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इलाज का विकल्प टेलीमेडिसिन

टेलीमेडिसिन से स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था प्रभावी हो सकती है, बशर्ते कि वह सही तरीके से और सही दिशा में हो.

टेलीमेडिसिन यानी स्वास्थ्य देखभाल की ऐसी विधा, जिससे दूरस्थ इलाकों तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच सुलभ हो सके. वर्तमान परिस्थितियों के मद्देनजर टेलीमेडिसिन विधा से मरीजों की देखभाल, इलाज और चिकित्सकीय परामर्श उपलब्ध कराने की कोशिश की जा रही है. किन्हीं कारणों से जो लोग अस्पतालों तक नहीं जा सकते, उनके लिए यह एक वैकल्पिक सुविधा है.

टेलीमेडिसिन एक अवसर है. हालांकि, कई तरह की चुनौतियां भी हैं, मसलन तकनीकी, डेटा सुरक्षा, विश्वसनीयता आदि प्रश्नों पर भी गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है. कोविड-19 महामारी से पूर्व स्वास्थ्य देखभाल कार्यप्रणाली सख्त थी. अमूमन, मरीज अस्पताल आता है, डॉक्टर उसे देखता है और जांच कराने के लिए कहता है. जांच रिपोर्ट देखने के बाद इलाज शुरू होता है.

करीब छह-सात साल पहले एक डॉक्टर ने अपने मरीज को व्हॉट्सएप पर सलाह दे दी थी. वह पहले से ही डॉक्टर का देखा हुआ मरीज था. मरीज को कुछ दिक्कत हुई. बाद में मामले का संज्ञान लेते हुए बांबे हाइकोर्ट ने कहा कि व्हॉट्सएप पर इलाज करना गैरकानूनी है. हालांकि, इस तरह के इलाज के लिए आज भी कानून नहीं है.

आज की परिस्थितियों के मद्देनजर टेलीमेडिसिन विकल्प बन गया है. हालांकि, एक स्थापित सेटेलाइट सिस्टम का मतलब टेलीमेडिसिन नहीं होता. इसके विविध आयाम होते हैं. यह व्यवस्था आप निजी क्षेत्र के हवाले कर रहे हैं. वे तकनीक की मदद से एक व्यवस्था बनायेंगे. उनका ध्यान इलाज से अधिक मुनाफे पर होगा.

कोरोनाकाल में लोगों को लग रहा है कि इलाज के लिए डॉक्टर उपलब्ध नहीं हैं. अस्पताल जाने पर संक्रमण का डर है. ऐसे में एक विकल्प खोला गया टेलीमेडिसिन का, यानी टेलीफोनिक या वीडियो परामर्श के जरिये इलाज. जो इलाज अस्पताल में हो रहा था, वही टेलीफोन या वीडियो के माध्यम से भी हुआ. इससे आत्मविश्वास मिला कि यह व्यवस्था सफल हो सकती है. सिस्टम को मजबूत करने, तकनीक विस्तार जैसी बातें हुईं और सरकार भी आगे आयी.

टेलीमेडिसिन में कुछ बातों पर चर्चा जरूरी है. पहला, टेली-कंसल्टेशन, यानी इसमें डॉक्टर मरीज को देखेगा, टेली-रेडियोलॉजी, यानी एक्सरे वहीं होगा, उसके अपलोड किये गये डिजिटल प्रारूप को किसी शहर में बैठे रेडियोलॉजी डॉक्टर ने देखा. और, आपकी रिपोर्ट डॉक्टर तक पहुंच गयी, इस तरह इलाज के लिए आपको बाहर नहीं निकलना पड़ा. तीसरा, टेली-पैथोलॉजी, रक्त वगैरह की जांच घर बैठ कर संभव है. इस तरह जांच रिपोर्ट भी आपके पास आ जायेगी और इसी आधार पर डॉक्टर आपको दवा भी दे देगा.

बहरहाल, टेलीमेडिसिन में कुछ चीजें ज्ञात या अज्ञात रूप में शामिल हो गयी हैं. वह न तो मरीज को पता है, न ही सिस्टम को. जैसे- रेडियोलॉजी का डॉक्टर बेंगलुरु में है और हमारा डेटा दिल्ली से ट्रांसफर हुआ, वहां से रिपोर्टिंग कर दी. मरीज को नहीं पता है कि रिपोर्टिंग बेंगलुरु में हुई है. इस दौरान डेटा लीक भी हो सकता है, क्योंकि डेटा किसी अन्य कंपनी के पास जा रहा है. इसके लिए क्या व्यवस्था बनायी जायेगी, यह एक बड़ा सवाल है. टेलीमेडिसिन से जुड़ी सामान्य चिंताओं का समाधान तो हो जायेग, लेकि सर्जिकल समस्याओं के लिए मरीज को अस्पताल जाना ही होगा.

टेलीमेडिसिन का उद्देश्य होना चाहिए कि लोगों को सस्ती सेवाएं मिल सकें. दूसरा, मरीज को यात्रा न करनी पड़े, इससे समय और धन दोनों बचेगा. इलाज के लिए उसे अपने काम से छुट्टी नहीं लेनी पड़ेगी. अगर कम फीस पर समुचित उपचार उपलब्ध हो सके, तो टेलीमेडिसिन बहुत ही बढ़िया है, लेकिन इससे जुड़ी कुछ व्यवस्थागत चिंताएं भी हैं.

टेलीमेडिसिन में सहयोगी सेवाएं भी शामिल होंगी, जैसे डेटा ऑपरेटर, मशीन ऑपरेटर, वेंडर आयेंगे. वे फिर आपदा में अवसर तलाशेंगे. जो टेलीमेडिसिन चला रहा है, वह डॉक्टर के पैसे में हिस्सा लेगा. कुल मिलाकर इसका तेजी से व्यापारीकरण होने लगेगा. पहले वे आदत लगायेंगे, फिर उसका फायदा उठायेंगे. इससे स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता प्रभावित होगी ही, साथ ही सेवाएं भी धीरे-धीरे महंगी होती जायेंगी. अगर मुक्त व्यापारीकरण हुआ, तो वह व्यवस्था लाभप्रद के बजाय हानिकारक हो जायेगी.

निश्चित ही, टेलीमेडिसिन से स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था प्रभावी हो सकती है, बशर्ते कि वह सही तरीके से और सही दिशा में हो. अरस्तू ने कहा है कि लोकतंत्र में बहुत शक्ति है, यदि नैतिकता रहे तो. अगर नैतिकता खत्म हो गयी, तो लोकतंत्र भीड़तंत्र बन जाता है. टेलीमेडिसिन में इन चिंताओं का समाधान करने की आवश्यकता है. यह कहीं पैसा कमाने की एक नयी व्यवस्था बनकर न रह जाये.

टेलीमेडिसिन की कामयाबी के लिए कुछ बुनियादी व्यवस्थाओं को मजबूत करना होगा. देश के कई इलाकों में इंटरनेट की समुचित पहुंच नहीं है. जिन ग्रामीण इलाकों को सुविधा देना चाहते हैं, उनके सामने टेलीकॉम नेटवर्क और इंटरनेट जैसे मूलभूत समस्याएं हैं. पहले, उन इलाकों में बिजली की उपलब्धता हो, अबाधित मोबाइल नेटवर्क कनेक्शन, कम-से-कम 4जी कनेक्शन जरूरी होगा, क्योंकि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिए मजबूत नेटवर्क की आवश्यकता होती है.

वीडियो स्ट्रीमिंग रीयलटाइम होनी चाहिए, मरीज ने कुछ बोला और डॉक्टर को वह स्पष्ट नहीं हुआ, तो उचित इलाज कैसे हो पायेगा. तीसरा, नवीनतम तकनीक की सुविधा उपलब्ध हो. अगर बेहतर गुणवत्ता की डिवाइस नहीं होगी, तो अच्छा नेटवर्क होने पर भी कम्युनिकेशन नहीं हो पायेगा, दोनों का इंटरफेस सिस्टम को सपोर्ट करना चाहिए. टेलीमेडिसिन की सफलता सूचना प्रौद्योगिकी की कार्यकुशलता पर निर्भर है.

दुनिया में जिस भी देश ने टेलीमेडिसिन में सफलता पायी है, उसने पहले व्यवस्था और तकनीक तंत्र को बेहतर बनाया है. ब्रिटेन में यह नेशनल हेल्थ स्कीम (एनएचएस) के माध्यम से किया जा रहा है. इससे गुणवत्ता और निगरानी दोनों बेहतर होती है. सबसे अहम सवाल साइबर सुरक्षा का है. आपको मरीजों के डेटा की गोपनीयता को लेकर आश्वस्त करना होगा.

मरीजों का निजी डेटा अब केवल डॉक्टर तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वह निजी तंत्र की एक व्यवस्था में होगा. वहां से वह लीक भी हो सकता है. साथ ही पूरे देश में टेलीमेडिसिन के लिए एकीकृत व्यवस्था बने. राज्यवार व्यवस्था से अनेक तरह की अड़चनें हैं. जब कोई भी व्यवस्था व्यापक सोच-विचार के साथ बनेगी, तो वह निश्चित ही सफल होगी. (बातचीत पर आधारित).

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