7.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

इक ‘वंजारा’ गाये मौत के गीत सुनाये

।।सत्य प्रकाश चौधरी।।(प्रभात खबर, रांची)एक होता है ‘बंजारा’ जो ‘जीवन के गीत’ सुनाता है. एक हैं ‘वंजारा’, जो इशरत, सोहराबुद्दीन, तुलसी प्रजापति और न जाने कितनों को ‘मौत के गीत’ सुना चुके हैं. सुनाये भी क्यों न, वह कवि जो हैं. अब तक उनके तीन कविता संग्रह आ चुके हैं- ‘विजय पथ’, ‘सिंह गजर्ना’ और […]

।।सत्य प्रकाश चौधरी।।
(प्रभात खबर, रांची)
एक होता है ‘बंजारा’ जो ‘जीवन के गीत’ सुनाता है. एक हैं ‘वंजारा’, जो इशरत, सोहराबुद्दीन, तुलसी प्रजापति और न जाने कितनों को ‘मौत के गीत’ सुना चुके हैं. सुनाये भी क्यों न, वह कवि जो हैं. अब तक उनके तीन कविता संग्रह आ चुके हैं- ‘विजय पथ’, ‘सिंह गजर्ना’ और ‘रण टंकार’. इन कविता संग्रहों का नाम सुनते ही खून उबाल मारने लगता है, तो सोचिए कि जिस शख्स से इन्हें लिखा है, उसका खून कितना गर्म होगा. और जब खून में इतनी गर्मी हो, तो पांच-दस ‘दुष्टों’ का वध हो ही जाता है. वंजारा साहब के हक में जब मैंने यह दलील पेश की, तो मेरे दोस्त रुसवा साहब का मिजाज गरम हो गया. इतनी कड़वाहट से पान थूका, मानो एकाएक पान में कुनीन की गोली पड़ गयी हो. बोले- ‘‘कविता का मतलब भी समझते हो कि लगे लंतरानी करने.

जयशंकर प्रसाद ने ‘कामयानी’ में लिखा है- वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान/ उमड़ कर आंखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान.. ये लाइनें संस्कृत के आदिकवि बाल्मीकि के लिए हैं, जिनके मुंह से पहला श्लोक तब फूटा था, जब उन्होंने बहेलिये को प्रेम-क्रीड़ा में लीन एक क्रौंच पक्षी को तीर मारते देखा. ..तो मियां कविता दर्द से पैदा होती है, नफरत की आग से नहीं.’’ मैंने कहा,’’रुसवा साहब आप समङो नहीं. जैसे दुनिया की हर शै से ठीक उलट एक और शै होती है, वैसे ही कवि भी दो तरह के होते हैं. एक, जिंदगी का कवि और एक, मौत का कवि. आप कवि की जो खासियत बता रहे हैं, वह ‘जिंदगी के कवि’ की है.

लेकिन, वंजारा साहब तो ‘मौत के कवि’ हैं. क्रौंच-वध जैसी मामूली चीजों को तो वह तवज्जो ही नहीं देते. वह तो इनसानों को भी गोलियों से उड़ा कर यूं आगे बढ़ जाते हैं मानो कुछ हुआ ही न हो. उनकी कविता दर्द से नहीं, इनसानी खून से सुर्खरू होती है.’’ मेरी बातों से रुसवा साहब का मिजाज थोड़ा मामूल पर आया. बोले-’’ठीक कह रहे हो. जहां ‘मौत के सौदागर’ की हुकूमत हो, वहां सरकार का हाथ तो ऐसे ही कवियों के सर पर होगा. और फिर जैसा गुरु वैसा चेला.’’ मैंने कहा, ‘‘अरे नहीं, चेला गुरु से बढ़ कर है. यह समझिए कि गुरु गुड़ रह गये और चेला शकर हो गया.. गुरु कुकर्मी तो चेला कातिल.

बेचारा बरसों तक इस इंतजार में जेल में खामोश रहा कि एक दिन उसका ‘भगवान’ उसे बाहर निकालेगा, जैसे अपने ‘शाह’ को निकाल लिया है. पर भगवान ने अपने ‘भक्त’ को भुला दिया. उसका यकीन उस दिन हिल गया, जब उसके गुरु भी जोधपुर जेल पहुंच गये. उन्हें बचाना तो दूर उनका भगवान गुरु के खिलाफ बोलने लगा. वह सच्च गुरुभक्त निकला. गुरु और गोविंद (भगवान) में से गुरु को चुना. गुरु के लिए, उसने भगवान के खिलाफ कविता की जगह चिट्ठी लिख डाली. उसके लिए गुरु ही ‘आसा’ है, गुरु ही ‘राम’ है. उसने अब तक जिसे ‘भगवान’ समझा था, वह तो तोताचश्म निकला.’’

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें