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डर और घबराहट कोई रास्ता नहीं

कुछ संक्रमितों में ही ऑक्सीजन की कमी की शिकायत आती है. डॉक्टर के परामर्श से और गंभीर रूप से बीमार होने पर ही अस्पताल जाना चाहिए. पैनिक करने से कोई फायदा नहीं है.

देश इस समय बेहद नाजुक दौर से गुजर रहा है. एक तरफ संक्रमण के मामले हमारे अनुमानों से कहीं अधिक दर से बढ़ रहे हैं तथा दूसरी तरफ हमारे अस्पतालों में पर्याप्त संख्या में बिस्तरों, दवाओं और ऑक्सीजन सिलेंडरों की उपलब्धता नहीं है. ऐसे में यह समझना बहुत जरूरी है कि कब हमें अस्पताल जाने की जरूरत है और कब हम घर पर ही संक्रमण से मुक्त हो सकते हैं.

किसी भी स्थिति में पैनिक नहीं करना चाहिए क्योंकि तब अच्छा-खासा दिमाग भी ठीक से काम नहीं करता. विशेषज्ञों और चिकित्सकों का कहना है कि अभी भी भारत में जितने लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो रहे हैं, उनमें से 94-95 फीसदी तक मामले हल्के या औसत होते हैं और कुछ दवा व कुछ ध्यान देकर ऐसे संक्रमणों का उपचार घरों में ही हो सकता है. लेकिन ऐसे लोगों की संख्या कम है, जो इन बातों को समझते हैं. बहुत सारे लोग ऐसे में पैनिक मोड में आ जाते हैं, कुछ ऑक्सीजन के लिए, तो कुछ अस्पतालों के लिए भागने लगते हैं.

अभी हमारे देश में रोजाना मामलों की संख्या तीन लाख से ऊपर है और हर दिन तीन हजार से अधिक लोगों की मौत हो रही है. इस दूसरी लहर का एक कारण तो वायरस के रूप में बदलाव है और दूसरी वज़ह लोगों का ठीक से अपना ध्यान नहीं रखना है, जैसे- मास्क नहीं पहनना, शारीरिक दूरी का पालन नहीं करना और बार-बार हाथ नहीं धोना आदि. व्यवहार में यह ढील इसलिए हुई कि जनवरी-फरवरी तक देशभर में संक्रमण में बड़ी गिरावट हो गयी थी तथा लोगों ने लगभग यह मान लिया था कि अब यह बीमारी खत्म हो रही है. लेकिन यह गलतफहमी थी.

हमारा और अन्य देशों का अनुभव है कि ऐसी बीमारी की एक से अधिक लहरें आती हैं. संक्रमण बढ़ने की एक वजह कई आयोजनों का होना भी हो सकती है, जैसे- कुछ राज्यों में चुनाव, सामाजिक व धार्मिक कार्यक्रम आदि. इन अवसरों पर बचाव के उपायों पर ठीक से अमल नहीं किया गया. अब जब महामारी फैल गयी है, तो हमें यह देखना होगा कि पहली और दूसरी लहर में अंतर क्या है. पिछले साल प्रभावित होनेवाले अधिकतर लोग 50-55 साल से अधिक आयु के थे, लेकिन इस बार 24-44 साल आयु वर्ग के लोग वायरस की चपेट में ज्यादा आ रहे हैं.

यह बात हमें गंभीरता से समझनी होगी कि संक्रमण के बहुत अधिक मामले घर पर रहकर ठीक हो सकते हैं. अगर किसी व्यक्ति को बुखार, खांसी, गले में खरास, स्वाद व गंध महसूस नहीं करना जैसे लक्षण आते हों, तो सबसे पहले हमारा जोर प्रभावित व्यक्ति को अलग रखने पर होना चाहिए ताकि दूसरे लोगों तक वायरस न फैल सके. लक्षण दिखने पर अगर आसपास जांच की सहूलियत है, तो जांच करा लेनी चाहिए. अगर यह मुश्किल है, तो यह मानकर चलना चाहिए कि यह कोविड ही होगा. आम बुखार में जो दवा हम लेते हैं, वह इसमें भी लेना चाहिए.

खरास के लिए नमक डालकर गर्म पानी से गलाला करना चाहिए, भाप लेना चाहिए. प्लस ऑक्सीमीटर और थर्मामीटर से खून में ऑक्सीजन और बुखार की माप लेते रहना चाहिए. इससे यह पता चलता रहता है कि कहीं मरीज की स्थिति बिगड़ तो नहीं रही है. इन उपायों से आम तौर पर एक सप्ताह या दस दिन में व्यक्ति ठीक हो सकता है. केवल आठ से दस प्रतिशत संक्रमितों में ही ऑक्सीजन की कमी होने की शिकायत आती है.

डॉक्टर के परामर्श से और गंभीर रूप से बीमार होने पर ही अस्पताल जाना चाहिए. सामान्य स्थिति में पैनिक करने से कोई फायदा नहीं है. प्राणायाम करने से, उल्टा लेटने से ऑक्सीजन की मात्रा बहाल रखने में मदद मिलती है. शुरुआती लक्षण आने के साथ विभिन्न प्रकार की जांच कराना, ऑक्सीजन जुटाना या अस्पताल में बिस्तर की व्यवस्था कराना जैसे व्यवहारों से बचना चाहिए. इससे दूसरे भी प्रभावित होते हैं और पैनिक बढ़ता है. ऐसा करने से जरूरतमंद लोगों को भी परेशानी हो सकती है.

इस संबंध में टीकाकरण अभियान बहुत महत्वपूर्ण है. अभी तक 45 साल से ऊपर के लोगों को टीके की खुराक दी जा रही है. एक मई से 18 साल और उससे अधिक आयु के सभी वयस्क टीका लगा सकेंगे. भारत सरकार के कार्यक्रम के तहत चल रहे सरकारी केंद्रों पर यह अभी भी मुफ्त दिया जा रहा है. निजी क्षेत्र के केंद्रों पर एक निर्धारित शुल्क देना पड़ता है. केंद्र सरकार समेत अनेक राज्य सरकारों ने आगे भी निशुल्क टीका देने की घोषणा की है. टीकों के दाम कम करने के लिए कोशिशें हो रही हैं.

चूंकि सभी वयस्कों को टीका लगाना है, तो एक साथ इतनी बड़ी संख्या में टीके उपलब्ध नहीं हो सकेंगे, इसलिए संयम के साथ इस अभियान से जुड़ा जाना चाहिए. केंद्र सरकार ने फिलहाल उपलब्ध दो वैक्सीन के अलावा दूसरे देशों में बनीं कुछ वैक्सीन के इस्तेमाल की अनुमति दी है. उम्मीद है कि जल्दी ही उन्हें उपलब्ध करा दिया जायेगा. टीकाकरण दो कारणों से बहुत महत्वपूर्ण है. पहला यह है कि यदि टीके की दोनों खुराक ली जाए, तो दूसरी खुराक के दो सप्ताह बाद शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है.

ऐसे लोगों को अगर संक्रमण होता है भी है, तो उसका असर बहुत मामूली होता है और उसका उपचार घर में ही रहकर किया जा सकता है और उन्हें अस्पताल जाने की जरूरत नहीं होगी. दूसरी अहम बात है कि इससे मौतों को रोका जा सकता है, जो आज हमारी सबसे बड़ी चिंता है.

मीडिया और सोशल मीडिया की कुछ सूचनाओं से भी पैनिक फैलता है. हमें उनकी ओर ध्यान नहीं देना चाहिए और विशेषज्ञों की राय को मानना चाहिए. जागरूकता भी आज बहुत आवश्यक है. याद रहे, बहुत अधिक मामले हल्के संक्रमण के हैं और उसके असर में आये लोग घर में देखभाल से स्वस्थ हो सकते हैं. बचाव के उपायों पर अमल पहले की तरह बिना लापरवाही के करते रहना है. यह बीमारी टीकाकरण से ही काबू में आ सकती है, इसलिए मौका मिलते ही टीका जरूर लगाएं. जिन कुछ देशों में आबादी के बहुत बड़े हिस्से को टीकों की खुराक दी जा चुकी है, वहां पाबंदियों में छूट मिलने लगी है.

इजरायल ने पिछले सप्ताह ही मास्क पहनने की अनिवार्यता समाप्त कर दी है. अमेरिकी सरकार ने भी घोषणा की है कि जो लोग टीकाकरण करा चुके हैं, वे बिना मास्क के घूम सकते हैं. सावधानी के लिए भीड़ में मास्क लगाने की सलाह दी गयी है. हम कुछ सावधानी और जिम्मेदारी से इस महामारी को पीछे छोड़ सकते हैं.

Posted By : Sameer Oraon

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