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रक्षा आधुनिकीकरण

देश की सैन्य तैयारी, सैन्य हार्डवेयर के विकल्पों को बढ़ाने और आत्मनिर्भरता के लिए स्वदेशीकरण अभियान को तेज करने की आवश्यकता है.

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए भारत ने दो वर्षों में 310 प्रकार के विभिन्न हथियारों और प्रणालियों के आयात पर चरणबद्ध प्रतिबंध लगाया है. इसी दिशा में रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने 76,390 करोड़ रुपये के स्वदेशी सैन्य हार्डवेयर खरीद को मंजूरी दी है. अगली पीढ़ी के युद्धपोत, टैंक-रोधी निर्देशित मिसाइलों के साथ बख्तरबंद लड़ाकू वाहन, हथियार खोजनेवाले राडार और पुल बिछानेवाले टैंकों के आने से देश की सैन्य क्षमता बढ़ेगी.

रक्षा पर विदेशी खर्च कम होगा और भारतीय रक्षा उद्योग को प्रोत्साहन मिलेगा. करीब 36000 करोड़ रुपये की लागत वाले अगली पीढ़ी के लड़ाकू जलपोत का प्रयोग निगरानी मिशन, एस्कॉर्ट ऑपरेशन, खोज व हमला तथा तटीय रक्षा के लिए किया जायेगा. यह नवीनतम प्रौद्योगिकी आधारित तथा स्वदेश निर्मित है, साथ ही सरकार की पहल ‘सागर’ (क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा एवं विकास) को आगे बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण है.

डीएसी के स्वीकृत प्रस्तावों में अतिरिक्त डोर्नियर एयरक्रॉफ्ट, सुखोई-30 एयरो इंजन खरीद तथा तटरक्षक में डिजिटलीकरण आदि शामिल है. आयातित हथियारों पर अत्यधिक निर्भरता की सीख रूस-यूक्रेन युद्ध भी है. विशेषज्ञ चेताते रहे हैं कि देश की सैन्य तैयारी, सैन्य हार्डवेयर के विकल्पों को बढ़ाने और आत्मनिर्भरता के लिए स्वदेशीकरण अभियान को तेज करने की आवश्यकता है.

मौजूदा वित्तवर्ष में रक्षा मंत्रालय के लिए 5.25 लाख करोड़ रुपये का आवंटन है, जिसका मुख्य रूप से दो उद्देश्य है- रक्षा सेवाओं का आधुनिकीकरण और रक्षा अवसंरचना का विकास. सीमा सड़क अवसंरचना और तटीय सुरक्षा अवसंरचना पर विशेष रूप से फोकस किया जा रहा है. साल 2022-23 में रक्षा सेवाओं के लिए पूंजीगत व्यय 1.52 लाख करोड़ रुपये है. साथ ही, पूंजीगत खरीद बजट का 68 प्रतिशत घरेलू उद्योग के लिए रखा गया है.

बीते वर्ष यह 58 प्रतिशत था, इससे रक्षा खरीद में आत्मनिर्भरता के लिए सरकार की मंशा स्पष्ट होती है. उद्योग जगत, स्टार्टअप और अकादमिक क्षेत्र के लिए रक्षा क्षेत्र में शोध एवं विकास को खोलना एक बेहतर पहल है, इससे डीआरडीओ और अन्य संगठनों के सहयोग से निजी क्षेत्र भी सैन्य हथियारों और उपकरणों के डिजाइन और उत्पादन के लिए प्रेरित होंगे.

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) के अनुसार, 2019 में भारत रक्षा खर्च में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश था. देश की सुरक्षा के साथ-साथ भुगतान संतुलन घाटे को कम करने के लिए भी विदेशी हथियार निर्यातकों पर निर्भरता घटाने की आवश्यकता है.

इससे रोजगार और निर्यात को बढ़ावा मिलेगा. हालांकि, देश में रक्षा विनिर्माण की कमी, सरकारी उद्यमों पर अधिक निर्भरता, निवेश जोखिम, बाजार सुरक्षा के अभाव जैसे अहम प्रश्नों पर भी गौर करना होगा. नौकरशाही में देरी और लाइसेंसिंग जैसी स्थायी समस्याएं अभी बरकरार है. नीतियों की बेहतर निगरानी, अनावश्यक प्रतिबंधों को हटाने और सार्वजनिक उद्यमों तथा निजी क्षेत्र के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के लिए उपयुक्त माहौल बनाना होगा, तभी हम आत्मनिर्भरता के निर्धारित लक्ष्यों को हासिल कर पायेंगे.

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