चंचल
सामाजिक कार्यकर्ता
रूमी कहते हैं इंसान और गधे का फर्क देखो. इंसान के पैर में कांटा चुभ जाये, तो वह उस पैर को उठा कर दूसरे पैर की रान पर रखेगा और और कांटे को निकाल कर चलना शुरू कर देगा. पर, अगर किसी ने गधे की दुम के नीचे कांटा रख दिया, तो वह दुलत्ती मारना शुरू कर देगा और पूंछ को बार-बार दुम पर पटकेगा.
नवल उपधिया ने कयूम को टोका- बड़े मियां! यह बात तो आपकी हो नहीं सकती, काहे से कि आपने इसके पहले ऐसी कोई बात की नहीं, और दूसरी बात आपने यह बात कीन उपाधिया को ही देख कर क्यों कही? कयूम मुस्कुराये- सही फार्मा रहे हो बरखुरदार! सुराज की लड़ाई में जब हम गान्ही बाबा के कहे मुताबिक नहीं, अपने मुताल्लिक रहे और खानदानी चरखा, जिसका तेंकुआ टूट गया था, उसे बनवाने बाजार लेके जा रहे थे, ना नुकुर करने की वजह से मरहूम अब्बा हुजूर से लतियाये गये थे, चुनांचे जोर-शोर से चले जा रहे थे दूकान की तरफ. इत्ते में पुलिस ने धर लिया और जेल भेज दिया. हम दस साल के रहे होंगे, यह बयालिस की बात है. तेरह दिन बाद छोड़ दिये गये, लेकिन इन तेरह दिन ने हमे बहुत कुछ सिखा दिया.
लौटे तो हम सुराजी बन गये और छियालिस में फिर जेल गये, पंडित मातादीन तिवारी, राम नरेश सिंह वगैरह के साथ रहे. रूमी का नाम उसी समय सुना रहा. बाहर निकलते समय बाबू राम नरेश जी ने हमें रूमी की किताब दी और बोले जब भी मन उदास हो, इसे खोल कर बांच लेना. आज वही बांच रहा था.
लाल्साहेब ने पूछा-तो आज आप उदास रहे? कयूम ने आंख नीची कर ली. लंबी सांस लिये-हां बेटा यही समझो, मौसम खराब है, कुछ भी बोलना खतरे से खाली नहीं है. मद्दू मुस्कुराये-दुष्यंत को पढ़िये कयूम मियां! लिखते हैं ‘मत कहो आकाश में कुहरा घना है / यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है.’ कीन उपाधिया मौके की तलाश में थे, जगह मिलते ही घुस गये-आज का अखबार देखा पंचो? संसद जाम. सरकार नहीं बना पाये, तो अब संसद नहीं चलने देंगे, कह रहे हैं इस्तीफा दो. चुनी हुई सरकार है इस्तीफा क्यों भाई? तुम्हारे बाप की खेती है?
लखन कहार से नहीं रहा गया, खैनी रगड़ते-रगड़ते बोले- नहीं, कीन उपाधिया के बाप परसू उपाधिया के बाप की खेती है. अभी कल की ही बात है अपने बापों को याद करो, नहीं चलने दिया था संसद.
हर रोज जाम होती थी. तब यह सवाल क्यों नहीं उठा? आज जब अपने पर आयी तो लगे चीखने. कीन हत्थे से उखड़ गये- एक तो लखन तुम पढ़े-लिखे लोगों के बीच में न बोला करो. लखन कहार मुस्कुराये- हम दिल्ली में ना अपने गांव में बोल रहे हैं, अगर किसी को ना पचे, त ऊ दिल्ली जाके अच्छी बात सुन आये. जब वोट की बात रही, तब तो इ ना बोले कि पढ़े-लिखे ही वोट देंगे. तब तो गदहा तक को बाप बोल के सलाम कर रहे थे!
उमर दरजी को ऐसे मौकों पर मजा लेने की आदत है और उकसाने का अलग तरीका है- सांति! सांति! लड़ाई नहीं. कीन सही कहि रहे हैं, बात करिये, मुला गाली तो मत दीजिए. आखिर कीन की भी तो कुछ इज्जत है. बेचारे ने चुनाव में न मदद किया होता, तो यह सरकार बनती? कीन फिर उखड़े-जब हमारे लोगों ने संसद जाम किया था तो ये कांग्रेसी रंगे हाथ पकड़े गये थे.
मद्दू पत्रकार ने कीन को घुड़की दी- बकवास तो करोई मत. उन घोटालों में कांग्रेस नहीं, कांग्रेस सरकार में साथ रहे अन्य दलों के मंत्री पकड़ाये थे, लेकिन चूंकि सरकार का मुखिया कांग्रेस का था, इस लिहाज से कांग्रेस ने उसे अपनी जिम्मेवारी मान कर मंत्रियों से इस्तीफे ही नहीं लिये, बल्कि उन्हें कानून के हवाले भी किया. और आज क्या हो रहा है? चोरी और सीना जोरी? कीन का मुंह बिचक गया, बोले- लेकिन दोनों में फर्क है.. अभी चाय आने में कुछ देर रही.
‘दोनों में फर्क है!’ कयूम मियां बुदबुदाये- फर्क तो है, एक किस्सा सुन लो.. किस्सा बाद में पहले हमें सुनो. चिखुरी जो अब तक अधलेटे पड़े थे, उठ कर बैठ गये- कीन महराज! दुनिया के सारे घपले-घोटाले एक तरफ कर दो और व्यापमं को एक तरफ, तो व्यापमं सबको मात दे देगा. इसमें कई लाख करोड़ का घोटाला हुआ सो अलग. छह हजार से ज्यादा लोग अब तक जेल जा चुके हैं, सैकड़ों फरार हैं.
पच्चास लोग मारे जा चुके हैं. पैसा देकर जो डॉक्टर-इंजीनियर बने हैं बगैर किसी काबिलियत के, इसका खामियाजा कई पीढ़ियां ङोलेंगी. और तो और विदेशों से हमारे डॉक्टर-इंजीनियर भगाये जा रहे हैं. सारी दुनिया तुम पर थूक रही है, जवाब तो देना ही पड़ेगा. इन्हीं सवालों से कांग्रेस गयी थी, उन्हीं सवालों से तुम जाने की तैयारी करो. बकवास नहीं.
उमर ने दरयाफ्त किया- जाना तय है?
मद्दू ने टुकड़ा जोड़ा- बिहार ठिकाने लगा देगा.
सबेरे वाली गाड़ी से चले जायेंगे.. कहते हुए नवल उपाधिया साइकिल समेत निकल लिये..