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अब भी बचे हुए हैं सामंती अवशेष

निवेदिता स्वतंत्र टिप्पणीकार तपती हुई लू में हम अलौली गांव पहुंचे. पूरा गांव हमारे इंतजार में था. यह वही जगह थी जहां दलित महिला की हत्या हुई थी. पिछले पांच माह में तीन दलित महिलाओं की हत्या हो गयी. लोग गुस्से में हैं. दलितों के लिए मातम करनेवाले इन एकाकी लोगों पर कौन ध्यान देगा. […]

निवेदिता
स्वतंत्र टिप्पणीकार
तपती हुई लू में हम अलौली गांव पहुंचे. पूरा गांव हमारे इंतजार में था. यह वही जगह थी जहां दलित महिला की हत्या हुई थी. पिछले पांच माह में तीन दलित महिलाओं की हत्या हो गयी. लोग गुस्से में हैं.
दलितों के लिए मातम करनेवाले इन एकाकी लोगों पर कौन ध्यान देगा. वे जानते हैं गरीबों की मौत पर कोई मातम नहीं मनाता. यह बड़ी क्रूर हिंसा थी. हत्या के मूल में विद्रोह था. व्यवस्था के प्रति विद्रोह, दलित स्त्री की देह पर की गयी हिंसा का विद्रोह, अन्याय के खिलाफ विद्रोह.
अलौली खगड़िया जिला का छोटा सा गांव है. जिस गांव के हर आदमी की जुबान पर उन तीन स्त्रियों के नाम हैं, उन्हीं में से थीं भागो देवी. लोगों ने बताया कि भागो देवी की मां ने उसका नाम भागो रखा था. बचपन में वो खेत, जंगल, नदी व पहाड़ छानती रहती थी. लोग कहते थे यह लड़की हवा से बातें करती है. हवा से बातें करनेवाली लड़की ने एक दिन जाना कि इस देश में दलित होने का क्या मतलब है. फिर वह लड़की जल, जंगल, जमीन पर हक जताने लगी. जाने कब उसे पता चला कि इस लड़ाई में जो साथ दे रहे हैं, वे उन्हीं जैसे लोग हैं.
गांव वाले कहते हैं कि वे कम्युनिस्ट हैं. गरीबों की पार्टी है. भागो इस पार्टी में शामिल हो गयी. एक शाम जब पूरा गांव जमीन के हक को लेकर बैठक कर रहा था, अपराधियों ने गोली मार कर भागों देवी की हत्या कर दी. अलौली प्रखंड में पिछले पांच माह में सात दलितों की हत्या हुई, जिसमें तीन महिलाएं थीं.
यह वही राज्य है, जहां की सरकारें पिछड़ों और दलितों की राजनीति करती रही है. भागो देवी जैसी हमारे देश में हजारों महिलाएं हैं, जो जिंदगी के लिए लड़तीं हैं और मारी जाती हैं. पर किसी दलित महिला की मौत खबर नहीं हो सकती है.
सामंतवादी अवशेष अब भी बचे हुए हैं. इस आजाद मुल्क में अब नयी ब्याही गयी कोई दलित स्त्री भले ही किसी जमींदार के पास परोसी नहीं जाती हो, पर किसी भी समय वह दबोच ली जाती है. अलौली प्रखंड में दलितों की बड़ी आबादी है. यह इलाका राजनीतिक रूप से सजग है.
बिहार में अभी भी कुछ जगह बची हुई है, जहां कम्युनिस्ट पार्टी जिंदा है. खगड़िया में कम्युनिस्ट पार्टी के सात लोगों की हत्या हो चुकी है भूमि आंदोलन को लेकर. भागो देवी और रुणा देवी जमीन की लड़ाई लड़ रही थीं. मारे गये कामरेड की चश्मदीद गवाह थीं. उस इलाके के लोग जानते हैं उस स्त्री को, जो जिंदगी भर सच के साथ खड़ी रही. जिसने स्त्रियों को बताया कि एक दलित स्त्री किस तरह सम्मान के साथ जी सकती है.
जिस दिन हत्यारों ने गोली मारी भागो देवी अपने गांव के लोगों के साथ जमीन के मुद्दे पर बैठक कर रही थी. सूरज आग उगल रहा था, पेड़ों की टहनियों में से गर्मी छन कर आ रही थी. फिर भी लोग जमे हुए थे. उसी समय हत्यारे आये और भागो देवी पर गोलियां चलायीं. जब तक वहां मौजूद लोगों को समझ में आता, तब तक भागो देवी दम तोड़ चुकी थीं.
हजारों लोगों ने अपनी कामरेड को विदा किया. चिताओं से उठनेवाली लाल रोशनी, मशालों से चारों दिशाओं में छिटकती हुई चिनगारियां ऊपर से झांकते हुए आसमान की ओर लहक रही थीं.

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