ.

इस सम्मेलन में दो नारों की गूंज सुनाई दी- ‘दुनिया को सूखे-बाढ़ मुक्ति की युक्ति सिखाने का काम संयुक्त राष्ट्र करे’ और ‘नीर-नारी-नदी नारायण हैं, नारायण हैं, नारायण हैं.’ नारे रोकने का निवेदन करती स्थानीय पुलिस से भारतीय दल ने कहा कि यह भारत के दिल से निकली हुई आवाज है क्योंकि भारत के लोग नीर, नारी और नदी को बहुत सम्मान करते हैं, इसीलिए इन्हें नारायण कहते हैं.

पहला विश्व जल सम्मेलन 1977 में आयोजित हुआ था. इसके 46 वर्ष बाद दूसरा सम्मेलन 2023 में न्यूयॉर्क में आयोजित हुआ. इस वर्ष के आयोजन का प्रतिनिधित्व प्रकृति और धरती के जख्म भरने वाले भारतीय प्रतिनिधि मंडल ने किया. सूखे-बाढ़ से मुक्ति की युक्ति खोजने वाले इस दल के साथ अन्य महाद्वीपों के प्रतिनिधि भी जुड़े. सम्मेलन से पहले 20-21 मार्च को विश्व जन आयोग, तरुण भारत संघ और जल बिरादरी आदि संगठनों के संयुक्त तत्वाधान में सम्मेलन हुआ.

इसमें दुनिया के उन चुनिंदा प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिन्होंने वर्षा-जल संरक्षण कर हरियाली बढ़ायी और भूजल का पुनर्भरण किया, जिससे नदियों का पुनर्जीवन हुआ और समुदायों को धरती और प्रकृति के जख्म भरने हेतु काम करने की प्रेरणा मिली. इस प्रक्रिया में प्रकृति और मानवता के प्रति बराबर सम्मान भी बढ़ा.

हमें यदि इस तीसरे विश्व युद्ध से बचना है, तो धरती और प्रकृति के प्रति स्नेह जाग्रत करना होगा. यह काम भारतीय समाज सदैव करता रहा है. इसलिए भारतीयों ने इस बार भी यह तय किया है कि हम दुनिया में प्यार का वातावरण बनायेंगे और प्रकृति के प्रेम से प्रकृति को पुनर्जीवित करने के लिए जल से शुरुआत करेंगे. जल एकमात्र पदार्थ है, जिससे जीवन की शुरुआत होती है. लेकिन आधुनिक विज्ञान ने जल से स्नेह बढ़ाने पर काम नहीं किया.

उसी का परिणाम है कि जल को केवल बाजार की वस्तु बना दिया गया है. सम्मेलन में सुखाड़-बाढ़ विश्व जन आयोग का जल चक्र पुनर्जनन न्यूयॉर्क संकल्प, 2023 पारित हुआ, जिसका संपादित कथ्य इस प्रकार है- ‘मैं जल हूं, आपके सामने स्वस्थ जल चक्र बनाने का संकल्प करता हूं. हम सब जल से ही बने हैं. आपसे इस हेतु संवाद, सह अभ्यास और सहयोग की अपील कर रहा हूं. हमारे जीवन काल में ही हमारा प्रकृति से संबंध बनाकर, संवर्धन करने के लिए, अपने जीवन को लचीला और समग्र बनाकर, सब जीवों के साथ ‘जियो और जीने दो’ हेतु वातावरण निर्माण करूंगा.

समता और सादगी ही पुनर्जनन का मूल सिद्धांत है. मैं इस पृथ्वी को सुखाड़ और बाढ़ मुक्त करने का संकल्प लेता हूं.’ संकल्प में सुखाड़-बाढ़ विश्व जन आयोग को संयुक्त राष्ट्र एवं सरकारों व अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ तथा पूरी दुनिया के लोगों के साथ मिलकर सुखाड़-बाढ़ मुक्ति की युक्ति खोज कर ‘सुखाड़-बाढ़ मुक्त’ दुनिया बनाने का आह्वान भी किया गया.

यह रेखांकित किया गया कि ‘हमारे जीवनकाल में ही जल चक्र टूट गया है. हमारा समाधान पुनर्जनन है. हम इन दस प्रमुख बदलावों को पुनर्जनन के लिए प्रोत्साहित करते हैं- 1.जलचक्र की मानव केंद्रित संकीर्ण समझ के परे व्यापक मानव एवं प्रकृति केंद्रित अवधारणाओं की समझ की ओर बढ़ना होगा. 2.सामुदायिक ज्ञान प्रणाली एवं आधुनिक विज्ञान, कला और तकनीक की समग्र समझ के आधार पर विकसित ज्ञान और विद्या का उपयोग करेंगे.

3.मानवता और प्रकृति के आपसी संबंधों की समझ प्रदान करने वाली शिक्षा (विद्या) प्रणाली को बढ़ावा देंगे, जो युवाओं को पृथ्वी के पुनर्जनन के कार्य के लिए प्रेरित करेगी. 4.पानी के दुरुपयोग को रोककर विवेकपूर्ण विश्वस्त की भूमिका निभाते हुए जल का कुशलतापूर्वक सदुपयोग करेंगे. 5.पानी के व्यापारीकरण का विरोध करते हुए पानी के सामुदायिकरण को स्थापित करेंगे.

यहां समुदाय का मतलब सभी प्राणियों के समुदाय से है. 6.लापरवाही और उदासीनता के परे जाकर संगठित होकर जलचक्र के पुनर्जनन के लिए काम करेंगे. 7.हर जलाशय, जल स्रोत एवं नदी प्रणाली एक अद्वितीय जैव विविधता से परिपूर्ण परितंत्र है. इस बात का ध्यान रखते हुए जलाशयों के साथ व्यवहार करेंगे. 8.भावी पीढ़ियों को ध्यान में रखते हुए हम पानी का अल्पकालीन से लेकर जीवन भर की प्रतिबद्धताओं तक जल के उपयोग को एक विश्वस्त की भूमिका में रहते हुए निभायेंगे.’

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