Tejas : दुबई में आयोजित एयर शो में भारत के तेजस मार्क1 लड़ाकू विमान की दुर्घटना में एक अनुभवी और बहादुर पायलट की शहादत ने देशवासियों को गहरी ठेस पहुंचाई है. पर दुर्घटना के बारे में अटकलें लगाने से देश का, तेजस को उड़ाने वाले वीरों का और उसके उत्पादन में जुटी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स का कोई हितसाधन नहीं होगा. वर्ष 1963 में भारतीय वायुसेना से जुड़े मिग 21 विमान के लिए अच्छे विकल्प की खोज के बाद 1980 में तेजस मल्टीरोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के निर्माण का फैसला गहरी विवेचना और अध्ययन का परिणाम था. उत्पादन की दीर्घकालीन तैयारी के बाद इसकी प्रथम टेस्ट उड़ान 2001 में भरी जा सकी. उसके बाद भी भारतीय वायुसेना में प्रवेश मिलने में इसे काफी समय लगा.
वर्ष 2016 में सक्रिय (ऑपरेशनल) रूप से अपनाये जाने के बाद मार्च, 2024 में पहला तेजस विमान दुर्घटनाग्रस्त होने तक इसका रिकॉर्ड बेदाग था. उसके बाद भी वायुसेना में सक्रिय रूप से इसका उपयोग होता रहा है. अतः तेजस का इतिहास संदिग्ध नहीं है. एयर शो के दौरान दुर्घटनाग्रस्त होने की यह पहली घटना नहीं है. इंग्लैंड का हॉकर हंटर टी7 जैसा सफल विमान उसी देश के एयर शो में दुर्घटनाग्रस्त हुआ. वर्ष 2002 में यूक्रेन के स्कनीलिव एयर शो में यूक्रेनी वायुसेना का सुखोई जैसा प्रतिष्ठित विमान दर्शकों की भीड़ के बीच आ गिरा था.
दुबई एयर शो में तेजस के पायलट ने जो कलाबाजियां दिखाईं, वे किसी भी विमान की क्षमता और विमानचालक के कौशल की चरम सीमा तक परीक्षा लेती हैं. ऐसी ही चरम कलाबाजी थी बैरेल रोल जैसा वह उद्यम, जिसके अंत में कम ऊंचाई से गहरी डाइव लगाते हुए हमारा विमान रेतीली जमीन से टकरा कर नष्ट हो गया. दुर्घटना के समय मौसम साफ था, आकाश की मध्य और ऊंची परतों में दर्शनीयता अच्छी थी, पर धरती की सतह के निकट धूल आदि के कारण तिरछी दर्शनीयता कम थी. ऐसे में, दुर्घटना के कई कारण हो सकते हैं-जैसे, विमान के इंजन में उस किस्म की खराबी, जैसी एयर इंडिया के बोईंग में हुई थी या फ्लाई बाई वायर तकनीक में प्रयुक्त होने वाली कंट्रोल सरफेस का ठीक तरह काम न करना. या पायलट से गलती होना. बहुत अनुभवी पायलट भी दिग्भ्रमित होकर गलती कर सकता है.
डाइव करते विमान में चरम निगेटिव जी (गुरुत्वाकर्षण) के कारण पायलट का खून उसके मस्तिष्क की तरफ भागता है, वैसी स्थिति में उसका दिग्भ्रमित होकर क्षितिज की पहचान न कर पाना संभव है और वह विमान को ऊपर खींचने में क्षण भर की देर कर सकता है, खासकर जब वह धरती की सतह के बहुत निकट आ चुका हो. या फिर विमान के कल-पुर्जों में शत्रु द्वारा छेड़छाड़ हो सकती है.
वैज्ञानिक ढंग से जांच करने वाली एजेंसी द्वारा विमान के एफडीआर (फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर या ब्लैक बॉक्स) और सीवीआर (कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर) का परीक्षण पूरा होने के बाद ही कुछ कहना उचित होगा. पर इसमें शक नहीं कि इस दुर्घटना ने वायुसेना के भविष्य से संबंधित कठिनाइयों की तरफ भी ध्यान आकर्षित किया है. जो भारतीय वायुसेना अपेक्षित 42 स्क्वॉड्रनों की जगह अभी 29 स्क्वॉड्रनों से काम चला रही है और जिसमें 97 तेजस विमानों को शामिल करने का बहुत बड़ा आदेश दिया जा चुका है, उसके अनिश्चित भविष्य को यह दुर्घटना खूब रेखांकित करती है.
तेजस चौथी और पांचवीं पीढ़ी के बीच का विमान है, पर तेजस एमके1ए और उसकी आने वाली विकसित किस्मों से पांचवीं पीढ़ी के विमानों वाली क्षमता की उम्मीद लगायी जा रही है. इतनी बड़ी संख्या में तेजस एमके1 का निर्माण अमेरिका से लाये जीइ एफ 404आइएन 20 इंजन की आपूर्ति पर निर्भर है. भारत ने अब 113 अतिरिक्त इंजनों का आदेश भी दे दिया है, जिनकी आपूर्ति 2027 में शुरू होगी. एचएएल (हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड) तो अपनी निर्माण क्षमता तेजी से बढ़ा रहा है, लेकिन जीइ कंपनी इंजन की आपूर्ति बेहद निराशानजनक ढंग से कर पा रही है. आगे चलकर तेजस एमके2 के लिए और अधिक सशक्त जीइ ए 414 इंजन की जरूरत होगी. ट्रंप के तेवर देखते हुए इतने महत्वपूर्ण विमानों के लिए अमेरिका पर इतनी निर्भरता खतरनाक साबित हो सकती है.
यह तथ्य है कि जिस भारत की इसरो जैसी संस्था चंद्रयान, गगनयान और उपग्रहों का निर्माण कर सकती है, जिसकी डीआरडीओ संस्था ड्रोन और ब्रह्मोस जैसे प्रक्षेपास्त्र बना सकती है, वह जेट विमानों के इंजन बनाने में अभी तक विफल रहा है. भारत में निर्मित कावेरी इंजन बहुत ऊंचाई पर समुचित शक्ति उत्पादन नहीं कर पा रहा है. हमारी प्रयोगशालाएं अति विकसित लड़ाकू विमानों के इंजन के लिए उपयुक्त धातु बनाने में अभी तक अक्षम रही हैं. ऐसे में, समय आ गया है कि निजी क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण कंपनियों को जेट इंजन बनाने के लिए प्रेरित किया जाये और इस काम में सहायता देने को तैयार विदेशी कंपनियों से हरसंभव सहायता ली जाये. अंतरिम काल में रूस की एसयू 57 विमान देने की पेशकश पर भी गंभीरता से विचार किया जाये. तेजस विमान का एयर शो में प्रदर्शन विदेश में निर्यात की आशा से प्रेरित था. बेहतर होगा कि पहले हम अपने लड़ाकू विमान उद्योग को वैश्विक स्तर का बनाने पर जोर दें.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

