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अश्‍लीलता परोसतीं आज की फिल्में

आजकल के फिल्म निर्माता और संगीत के रचयिता तारीफ के काबिल हैं, जो ऐसी फिल्मों और गानों का निर्माण कर रहे हैं, जो न तो कर्णप्रिय हैं और न ही सामाजिक तौर पर दर्शनीय. फिल्म और संगीत के निर्माताओं के दिमाग की उपज की दाद देनी होगी. ईश्वर ने बेहतरीन सोच और अच्छा दिमाग दिया […]

आजकल के फिल्म निर्माता और संगीत के रचयिता तारीफ के काबिल हैं, जो ऐसी फिल्मों और गानों का निर्माण कर रहे हैं, जो न तो कर्णप्रिय हैं और न ही सामाजिक तौर पर दर्शनीय.
फिल्म और संगीत के निर्माताओं के दिमाग की उपज की दाद देनी होगी. ईश्वर ने बेहतरीन सोच और अच्छा दिमाग दिया है, लेकिन उसका सकारात्मक उपयोग करने के बजाय अश्‍लीलता परोसने में अधिक किया जा रहा है. आज जिस प्रकार की फिल्में बनायी जा रही हैं, उसे देख कर पत्थर की मूर्ति का मन भी बेईमान हो जाये. एक वह समय था, जब लोग संगीत को साधना समझते थे.
वे एक साधक थे, जो गीत-संगीत का निर्माण करते थे. आज वही गीत-संगीत अश्‍लीलता का जरिया बन गया है. यह समझ में नहीं आता कि ये फिल्मों के निर्माण में लगे लोग समाज को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं.
नीरू कुमारी, जरमुंडी, दुमका

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