यह चुनावी दौर है. आम जनमानस भी विभिन्न राजनीतिक दलों की विचारधारा और उनके समर्थक-विरोधियों में विभक्त है. समर्थन और विरोध भी इस हद तक की, कि लोग आपसी प्रेम और सौहार्द की बलि देने को तैयार हैं.
लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हर समस्या के लिए नेता हीं नहीं जिम्मेदार हैं. हमें खुद भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए. समाज, राज्य और राष्ट्र इन दलों से बहुत ऊपर हैं और आम जनमानस को इन सबसे ऊपर उठकर सोचने की जरूरत है. राजनीतिक पार्टियों के लिए दलहित से ऊपर कुछ नहीं होता. अतः हमें इन दायरों में सिमटने के बजाय इन्हें उस रास्ते पर लाने के लिए अपनी सोच को विस्तार देने की आवश्यकता है.
ऋषिकेश दुबे, पलामू, झारखंड