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टीकाकरण में तेजी की जरूरत 

फेक न्यूज बड़ी चुनौती है. यह समाज में भ्रम और तनाव भी पैदा कर देती है. सोशल मीडिया की खबरों के साथ सबसे बड़ा खतरा यह भी है कि इसके लिए जिम्मेदार व्यक्ति का पता लगाना मुश्किल है.

डॉ ललित कांत पूर्व प्रमुख, महामारी एवं संक्रामक रोग विभाग

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर)

अन्य देशों की तुलना में भारत में कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए टीकाकरण की प्रक्रिया जल्दी शुरू हुई, जिसका श्रेय हमारे वैज्ञानिकों और देश के टीका उद्योग को जाता है. उन्होंने एक साल के भीतर कोविड टीके तैयार कर इस्तेमाल के लिए उपलब्ध करा दिया है. अभी जिन दो टीकों को लगाया जा रहा है, उनमें से ‘कोविशील्ड’ को विदेश में विकसित किया गया, लेकिन उसका उत्पादन भारत में भारतीय कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा हो रहा है,

जबकि भारत बायोटेक का टीका ‘कोवैक्सीन’ देश में ही विकसित हुआ और बड़े पैमाने पर उसका उत्पादन हो रहा है. हमें अपने देश के वैज्ञानिकों के साथ अन्य देशों में टीकों पर काम कर रहे विशेषज्ञों का आभारी होना चाहिए, क्योंकि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि कोई महामारी फैले और सालभर के अंदर उसका टीका बना लिया जाए. बीते दो महीनों में मुख्य रूप से स्वास्थ्यकर्मियों और वैसे लोगों को टीका दिया गया है, जो महामारी के विरुद्ध लड़ाई में पहली कतार में हैं.

इस वर्ष जुलाई तक तीस करोड़ लोगों को टीका देने का लक्ष्य रखा गया है. एक मार्च से शुरू हो रहे दूसरे चरण के टीकाकरण अभियान में ऐसे लोगों को टीका लगाया जायेगा, जिनकी उम्र साठ साल से अधिक है. इसके अलावा 45 साल से अधिक के उन लोगों को भी टीका लगेगा जो पहले से किसी ऐसी बीमारी से ग्रसित हैं, जो कोरोना संक्रमण की स्थिति में जानलेवा हो सकती हैं. दूसरे चरण में, सरकारी टीकाकरण केंद्रों के साथ-साथ निजी टीकाकरण केंद्रों में जाकर भी टीका लगवाया जा सकेगा. हालांकि निजी केंद्रों में टीका लगवाने के लिए शुल्क का भुगतान करना होगा.

टीकाकरण का जो लक्ष्य रखा गया है, उसके हिसाब से मौजूदा गति को बढ़ाने की जरूरत है. धीमी गति होने की एक वजह तो यह है कि इतने व्यापक स्तर पर पहले कभी टीका देने का कार्यक्रम नहीं चलाया गया है. अभी तक बच्चों को ही विभिन्न टीके दिये जाते रहे हैं. वयस्कों में केवल गर्भवती महिलाओं को टीका जाता है. वयस्कों को इतने बड़े पैमाने पर टीका देने का हमारा पहला अनुभव है. दूसरी वजह शायद यह है कि जो टीकाकरण से संबंधित एप बनाया गया है, उसमें कुछ दिक्कतें है, जिन्हें सुधारा जाना चाहिए.

पिछल डेढ़-दो माह में हमारे पास पर्याप्त अनुभव है कि क्या कमियां रहीं और क्या बाधाएं आयीं. इनके आधार पर आगामी चरणों में तेजी आने की उम्मीद है. अब हमें कुछ बातों का ध्यान रखना होगा. एक, वैक्सीन की उपलब्धता में कमी नहीं आनी चाहिए. दूसरी बात यह है कि इतने व्यापक स्तर पर सरकारें टीकाकरण नहीं कर सकती हैं. ऐसे में निजी क्षेत्र और स्वयंसेवी संगठनों की सहायता बहुत महत्वपूर्ण है. यह सराहनीय है कि एक मार्च से शुरू हो रहे अभियान में निजी अस्पतालों में भी टीके लगाये जायेंगे और सरकार ने टीके की कीमत को निर्धारित कर दिया है.

निजी टीकाकरण केंद्र अधिकतम 250 रुपये तक एक खुराक के लिए ले सकेंगे. टीके के प्रति लोगों में हिचकिचाहट होने से भी टीकाकरण की गति धीमी है. हिचकिचाहट का एक कारण यह भी है कि कुछ लोग संक्रमण के मामलों में बहुत कमी होने से टीके लगाने की जरूरत नहीं समझ रहे हैं. ऐसे में हमें जागरूकता के प्रसार को भी प्राथमिकता देनी होगी. लोगों को यह बताना जरूरी है कि संक्रमण में गिरावट है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि संक्रमण नहीं है.

यदि हम दिल्ली का उदाहरण लें, तो सीरो सर्वे से पता चलता है कि लगभग पचास प्रतिशत लोगों में कोरोना संक्रमण की प्रतिरोधक क्षमता विकसित हुई है. इसका अर्थ यह है कि ये लोग संक्रमित हो चुके हैं. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जो पचास प्रतिशत बचे हैं, वे संक्रमण के शिकार हो सकते हैं. वायरस को जब भी मौका मिलेगा, वह हमलावर हो जायेगा. देश के कुछ हिस्सों में पिछले दिनों संक्रमण के मामलों की संख्या में बढ़त हुई है. जहां भी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होगी, कोरोना वायरस फैलने लगेगा. ऐसी स्थिति में बचाव के उपायों- मास्क लगाना, हाथ धोना व समुचित दूरी रखना- पर अमल करना जारी रखना होगा तथा अवसर मिलते ही टीका लेना होगा.

इस संदर्भ में हमें वायरस के नये रूपों का भी संज्ञान लेना होगा. अभी दुनिया में मुख्य रूप से तीन प्रकार ऐसे हैं, जो बड़ी चुनौती बने हुए हैं- एक इंग्लैंड का वायरस है, दूसरा दक्षिण अफ्रीका में है तथा तीसरा ब्राजील का है. हालांकि भारत में ये तीनों प्रकार के वायरस मिले हैं, लेकिन अच्छी बात यह है कि संक्रमित लोग बाहर से आये हैं और उनकी पहचान की जा चुकी है. इन वायरसों को स्थानीय संक्रमण अभी तक नहीं हुआ है. जो टीके अभी उपलब्ध हैं और जो आनेवाले हैं, वे भले ही कुछ वायरस रूपों में कम प्रभावी हों, पर ऐसा नहीं है कि वे बिल्कुल ही प्रभावहीन हो जाते हैं.

भारत में इन वायरसों पर और अन्य संभावित रूपों पर निगरानी और अनुसंधान करना जारी रखना होगा. जिन जगहों पर कोरोना के नये मामले अधिक संख्या में आ रहे हैं, वहां शोध करना होगा कि कहीं वायरस ने अपना रूप तो नहीं बदल लिया है.

सबसे महत्वपूर्ण यह है कि लोगों में जागरूकता लाने के लिए प्रयास जारी रहें. हमें बार-बार यह रेखांकित करना चाहिए कि यह वायरस किसी को भी छोड़ता नहीं है. ऐसे में हमारी मामूली लापरवाही भी मुश्किल खड़ी कर सकती है. संक्रमण से बचाव करना और टीका लेना अपनी रक्षा के लिए तो जरूरी है ही, यह हमारा सामाजिक दायित्व भी है. कम मामले आने का मतलब यह कतई नहीं है कि महामारी खत्म हो चुकी है.

Posted By : Sameer Oraon

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