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आतंक से चीनी मोह

संयुक्त राष्ट्र के फाइनांशियल एक्शन टास्क फोर्स की बैठक में लश्करे-तय्यबा और उससे जुड़े गुटों की परिसंपत्तियों को जब्त करने में पाकिस्तानी निष्क्रियता पर भारतीय प्रस्ताव के विरुद्ध चीन की आपत्ति से दक्षिण एशिया में आतंक पर काबू पाने के वैश्विक प्रयासों को गहरा झटका लगा है. इससे पहले चीन संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंध समिति […]

संयुक्त राष्ट्र के फाइनांशियल एक्शन टास्क फोर्स की बैठक में लश्करे-तय्यबा और उससे जुड़े गुटों की परिसंपत्तियों को जब्त करने में पाकिस्तानी निष्क्रियता पर भारतीय प्रस्ताव के विरुद्ध चीन की आपत्ति से दक्षिण एशिया में आतंक पर काबू पाने के वैश्विक प्रयासों को गहरा झटका लगा है.
इससे पहले चीन संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंध समिति में कुख्यात आतंकी सरगना जकी-उर-रहमान लखवी की रिहाई पर भारत के विरोध को भी रोक चुका है. पाकिस्तान की ये कारगुजारियां अल-कायदा और उससे संबंधित गिरोहों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव संख्या 1267 का खुला उल्लंघन हैं. भारत-विरोधी आतंकी और चरमपंथी संगठनों को संरक्षण और सहयोग देना पाकिस्तान की चिर-परिचित नीति रही है, पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन द्वारा उसे शह देना चिंताजनक है. चीन ने पहले भी इस तरह के नकारात्मक रवैये दिखाया है.
वर्ष 2009 में उसने जैशे-मोहम्मद के मुखिया मसूद अजहर पर पाबंदी लगाने के प्रयास को रोक दिया था. दिसंबर, 2010 में सुरक्षा परिषद् में हाफिज सईद और जमात-उद दावा पर रोक लगाने के प्रस्ताव को अवरुद्ध कर दिया था. इसी वर्ष हिजबुल मुजाहिद्दीन के प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन को आतंकवादी सूची में डालने की भारतीय कोशिशों को भी रोक दिया था. चीन के लिए ये आतंकी सरगना और संगठन बहुत महत्वपूर्ण नहीं हैं, पर उसका एक उद्देश्य यह है कि जिनङिायांग प्रांत में बढ़ती अशांति को रोकने में पाकिस्तान उसकी मदद करे. लेकिन चीन और पाकिस्तान के बीच बढ़ते सांठगांठ के दूसरे आयाम भी महत्वपूर्ण हैं.
चीन साउथ चाइना सी समेत अन्य जगहों पर बढ़ते भारतीय प्रभाव से परेशान है तथा दक्षिणी एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में अपने वर्चस्व को बढ़ाना चाहता है. पाकिस्तानी राज्य और सेना के समर्थन से सक्रिय आतंकी सरगनाओं को शह देकर चीन भारत को पीछे ढकेलने की जुगत लगा रहा है. अफगानिस्तान से अमेरिकानीत नाटो सेना की वापसी के बाद चीन इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण वित्तीय और सैन्य खिलाड़ी बनकर उभर रहा है. पाकिस्तान में अमेरिका की तेजी से घटती लोकप्रियता का लाभ भी चीन उठाना चाहता है.
अफगानिस्तान में अपनी दखल को मजबूती देने के लिए पाकिस्तान को चीनी सहयोग की दरकार है. चीन को भी समझना चाहिए कि आतंकियों से उसकी मिलीभगत उसे भी चपेट में ले सकती है. ऐसे में भारत को अपनी कूटनीतिक क्षमता से विश्व का ध्यान इस खतरनाक गठजोड़ की ओर दिलाना होगा.

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