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सर्वमान्य विस्थापन नीति की जरूरत
राज्य के अधिकांश लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कृषि पर निर्भर हैं, परंतु जब भी विकास योजनाएं बनती हैं, तो उद्योगों को ही प्राथमिकता दी जाती है. वर्तमान तकनीकी युग में लोग इसी को विकास का मापदंड मानते हैं. आये दिन पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ने को मिलता है कि फलां क्षेत्र या जिले में विकास […]
राज्य के अधिकांश लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कृषि पर निर्भर हैं, परंतु जब भी विकास योजनाएं बनती हैं, तो उद्योगों को ही प्राथमिकता दी जाती है. वर्तमान तकनीकी युग में लोग इसी को विकास का मापदंड मानते हैं.
आये दिन पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ने को मिलता है कि फलां क्षेत्र या जिले में विकास के लिए औद्योगिक इकाइयों का निर्माण किया जायेगा या पनबिजली के लिए नदी में बांध बनाया जायेगा. साथ ही कभी-कभी घोषणाएं भी की जाती हैं कि विकास कार्यों में बाधा पहुंचानेवालों को बरदाश्त नहीं किया जायेगा. इस तरह की घोषणाओं से मूलवासियों में भय उत्पन्न होता है.
उन्हें जमीन-जायदाद या गांव- गृहस्थी की चिंता सताने लगती है, क्योंकि मूलवासियों की जीविका का मूल साधन कृषि ही है. विकास की योजनाओं को मूर्तरूप देने के पूर्व नयी विस्थापन नीति बनाने की जरूरत है. जो सर्वमान्य हो.
बीके हेंब्रम, ई-मेल से
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