भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए उत्साहवर्द्धक खबर है कि अब विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गयी है. अमेरिकी संस्था वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में हमारा सकल घरेलू उत्पादन 2.94 ट्रिलियन डॉलर के स्तर पर पहुंच गया था, जो ब्रिटेन और फ्रांस जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाओं से अधिक है. इससे इंगित होता है कि आर्थिकी के बुनियादी आधार मजबूत हैं तथा उनमें घरेलू व वैश्विक कारकों के झटकों का सामना करने की क्षमता है. अन्य कई आकलनों के अनुरूप इस रिपोर्ट में भी कहा गया है कि आर्थिक विकास की मौजूदा दर पांच फीसदी रह सकती है. अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सरकार की ओर से लगातार सुधार के उपाय किये जा रहे हैं.
इसका नतीजा यह है कि विदेशी निवेश और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश बढ़ रहा है, जो निवेशकों के भरोसे का सूचक है. औद्योगिक उत्पादन और खरीदारी सूचकांक में भी वृद्धि हो रही है. कई महीनों की गिरावट के बाद जनवरी में उत्पादन आठ सालों के सबसे उच्चतम स्तर पर रहा था. पिछली कुछ तिमाहियों में मांग कम होने का नकारात्मक असर उत्पादन पर पड़ा था.
मांग और नगदी की कमी से अर्थव्यवस्था तो कमजोर होती ही है, रोजगार में भी गिरावट आती है. उल्लेखनीय है कि बेरोजगारी में लगातार बढ़त हो रही है तथा इस वजह से बिक्री व बचत में कमी आ रही है. पर, इस स्थिति में बदलाव के संकेत हैं. बढ़ते व्यापार घाटे को देखते हुए विदेशी मुद्रा भंडार का बढ़ना अर्थव्यवस्था के संतोषजनक स्वास्थ्य को रेखांकित करता है. आर्थिक गतिविधियों के संकुचन से राजस्व में गिरावट स्वाभाविक है. इस वजह से कल्याणकारी योजनाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर के मद में अधिक निवेश नहीं हो पा रहा है, पर अप्रैल से जनवरी के बीच वस्तु एवं सेवा कर का मासिक संग्रहण छह बार एक लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा है.
शेयर बाजार सूचकांक भी बढ़ा है. अर्थव्यवस्था की चुनौतियों पर चर्चा करते हुए इस तथ्य का संज्ञान भी लेना चाहिए कि आगामी वित्त वर्ष के लिए प्रस्तावित बजट में योजनाओं के आवंटन में कटौती नहीं की गयी है और संकट के बावजूद घाटे को नियंत्रित रखने के प्रयास के साथ बहुत हद तक वित्तीय अनुशासन का पालन भी किया गया है. यह सरकार के आत्मविश्वास का परिचायक है, जिसने 2025 तक सकल घरेलू उत्पादन को पांच ट्रिलियन डॉलर तक ले जाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है.
सामाजिक स्तर पर विकास और तकनीकी विस्तार की अच्छी उपलब्धियों के बाद भी बेरोजगारी, ग्रामीण संकट, सुधारों को ठीक से अमल में नहीं लाया जाना, उपभोग में कमी, कमजोर निर्यात आदि जैसी समस्याएं आर्थिकी की राह में बाधा हैं.
इनके समाधान को प्राथमिकता देकर ही वृद्धि दर तेज की जा सकती है़ उम्मीद की जानी चाहिए कि केंद्र सरकार राज्यों तथा कारोबारी जगत के सहयोग के साथ इन चुनौतियों से पार पाने की कोशिशें तेज करेगी.