।।मिथिलेश।।
प्रभात खबर, पटना
आज की राजनीति में धनबल-बाहुबल को बोलबाला है. लोहिया की दुहाई देनेवाली पार्टियां भी इससे अलग नहीं हैं. पर कुछ अपवाद अब भी हैं. बिहार के एक पुराने सोशलिस्ट कार्यकर्ता हैं, सीताराम दुखारी. 1967 में डॉ राममनोहर लोहिया एक बार औरंगाबाद जिले के गोह प्रखंड में आये थे. सीताराम तब 17 साल के किशोर थे. उनकी कविता से भाव-विभोर हुए लोहिया ने सीताराम के सिर पर हाथ फेर कर कहा- ‘‘सीताराम जैसे दुखारी बच्चे को राजनीति में आगे लाना चाहिए.’’ लोहिया जी ने दुखारी कहा, तो उनका नाम सीताराम चंद्रवंशी से सीताराम दुखारी हो गया.
सीताराम के पिता पास के एक जमींदार के घर बंधुआ मजदूर थे. सीताराम का जिस समय जन्म हुआ, उनकी मां जमींदार के खेत में धनरोपनी कर रही थीं. सीताराम जब बड़े हुए तो उन्होंने आंदोलन कर अपने पिता को बंधुआ मजदूरी से मुक्ति दिलायी. इंटर तक पढ़े दुखारी, जिले में फक्कड़ नेता माने जाते हैं. जिनके कपड़े भी लोग ही सिला देते हैं. जेपी आंदोलन में कपरूरी ठाकुर के साथ छिपे रहे दुखारी को पुलिस की पिटाई आज भी याद है. पर मलाल है कि जेल चले गये होते तो आज पेंशन मिलती. दुखारी गैर मजरूआ जमीन पर बेटे के नाम बने इंदिरा आवास में रहते हैं. जमीन का यह टुकड़ा उनके नाम नहीं हो सका. बेटा गांव में मजदूरी कर पेट पालता है. इस बार दुखारी और उनके बेटे ने दो बिगहा जमीन बटाई लेकर धान की खेती की है.
एक बिगहे की पैदावार किसान ले जायेगा और एक की फसल दुखारी के घर आयेगी. इतना सब होने के बाद भी फक्कड़, भूमिहीन दुखारी का लगाव राजनीति से बना रहा. नीतीश कुमार के प्रशंसक और उनके कट्टर समर्थक सीताराम दुखारी को 1995 में समता पार्टी से गोह विस सीट से उम्मीदवार बनने का विश्वास था, पर अंतिम समय में कांग्रेस से आये दूसरे नेता को टिकट मिल गया. 2000 के विधानसभा चुनाव में ओबरा से टिकट फाइनल था, पर अंतिम में कट गया. 2005 व 2010 के चुनाव में भी सीताराम को टिक नहीं मिला. पर इन सबसे दुखारी चिंतित नहीं दिखते.
जनता दल जब टूटा, तो लालू प्रसाद ने उनसे अपने साथ रहने का अनुरोध किया. पर, उन्होंने सारे प्रस्ताव ठुकरा नीतीश का साथ दिया. मानसून सत्र में मुख्यमंत्री से मिलने आये दुखारी को यह उक्ति याद है-’जिनको कछु नहिं चाहिए वे साहन के साह.’ दुखारी कहते हैं-’मुङो मलाल नहीं. निर्भय जियो, स्वाधीन चलो. लोकहित की राह पर स्वहित का विसजर्न कर दो.’ दुखारी ने मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखी- गौरव से सीना तान कहते हम सब बिहारी हैं/ अज्ञात कोने में पड़ा सिसकता एकमात्र सीताराम दुखारी है/ संघर्षो में पला-बढ़ा, हिम्मत कभी नहीं हारी है/ इसके मन में आस जगी कि अबकी बारी हमारी है.