Child psychology : हाल ही में अहमदाबाद के खोखरा-मणिनगर में स्थित सेवेंथ डे स्कूल में दसवीं कक्षा के छात्र की पेपर कटर से हत्या उसके सहपाठी द्वारा किये जाने का मामला सामने आया है. ठीक इसी तरह गाजीपुर जिले में स्कूल कैंपस के अंदर छात्र पर हमले की घटना सामने आई है. दस साल पहले 31 दिसंबर, 2015 को भी ऐसी ही सनसनीखेज वारदात हुई थी, जब आठवीं कक्षा के छात्र ने सहपाठी को गोली मार दी थी. निरंतर बढ़ती ऐसी घटनाएं चिंता का विषय हैं. बच्चों का यह आक्रामक एवं हिंसक व्यवहार एकाएक उत्पन्न नहीं हो रहा है.
एक बच्चा माता-पिता के मार्गदर्शन में समाज और रिश्तों के बारे में सीखता है. जिन घरों में वयस्कों का व्यवहार भ्रमित करने वाला और भावनात्मक रूप से अस्थिर होता है और जहां अभिव्यक्ति और संचार की स्थिति खराब होती है, वहां अन्य लोगों के साथ संबंध बनाने में समस्याएं होती हैं. घर में हिंसक व्यवहार और मीडिया व मनोरंजन में हिंसा को सहन करना बच्चे के इस विश्वास को बढ़ावा दे सकता है कि रोमांच की तलाश और हिंसा समस्याओं को हल करने के तरीके हैं. भावनात्मक आघात बच्चे की भावनात्मक शैली पर नकारात्मक प्रभाव डालता है, जो उनके रिश्तों और दुनिया को देखने के उनके तरीके को गहराई से प्रभावित करता है. शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक शोषण बच्चे की सुरक्षा की बुनियादी भावना को नष्ट कर देते हैं.
जिन बच्चों के साथ शारीरिक दुर्व्यवहार और हिंसक व्यवहार होता है, वे अक्सर हिंसक हो जाते हैं. जिन बच्चों की उपेक्षा की जाती है, उन्हें अक्सर रिश्ते बनाने और दूसरों की परवाह करने में कठिनाई होती है. छोटे बच्चों द्वारा की जाने वाली ज्यादातर हत्याएं योजनाबद्ध नहीं होतीं; बल्कि, वे क्रोध, हताशा या पारस्परिक संघर्ष के कारण होती हैं. किसी भी बच्चे के सकारात्मक विकास के लिए संवेदनशील और प्यार भरे माहौल की आवश्यकता होती है, जहां उसे सुरक्षित होने का भाव प्राप्त हो. और जब बच्चे स्वस्थ विकास के सबसे बुनियादी और महत्वपूर्ण आधार स्नेह और सुरक्षा से वंचित रह जाते हैं, तब वे भावनात्मक, व्यावहारिक, सामाजिक, शारीरिक और नैतिक समस्याओं की शृंखला खड़ी कर देते हैं. ऐसे बच्चे अक्सर आक्रामक, अनियंत्रित और विकृत व्यवहार करते हैं, जो असामाजिक व्यक्तित्व के विकास में योगदान देता है.
किशोरावस्था से पहले ही ये बच्चे विवेक की कमी, दूसरों की कीमत पर आत्म-संतुष्टि, जिम्मेदारी की कमी, बेईमानी तथा परिवार व समाज के नियमों की घोर अवहेलना प्रदर्शित करते हैं. जिन किशोरों ने जीवन के शुरुआती दिनों में लगाव संबंधी कठिनाइयों का अनुभव किया है, उनके हिंसक अपराध करने की आशंका तीन गुना अधिक होती है. जीवन के महत्वपूर्ण शुरुआती तीन वर्षों के दौरान लगाव में खलल पड़ने से ‘स्नेहहीन मनोरोग’ हो सकता है, जिससे सार्थक, भावनात्मक संबंध बनाने में असमर्थता, लगातार क्रोध, आवेगों पर नियंत्रण की कमी और पश्चाताप की कमी जैसे विकार स्वाभाविक रूप से बच्चों के जीवन में स्थान बना लेते हैं. इन विचलित करने वाले विकारों ने आज के युवाओं द्वारा किये जा रहे अपराधों को और अधिक हिंसक तथा ‘हृदयहीन’ बना दिया है.
दरअसल माता-पिता अथवा परिवार के अन्य सदस्यों से प्राप्त सुरक्षित लगाव बच्चों के जीवन में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं. आज जब जीवन की आपाधापी में बच्चों की भावनाओं, उनकी समस्याओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है, तो वे किशोरावस्था तक पहुंचते-पहुंचते भावना शून्य हो जाते हैं. दुनिया भर के शोध यह स्थापित करते हैं कि बालपन में मिली स्नेह और सुरक्षा की भावना बच्चों को गंभीर समस्याओं से बचाती है. इसके विपरीत जो बच्चे परिवार और समाज के स्नेह से वंचित रह जाते हैं, उनमें संवेदनशीलता और सहानुभूति का अभाव होता है. एक और महत्वपूर्ण बात जो पिछले दशकों में समाज में हर ओर व्याप्त है, वह है जीतने की प्रबल भावना. येन- केन-प्रकारेण यह भाव सही और गलत के भाव से परे सिर्फ प्रभुत्व और जीत के भाव के साथ धीरे-धीरे इतना प्रबल होता चला जाता है कि हिंसक व्यवहार सामान्य-सा प्रतीत होने लगता है. गलत और सही के अंतर का बोध कराना सर्वप्रथम माता-पिता का दायित्व है.
इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण इन दिनों सोशल मीडिया में वायरल उन माता-पिता का वीडियो है, जहां वे अपने छोटे बच्चों को सहपाठी को मारने पर न केवल समझाते हैं बल्कि यह भी बताते हैं कि ऐसा करना गलत है. वे यह भी समझाते हैं कि किसी को चोट पहुंचाना अच्छा बच्चा होने की निशानी नहीं है. माता-पिता का यह प्रयास उस बच्चे के भीतर आक्रामकता के प्रति नकारात्मक विचार उत्पन्न करेगा. हिंसक प्रवृत्ति जिस क्षण जन्म लेती है, उसी पल उसका कृत्य किसी न किसी रूप में सामने आता है. ठीक उसी समय अगर उसे रोक दिया जाये, तो भविष्य में अहमदाबाद, नोएडा, मणिनगर और देश के दूसरे क्षेत्रों में बच्चों द्वारा सहपाठियों व दोस्तों के साथ किये गये घोर हिंसक व्यवहार की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सकती है. (ये लेखिका के निजी विचार हैं.)

