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नये मुक्त व्यापार समझौते की अहमियत

हम उम्मीद करें कि भारत का निर्यात बढ़ाने के मद्देनजर जिस तरह ऑस्ट्रेलिया व संयुक्त अरब अमीरात के साथ किये गये एफटीए लाभप्रद सिद्ध हो रहे हैं.

10 मार्च को भारत और चार यूरोपीय देशों के समूह यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसिएशन (इएफटीए) ने निवेश और वस्तुओं एवं सेवाओं के दोतरफा व्यापार को बढ़ावा देने के लिए मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर हस्ताक्षर किये हैं. इसे व्यापार और आर्थिक समझौता (टीइपीए) कहा गया है. एफटीए के तहत ईएफटीए ने अगले 15 साल में भारत में 100 अरब डॉलर के निवेश की प्रतिबद्धता जतायी है. यह भारत का ऐसे समूह के साथ पहला व्यापार करार है, जिसमें विकसित देश शामिल हैं. इएफटीए के सदस्य देशों में आइसलैंड, स्विट्जरलैंड, नॉर्वे और लिकटेंस्टाइन शामिल हैं. समझौते के 14 अध्यायों में वस्तुओं के व्यापार, उत्पत्ति के नियम, शोध एवं नवाचार, बौद्धिक संपदा अधिकार (आइपीआर), सेवाओं का व्यापार, निवेश प्रोत्साहन और सहयोग, सरकारी खरीद, व्यापार में तकनीकी बाधाएं और व्यापार सुविधा शामिल है. इससे भारत में 10 लाख प्रत्यक्ष नौकरियां निर्मित होंगी. इस समझौते में निवेश पर अधिक जोर दिया गया है.
इन चार यूरोपीय देशों से होने वाले भारत के कुल व्यापार में स्विट्जरलैंड की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत से अधिक है. समझौते से डिजिटल व्यापार, बैंकिंग, वित्तीय सेवा, फार्मा, टेक्सटाइल जैसे सेक्टर में इन देशों के बाजार में भारत की पहुंच आसान होगी. बदले में भारत इन देशों की विभिन्न वस्तुओं के लिए आयात शुल्क कम करेगा. कृषि, डेयरी, सोया व कोयला सेक्टर को इस व्यापार समझौते से दूर रखा गया है, साथ ही पीएलआई स्कीम से जुड़े सेक्टर के लिए भी भारतीय बाजार को नहीं खोला गया है. यह भी महत्वपूर्ण है कि ग्रीन व विंड एनर्जी, फार्मा, फूड प्रोसेसिंग, केमिकल्स के साथ उच्च गुणवत्ता वाली मशीनरी के क्षेत्र में ईएफटीए देश भारत में निवेश करेंगे, जिससे इन सेक्टर में हमारा आयात भी कम होगा और भारतीय उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने में मदद भी मिलेगी. समझौते में स्विट्जरलैंड के शामिल होने से भारत में लोकप्रिय उसके चॉकलेट, घड़ी व बिस्कुट कम कीमत पर मिलेंगे. समझौते के मुताबिक इन वस्तुओं पर वर्तमान आयात शुल्क को अगले सात साल में चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना है. हर साल शुल्क में थोड़ी-थोड़ी कटौती होती रहेगी. इस समझौते से इएफटीए देशों को वृद्धि के लिए भारत के बड़े बाजार तक पहुंच मिली है.

भारतीय कंपनियां भी अपनी आपूर्ति शृंखला में विविधता लाने का प्रयास करेंगी. भारत और इएफटीए देश समझौते पर 15 साल से भी अधिक समय से बातचीत कर रहे थे. साल 2013 के अंत में वार्ता रुक गयी थी. साल 2016 में बातचीत फिर शुरू हुई और अब यह समझौता धरातल पर आया है. यह व्यापार समझौता मुक्त, निष्पक्ष और समानता वाले व्यापार के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है. इसके जरिये भारत और इएफटीए देश आर्थिक रूप से परस्पर पूरक बन जायेंगे. ज्ञातव्य है कि इएफटीए देश यूरोपीय संघ (इयू) का हिस्सा नहीं हैं. यह मुक्त व्यापार को बढ़ाया देने के लिए एक अंतर सरकारी संगठन है. इसकी स्थापना उन देशों के लिए एक विकल्प के रूप में हुई थी, जो यूरोपीय समुदाय में शामिल नहीं होना चाहते थे. इस समय भारत वैश्विक नेतृत्वकर्ता देश के रूप में उभरता दिख रहा है. ऐसे में कई विकसित और विकासशील देश भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते के लिए उत्सुक हैं. भारत सबसे तेज अर्थव्यवस्था के साथ विकास की डगर पर बढ़ रहा है. भारत में दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी, सबसे अधिक कौशल प्रशिक्षण के अभियान, बढ़ता सर्विस सेक्टर, बढ़ते निर्यात और अर्थव्यवस्था के बाहरी झटकों से उबरने की क्षमता नये भारत के निर्माण की बुनियाद बन सकती है. प्रवासी भारतीयों द्वारा प्रति वर्ष अधिक धन भेजने के साथ भारत को तकनीकी विकास के लिए मदद बढ़ी है. ये सारी बातें भारत के लिए नये एफटीए की नयी संभावनाओं की बड़ी आधार हैं.


यह भी महत्वपूर्ण है कि मुक्त व्यापार समझौते भारत को निम्न मध्यम से उच्च मध्यम आय वाला देश बनाने में मददगार होंगे. पिछले दिनों वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत आर्थिक, वित्तीय तथा संरचनात्मक सुधारों के कारण 2031 तक उच्च मध्यम आय वाला देश बन जायेगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष 2023-24 में भारत की सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) वृद्धि दर 7.6 प्रतिशत और 2024-25 में 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है. भारत फिलहाल 3.6 लाख करोड़ डॉलर जीडीपी के साथ दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. इसके आगे अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी हैं. वर्ष 2030-31 तक भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 6.7 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच जायेगा और उस समय तक भारत की प्रति व्यक्ति आय भी बढ़कर 4,500 अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जायेगी तथा भारत उच्च-मध्यम आय वाले देशों के समूह में शामिल हो जायेगा. वर्तमान वैश्विक मंदी और इस्राइल-फिलिस्तीन युद्ध, रूस-यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर भारत के लिए यह सबक उभरकर सामने आया है कि निर्यात बढ़ाने के लिए इएफटीए के बाद अब अन्य विभिन्न देशों के साथ एफटीए वार्ताओं की गति बढ़ायी जाए. साथ ही, देश में विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज) की नयी भूमिका, मेक इन इंडिया अभियान की सफलता और उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआइ) योजना के उपयुक्त क्रियान्वयन पर पूर्ण ध्यान देकर निर्यात के संभावित मौकों का फायदा उठाया जाए.
हम उम्मीद करें कि भारत का निर्यात बढ़ाने के मद्देनजर जिस तरह ऑस्ट्रेलिया व संयुक्त अरब अमीरात के साथ किये गये एफटीए लाभप्रद सिद्ध हो रहे हैं. उसी तरह इएफटीए देशों के साथ किया गया नया समझौता भी निर्यात व वैश्विक व्यापार बढ़ाने में मील का पत्थर साबित होगा. इससे देश से निर्यात बढ़ेंगे और बड़े पैमाने पर रोजगार के नये अवसरों का निर्माण होगा. इएफटीए के बाद अब भारत द्वारा ओमान, ब्रिटेन, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, इस्राइल, भारत-गल्फ कंट्रीज काउंसिल और यूरोपीय संघ के साथ भी एफटीए को शीघ्रतापूर्वक अंतिम रूप दिया जा सकेगा. देश मुक्त व्यापार समझौतों की ताकत के साथ आगे बढ़ेगा. ऐसे में देश वैश्विक आर्थिक संगठनों की रिपोर्टों के मुताबिक वर्ष 2027 में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के अनुमान के मुताबिक वर्ष 2031 तक दुनिया का उच्च मध्यम आय वाला देश बनने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगा. साथ ही, देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देशों के अनुरूप तैयार की गयी विकसित भारतः 2047 की विस्तृत कार्य योजना के एजेंडे पर आठ से नौ फीसदी विकास दर के साथ विकसित भारत की राह पर आगे बढ़ेगा.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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