10.3 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

बेहतर हों प्रयोगशालाएं

प्रयोगशालाएं नजरअंदाज होती रही हैं, जिससे पैथोलॉजी और लैब मेडिसिन में पर्याप्त निवेश नहीं हो पाया, जबकि स्वास्थ्य प्रणाली में दोनों ही अहम हैं.

मेडिकल जांच और उपचार व्यवस्था में व्याप्त खामियों को लेकर अक्सर चर्चा होती है. फिर भी, स्वास्थ्य प्रणाली की यह स्थायी समस्या वर्षों से बरकरार है. इसका सबसे बड़ा खामियाजा आम लोग उठा रहे हैं. उनके पास गंभीर बीमारियों की जांच और उपचार के लिए विकल्प भी सीमित हैं. सही जांच नहीं होने से सही उपचार भी नहीं हो पाता, कई बार तो उपचार होता रहता है और खर्च बेहिसाब बढ़ता जाता है. देश में अनेक मेडिकल कॉलेजों में मरीजों की जांच के लिए बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं. गलत जांच से गैर-जरूरी दवाओं और अनावश्यक ऑपरेशन होने का भी जोखिम रहता है.

संक्रमणों, कैंसर के विभिन्न चरणों, रक्त और जन्मजात विकारों की जांच विशेष प्रोटीन या बायोमार्कर द्वारा की जाती है. ऐसे डायग्नोस्टिक टेस्ट की सुविधाएं अनेक निजी और सार्वजनिक अस्पतालों में नहीं हैं. यूनिवर्सल हेल्थकेयर यानी सभी के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं का लक्ष्य, तब तक हासिल नहीं होगा, जब तक मेडिकल कॉलेजों की बीमारू प्रयोगशालाओं को दुरुस्त नहीं किया जाता. विशेषज्ञों के एक अध्ययन के मुताबिक, कैंसर, लिम्फोइड व स्तन कैंसर आदि का पता लगाने के लिए ‘इम्यूनोहिस्टोकेमिस्ट्री’ (आइएचसी) तकनीक का इस्तेमाल होता है. यह सुविधा कई राज्यों के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में नहीं है.

आइएचसी जांच हेतु मरीजों को प्राइवेट लैब का रुख करना पड़ता है. इसी तरह ऑटो इम्यून बीमारियों समेत कई तरह के मेडिकल डिसऑर्डर का पता लगाने के लिए ‘इम्यूनोफ्लोरेसेंस’ और किडनी तथा स्किन बायोप्सी के लिए ‘फ्रोजेन सेक्शंस’ तकनीक का इस्तेमाल होता है, जिसके आधार पर सर्जन ट्यूमर का ऑपरेशन का प्लान बनाते हैं. गौरतलब है कि आइएचसी तकनीक का 40 साल पहले और फ्रोजेन सेक्शंस का 100 वर्ष पहले इजाद हुआ था, लेकिन देश में आज भी कई मेडिकल कॉलेज इस सुविधा से महरूम हैं.

प्रयोगशालाओं में जांच और उपकरण की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने से पोस्टग्रेजुएशन स्तर पर शिक्षण-प्रशिक्षण भी प्रभावित हो रहा है. पैथोलॉजी विशेषज्ञ मानते हैं कि प्रयोगशालाएं नजरअंदाज होती रही हैं, जिससे पैथोलॉजी और लैब मेडिसिन में पर्याप्त निवेश नहीं हो पाया. जबकि, स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में ये दोनों ही अहम घटक हैं. नीतिगत स्तर पर इनकी उपेक्षा की कीमत मरीज अदा कर रहे हैं. जरूरी है कि स्वास्थ्य नीति में पैथोलॉजी विशेषज्ञों का भी मशविरा शामिल हो.

राष्ट्रीय मेडिकल आयोग को देशभर के मेडिकल कॉलेजों में लैब की स्थिति के बारे में समुचित जानकारी जुटानी चाहिए, ताकि पैथोलॉजी तथा लैब मेडिसिन में प्रायोगिक शिक्षण की स्थिति बेहतर हो सके. देश में 520 से अधिक मेडिकल कॉलेजों में आधे से अधिक (270) सरकारी हैं, लेकिन मात्र 198 कॉलेजों में ही मानकों के अनुरूप प्रयोगशालाएं हैं. ऐसे विविध पहलुओं पर गंभीरता से विचार की जरूरत है, तभी देश में मेडिकल सेवाएं बुनियादी तौर पर मजबूत हो पायेंगी.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें