MiG 21 : महाराणा प्रताप के शौर्य का गुणगान करने वाले लोग उनके वफादार, बुद्धिमान और साहसी घोड़े चेतक को भला कैसे भूल सकते हैं, जो ‘रण बीच चौकड़ी भर-भर कर निराला’ बन गया था. भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानचालक योद्धाओं की 1963 से अब तक की पूरी चार पीढ़ियां जब 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों और 1998 के कारगिल अभियान में मिग 21 फाइटर जेट की उपलब्धियों के विषय में सोचती हैं, तब उन्हें वह राणा प्रताप के घोड़े जैसा ही पराक्रमी लगता है.
इसी 26 सितंबर को चंडीगढ़ में मिग 21 विमान को अंतिम सलाम देते हुए वहां उपस्थित कई पीढ़ियों के पायलट, वर्तमान वायुसेनाध्यक्ष और पिछले छह वायुसेनाध्यक्षों का भावविह्वल हो जाना स्वाभाविक ही था, लेकिन आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि इसकी घातक दुर्घटनाओं में लगभग दो सौ पायलटों के शहीद हो जाने के बाद उड़न ताबूत नाम से कुख्यात हो जाने के बाद भी इस विमान से वायुसेना का मोहभंग कभी नहीं हुआ. पूरे छह दशकों तक वायुसेना की आक्रामक और आत्मरक्षात्मक प्रणालियों का मेरुदंड बनकर मिग 21 ने भारत की सैन्य शक्ति में अपूर्व योगदान दिया. विस्थापित करने योग्य विमानों के सर्वथा अभाव के चलते भारतीय वायुसेना ने अपने जिस विमान को पूरे बासठ वर्षों तक किसी न किसी जुगाड़ से सक्रिय बनाये रखा, उसकी दुर्घटनाओं की समग्र विवेचना करने से पहले वायुसेना में मिग 21 की जीवनगाथा पर एक नजर डालना आवश्यक बन जाता है.
वर्ष 1963 में भारतीय वायुसेना में शामिल होने वाला मिग 21 अपने समय का बहुत विकसित सुपरसोनिक ऑल वेदर फाइटर विमान था. उसकी अधिकतम गति 2,175 किलोमीटर प्रतिघंटा थी. निर्माताओं के अनुसार, यह विमान 2,400 घंटों तक की कुल उड़ान अपने चालीस वर्ष के जीवनकाल में भर सकता था. सबसे पहले मिग 21 टाइप 74 फिशबेड नाम वाले रूस में निर्मित छह विमान आये थे. वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय उनकी केवल एक स्क्वॉड्रन थी. हवाई आत्मसुरक्षा किरदार के लिए टाइप 74 को दो के-13 मिसाइलों से भी सुसज्जित किया गया, जो इंफ्रा रेड होमिंग तकनीक से शत्रु के विमान को नष्ट कर सकते थे.
चूंकि तत्कालीन पाकिस्तानी फाइटर जेट एफ 86 और एफ 104 स्टारफाइटर में मिसाइल और गन, दोनों थे, ऐसे में, हमारे मिग 21 में भी 23 एमएम गन लगायी गयी. टाइप 77 के रूप में मिग 21 को 500 किलोग्राम तक के बम ले जाने की क्षमता भी दी गयी. वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में पूर्वी पाकिस्तान के गवर्नर के निवास पर हमला कर मिग 21 ने इतिहास रच दिया, जब हमले से घबराये गवर्नर साहब ने भागकर एक होटल में शरण ली और पूर्वी पाकिस्तान में पाक सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया.
आगे चलकर मिग 21 को टाइप 751 पैनोरमिक कैमरे एवं अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से सुसज्जित किया गया, ताकि शत्रु के ठिकानों और गतिविधियों की जासूसी करने में उसका इस्तेमाल हो सके.
वर्ष 1984 से 1987 के बीच इस क्षमता का उपयोग स्कार्दू के इलाके में किया गया, जिसका सुपरिणाम 1998 के कारगिल ऑपरेशन में देखने को मिला. इस बीच विकसित मिग 21 बिस और मिग 21 बाइसन विमानों का निर्माण भारत में किया गया. बाइसन में कोपयो डोपलर रडार का समावेश कर उसे बीवीआर अर्थात बियोंड विजुअल रेंज की क्षमता देने से उसकी मारक क्षमता काफी बढ़ गयी. लेकिन 2012 तक वायुसेना के 872 मिग 21 विमानों में से 482 दुर्घटनाग्रस्त हो गये और इनमें 179 पायलट शहीद हो गये. अब देखें कि इतने आधुनिक और उपयोगी विमान में इतनी जानलेवा दुर्घटनाएं आखिर हुईं कैसे. मिग 21 में नये शस्त्रास्त्र और इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियां जुड़ने से कॉकपिट में पायलट के सहूलियत से काम करने की जगह संकुचित होती गयी. पायलट को सामने का नजारा देखने में असुविधा होती थी, अतः बर्ड हिट की संख्या बढ़ती गयी. इसके लिए हेलमेट माउंटेड साइटिंग सिस्टम का विकास किया गया, लेकिन विमान की लैंडिंग स्पीड काफी अधिक थी.
दुर्भाग्य से जेट ट्रेनर विमान के बाद सेवा में आने वाले पायलट को मध्यम लैंडिंग स्पीड वाले किसी और विमान की जगह सीधे इसी विमान पर ऑपरेशनल प्रशिक्षण लेना पड़ता था. उधर करेला नीम चढ़ गया, जब तत्कालीन सोवियत संघ के विघटन के बाद इस विमान के पुर्जे रूस से मिलने में बेहद दिक्कत होने लगी और दुर्घटनाग्रस्त विमानों के कल-पुर्जे निकाल कर कैनिबालइजेशन पद्धति से विमानों की मरम्मत करना आवश्यक हो गया. एक तरफ वायुसेना में अपेक्षित स्क्वॉड्रनों की संख्या 42 की जगह 31 रह गयी, दूसरी तरफ राजनीतिक उठापटक के कारण नये लड़ाकू विमान लाने का काम ठप्प पड़ा रहा.
राफेल विमान की खरीद वर्षों तक इन्हीं घटिया राजनीतिक लड़ाइयों का शिकार बनी रही. ऐसे में चालीस वर्ष की आयु लेकर पैदा होने वाला मिग 21 बासठ वर्ष की प्रौढ़ावस्था तक भारतीय वायुसेना का संबल बना रहा और 2,400 घंटे के उसके कामकाजी जीवन को खींच-तान कर 4,000 घंटों तक घसीटा गया. इन तथ्यों का खुलासा होने के बाद किस देशवासी की जुबान पर उड़न ताबूत शब्द आ सकता है? भावभीनी विदाई को छोड़कर भला और किस रूप में इस आधुनिक चेतक को श्रद्धांजलि दी जा सकती है?
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

