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अंधविश्वास से निकलने की जरूरत

आज हमारा देश ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में लगातार प्रगति कर रहा है. इसने आम आदमी के जीवन को काफी प्रभावित भी किया है. देश के हरेक समस्या और जिज्ञासा का समाधान करने में ज्ञान-विज्ञान सफल हो रहा है, लेकिन देश के अनेक समुदायों में अब भी अंधविश्वास की गहरी जड़ें जमी हुई हैं. यह वही […]

आज हमारा देश ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में लगातार प्रगति कर रहा है. इसने आम आदमी के जीवन को काफी प्रभावित भी किया है. देश के हरेक समस्या और जिज्ञासा का समाधान करने में ज्ञान-विज्ञान सफल हो रहा है, लेकिन देश के अनेक समुदायों में अब भी अंधविश्वास की गहरी जड़ें जमी हुई हैं.
यह वही जड़ है, जो देश और समाज में अमान्य तर्को और कुरीतियों को जन्म देती है. यही वजह है कि आज देश में बाबाओं और धर्मगुरुओं को लोगों ने अहम स्थान दे रखा है.
लोग यह समझते हैं कि धर्मगुरु ही सभी समस्या का समाधान है. भूत, भविष्य की बातों से लेकर भय और चिंताओं से मुक्ति और शांति का एकमात्र समाधान इन्हीं गुरुओं पास है. वर्तमान परिवेश मे खास कर भारत के मध्य वर्ग मे कई बाबा तो भगवान की तरह न केवल पूजे जाते हैं, बल्कि भगवान के रूप और अवतार तक माने जाते हैं.
भाग-दौड़ भरी जिंदगी में भौतिकता और आध्यात्मिकता के बीच बिचौलिये के रूप में समाज में धर्म के नाम पर कुरीति फैलानेवाले बाबा और संस्थाओं की लॉटरी लग जाती है. ये लोगों को अपने मोहपाश में फांस कर आध्यात्मिकता की आड़ में वह हर नैतिक-अनैतिक कार्य करते और करवाते हैं, जो मानव जीवन के नियमों के विरुद्ध है. भौतिकतावादी मानव जीवन को जितना अधिक सुख-समृद्धि की आज दरकार है, उतनी ही आध्यात्मिकता की भी दरकार है. ऐसे में एक ऐसे गुरु की जरूरत है, जो दोनों के बीच तारतम्य स्थापित करते हुए मानव जीवन को सरल और सुगम रास्ते पर ले जाते हुए समाज की मर्यादा और परंपरा को बरकरार रखे.
इसके साथ देश के लोगों को भी ऐसे धर्मगुरुओं और संस्थानों से सावधान हो जाना चाहिए, जो धर्म की आड़ में दुकानदारी चला रहे हैं.
अनुराग मिश्र, पटना

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