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हमारी राजनीतिक दुर्दशा

आज के भारत की राजनीतिक जमात प्राचीन समय में फ्रांस में उस दौर की याद दिला रही है, जब वहां पड़ी भयंकर अकाल में जनता भूखों तिल-तिलकर मरने लगी थी. जनता के कुछ प्रतिनिधि फ्रांस की तत्कालीन महारानी से उस कारुणिक स्थिति को बताने के लिए गये. दरबार में एक व्यक्ति डरते-डरते महारानी से कहा […]

आज के भारत की राजनीतिक जमात प्राचीन समय में फ्रांस में उस दौर की याद दिला रही है, जब वहां पड़ी भयंकर अकाल में जनता भूखों तिल-तिलकर मरने लगी थी. जनता के कुछ प्रतिनिधि फ्रांस की तत्कालीन महारानी से उस कारुणिक स्थिति को बताने के लिए गये. दरबार में एक व्यक्ति डरते-डरते महारानी से कहा कि ‘महारानी साहिबा! भयंकर अकाल पड़ा हुआ है, रोटी न मिलने से लोग मर रहे हैं.’ फ्रांस की महारानी चहककर बोली ‘लोग रोटी के लिए क्यों मर रहे हैं?

वे केक क्यों नहीं खाते!’ आज 2019 में भारत में सत्ता के कर्णधारों की मानसिक स्थिति प्राचीनकाल के उस फ्रांस की महारानी जैसे लगती है. इस देश की वित्तमंत्री यह कहतीं हैं, ‘मैं लहसन-प्याज नहीं खाती हूं, सो डोंट वरी!’ अब प्रश्न यह है कि भारत की वित्त मंत्री क्या देश की जनता की समस्याओं को केवल अपने तक सीमित रख सकती हैं? चिंता का विषय है कि राजनीति कहां जा रही है.

निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश

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