23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

दलितों का आक्रोश

खुद को गौ-रक्षक बतानेवाले कुछ लोगों ने पिछले माह गुजरात के ऊना में दलित समुदाय के कुछ युवकों को अपने अत्याचार का निशाना बनाया था. इस घटना के बहाने दलित समुदाय का वर्षों से दबा आक्रोश 15 अगस्त के दिन गुजरात के कुछ इलाकों में सड़कों पर उबल पड़ा. दलित-अस्मिता यात्रा ऊना में बड़ी भीड़ […]

खुद को गौ-रक्षक बतानेवाले कुछ लोगों ने पिछले माह गुजरात के ऊना में दलित समुदाय के कुछ युवकों को अपने अत्याचार का निशाना बनाया था. इस घटना के बहाने दलित समुदाय का वर्षों से दबा आक्रोश 15 अगस्त के दिन गुजरात के कुछ इलाकों में सड़कों पर उबल पड़ा.

दलित-अस्मिता यात्रा ऊना में बड़ी भीड़ के साथ समाप्त हुई. इस आक्रोश की तात्कालिक वजहों को गुजरात के उस विकास-मॉडल में देखा जा सकता है, जिसमें आर्थिक संपन्नता के बावजूद वंचित वर्गों का सशक्तीकरण नहीं हो पाया है. देश की कुल दलित आबादी का करीब ढाई फीसदी हिस्सा ही गुजरात में रहता है, लेकिन दलितों पर अत्याचार के मामले में यह राज्य शीर्ष के राज्यों में शुमार है और समुदाय को मिलनेवाले इंसाफ की तसवीर भी निराशाजनक है.

मिसाल के लिए, 2014 में गुजरात में दलित समुदाय के लोगों पर अत्याचार के सिर्फ 3.4 फीसदी मामलों में ही दोषियों को सजा हो सकी, जबकि इसका राष्ट्रीय औसत करीब 29 फीसदी रहा है. नेशनल क्राइम रिकाॅर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि गुजरात में दलित-उत्पीड़न के मामलों में दोषसिद्धि की दर बीते दस साल की अवधि में राष्ट्रीय औसत से छह गुना कम रही है. लेकिन, इन आंकड़ों के आधार पर यह अनुमान लगाना गलत होगा कि दलित समुदाय के सदस्यों की स्थिति देश के बाकी राज्यों में संतोषजनक है.

एनसीआरबी के आंकड़े यह भी बताते हैं कि भारत में होनेवाले कुल अपराधों में से एससी-एसटी समुदाय के विरुद्ध होनेवाले अपराधों की संख्या करीब एक चौथाई है, जबकि ऐसे 70-80 फीसदी मामलों में अभियुक्त पर दोष सिद्ध नहीं हो पाता. दलित समुदाय के विरुद्ध अपराध के एक लाख से ज्यादा मामले देश की विभिन्न अदालतों में लंबित हैं. यह तथ्य इशारा करता है कि दलित समुदाय के लोग कमोबेश पूरे देश में सामाजिक रूप से कमजोर स्थिति में हैं. यह स्थिति आजादी के 69 वर्षों के दौरान देश की सत्ता पर काबिज हुई सभी पार्टियों और सरकारों की विफलता है.

इसलिए जरूरी है कि सभी राजनीतिक पार्टियां ऊना में उपजे आक्रोश को गंभीरता से लें और वंचित वर्गों के सशक्तीकरण के उपायों पर नये सिरे से सोचें. ‘सामाजिक न्याय’ और ‘समावेशी विकास’ सिर्फ चुनावी नारा न रहे, यह सामाजिक व्यवहार और सरकार के नीतियों-कार्यक्रमों तथा नतीजों में भी परिलक्षित होना चाहिए.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें