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भारत की चेतावनी

भारत कई रोगों के टीकों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और कई यूरोपीय देशों में उनका इस्तेमाल होता है. ऐसे में उनकी क्षमता और दक्षता पर संदेह करना समझ से परे है.

यूरोपीय संघ द्वारा भारत में बने टीकों के लेने के प्रमाणपत्र को न मानने का प्रकरण आश्चर्यजनक तो है ही, हास्यास्पद भी है. संघ के नये नियमों के मुताबिक, यूरोपीय दवा एजेंसी द्वारा मान्य टीकों के अलावा अन्य टीकों की खुराक लेनेवाले यूरोपीय संघ के सदस्य देशों की यात्रा नहीं कर सकेंगे. एजेंसी की सूची में आस्त्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड के वैक्सजेर्वरिया टीके का नाम है, लेकिन उसी सूत्र पर भारत में निर्मित कोविशील्ड को स्वीकृति नहीं दी गयी है.

उल्लेखनीय है कि भारत में ही विकसित अन्य टीके कोवैक्सीन की मान्यता का मामला विश्व स्वास्थ्य संगठन के पास लंबित है. यूरोपीय संघ का कहना है कि हर स्वीकृति टीके की गुणवत्ता के आधार पर निर्धारित होगी. हालांकि कोविशील्ड की निर्माता कंपनी ने संघ के सामने अपने टीके को मान्यता देने का अनुरोध प्रस्तुत कर दिया है, लेकिन भारत सरकार ने भी अपनी ओर से इंगित कर दिया है कि अगर भारतीय टीकों के साथ ऐसा व्यवहार किया जायेगा, तो भारत को भी कड़ा रुख अपनाना पड़ेगा और यूरोपीय संघ के यात्रियों को टीकाकरण की वजह से अनिवार्य रूप से क्वारंटीन होने से मिली छूट वापस ले ली जायेगी.

यूरोपीय संघ के रवैये से भारतीयों को परेशानी का सामना तो करना ही पड़ेगा, साथ ही उन देशों के नागरिकों को भी कई यूरोपीय देशों में जाने में बाधा आयेगी, जो भारतीय टीकों का आयात कर रहे हैं. भारत ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इसे यूरोपीय संघ के उच्च पदस्थ अधिकारी के समक्ष उठाया है. टीकों को लेकर अनेक विकसित देशों का रवैया शुरू से ही भेदभावपूर्ण रहा है. इन देशों ने अपनी जरूरत से कहीं अधिक टीकों का बड़ा जखीरा जमा किया है.

इतना ही नहीं, जो टीके अभी बने भी नहीं हैं, उनके बड़े हिस्से की अग्रिम खरीद की जा चुकी है. वे देश वादा करने के बावजूद विकासशील और निर्धन देशों को टीका मुहैया कराने में देरी कर रहे हैं. भारत उन कुछ देशों में शामिल है, जिन्होंने अपने देश के भीतर टीकों को विकसित किया है और उनका उत्पादन कर रहे हैं. जहां तक गुणवत्ता का प्रश्न है, तो भारत कई रोगों के टीकों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और कई यूरोपीय देशों में उनका इस्तेमाल होता है. उनमें से कई टीकों को बनानेवाली दो कंपनियां ही कोरोना वायरस से बचाव का टीका भी बना रही हैं.

ऐसे में उनकी क्षमता और दक्षता पर संदेह करना समझ से परे है. इस तथ्य का भी संज्ञान लिया जाना चाहिए कि टीकों के न्यायपूर्ण वितरण को सुनिश्चित करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के तहत बने कई देशों के समूह में भारत भी शामिल है. अपनी जरूरत के बावजूद भारत ने बड़ी मात्रा में टीकों की खुराक कई देशों को भेजी है. देर-सबेर यूरोपीय संघ को भारतीय टीकों को स्वीकार करना ही पड़ेगा, लेकिन ऐसे भेदभाव से संबंध बिगाड़ना ठीक नहीं हैं.

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