भारत के नेता देशभक्त नहीं हैं, वरना 65 साल से कश्मीर का एक तिहाई भू-भाग पाक अधिकृत कश्मीर के रूप में न होता. हमारे तब के नेताओं की गलती से यह भू-भाग पाकिस्तान के कब्जे में है, लेकिन 65 साल में किसी भी पार्टी ने, किसी भी प्रधानमंत्री ने इस भू-भाग को वापस लेने के लिए पाक पर जोर नहीं डाला. न ही देश के किसी भी दल ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरा, न कोई धरना दिया न आंदोलन चलाया.
चीन ने भारत के एक बड़े भू-भाग पर अवैध कब्जा कर लिया. 1962 में भारत को उससे हार का मुंह देखना पड़ा. बाद के नेताओं को भी देशभक्त नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि उसके बाद भी यह भू-भाग हासिल करने की कोई कोशिश नहीं हुई. 1990 के दशक में आतंकवादियों ने कश्मीर से पांच लाख हिंदुओं को भगा दिया, लेकिन आज तक किसी भी पार्टी, किसी भी प्रधानमंत्री, गृह मंत्री ने इन लोगों को वापस इनके घरों में नहीं बसाया. पाकिस्तान की शह पर दाऊद इब्राहिम ने 1993 में मुंबई में विस्फोट करके 250 लोगों को मरवा दिया और पाकिस्तान भाग गया. अमेरिका ने पाकिस्तान में घुस कर लादेन को मारा, लेकिन हमारे किसी प्रधानमंत्री ने सेना को आदेश नहीं दिया कि पाकिस्तान में घुस कर दाऊद को मारो.
पाकिस्तानी आतंकियों ने भारत में घुस कर कश्मीर विधानसभा पर हमला किया. चरारे शरीफ और अक्षरधाम मंदिर पर हमला किया, फिर अयोध्या, लाल किला और संसद पर हमला, होटल ताज पर हमला किया, लेकिन हमारे किसी प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के भीतर आतंकी ठिकानों पर हमला नहीं किया, जैसा कि इजरायल करता है. ऐसा लगता है कि 65 सालों से देश की सत्ता जयचंदों, मानसिंहों और मीरजाफरों के हाथ में है.