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हर बाधा को जीत लेते हैं मोदी
प्रभु चावला वरिष्ठ पत्रकार prabhuchawla @newindianexpress.com एक सच्चा नेता इतिहास का हिस्सा बन भौगोलिक या यहां तक कि खगोलीय सीमाओं से भी ऊपर उठ जाता है. क्या एक विफलता के बाद का स्नेहिल आलिंगन राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीयता दोनों का प्रतीक बन सकता है? हां, यदि यह आलिंगन भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय तथा शक्तिशाली प्रधानमंत्री […]
प्रभु चावला
वरिष्ठ पत्रकार
prabhuchawla
@newindianexpress.com
एक सच्चा नेता इतिहास का हिस्सा बन भौगोलिक या यहां तक कि खगोलीय सीमाओं से भी ऊपर उठ जाता है. क्या एक विफलता के बाद का स्नेहिल आलिंगन राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीयता दोनों का प्रतीक बन सकता है?
हां, यदि यह आलिंगन भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय तथा शक्तिशाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हो. पिछले सप्ताह वह किसी नामचीन हस्ती को नहीं, बल्कि एक आंसूभरे चेहरे के अंतरिक्ष वैज्ञानिक को अपने छप्पन इंची सीने पर चिपटाने की वजह से प्राइम टाइम स्पेस तथा मुखपृष्ठों पर छा गये.
भारतीय चंद्र मिशन द्वारा लाखों किमी की दूरी सफलतापूर्वक तय करते हुए उसके अंतिम चरण में आयी अचानक विफलता के बाद प्रधानमंत्री द्वारा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष डॉ के सिवन का आलिंगन करता वह फोटोग्राफ बाधा पर भावनात्मक विजय का प्रतीक बन गया.
उन्होंने इसरो के हौसले को ऊंचाई दे एक वैज्ञानिक रुकावट को अंतरिक्ष क्षमता के राष्ट्रीय जश्न में तब्दील कर डाला. एक मामूली नाकामयाबी एक शानदार जीत का जयघोष हो चतुर्दिक गूंज गयी.
वैज्ञानिकों से अपने संबोधन में नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘आपकी आंखें बहुत कुछ कह रही थीं और मैं आपके चेहरे पर उदासी पढ़ सकता हूं. मैंने भी वह पल आपके साथ जिया.’ फिर उन्होंने उन्हें यह बताया कि वे क्यों रात में उनके साथ ज्यादा देर नहीं रुके और केवल सुबह ही उनसे मिलने वापस आये- ‘आपको उपदेश देने नहीं, सुबह-सुबह आपके दर्शन आपसे प्रेरणा पाने को किये.’ ‘यह कोशिश वैसी ही शानदार थी जैसी यह यात्रा रही,’ उन्होंने आगे कहा, ‘यह हमें एक ज्यादा मजबूत, बेहतर राष्ट्र बनायेगी. जल्दी ही एक नयी सुबह होगी और ज्यादा चमकदार कल आयेगा.
मैं आपके साथ हूं, देश भी आपके साथ है.’ संबोधन के आखिर में उन्होंने ‘भारत माता की जय के नारे बुलंद कराये.’ भारत ही नहीं, पूरे विश्व ने इसरो के करिश्मे की तारीफ की, न कि उसकी आंशिक विफलता को उजागर किया. मोदी का आलिंगन वायरल हो गया, जिसे विश्व स्तर पर 10 करोड़ से भी ज्यादा लोगों ने देखा. करीब 20 करोड़ से भी अधिक लोगों ने ट्विटर, इंस्टाग्राम एवं फेसबुक पर अपने भावोद्गार व्यक्त किये. इसके पूर्व कभी भी डिजिटल मीडिया निकाय इतना अधिक लाभान्वित नहीं हुए, क्योंकि प्रत्येक वर्चुअल संचार नेटवर्क चित्रों, संवादों तथा मीमों से पटे पड़े थे.
मोदी से प्रेरित होकर, फिल्मी सितारों, कॉरपोरेट लीडरों, विदेशी शख्सीयतों तथा विश्वसनीय विचार निर्माताओं ने भी सोशल मीडिया का सहारा लेते हुए इसरो के साथ अपनी एकजुटता का इजहार किया. भूटान, मॉरिशस, मालदीव्स, के प्रधानमंत्री के अलावा श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति ने इस असाधारण उपलब्धि के लिए इसरो की सराहना की. परंपरा के विपरीत, नासा को भी अंतरिक्ष विज्ञान में भारतीय मेधा स्वीकार करनी पड़ी. चंद्रमा की सतह पर लैंडर ‘विक्रम’ का अवतरण तथा रोवर ‘प्रज्ञान’ का विचरण देखने की प्रतीक्षा में प्रायः पूरा राष्ट्र आंखों में ही रात काट तड़के तक जगा रहा.
मोदी इस ऐतिहासिक पल का प्रत्यक्ष साक्षी बनने की प्रत्याशा में बंगलुरु पहुंचे थे, मगर इसरो से वापसी के क्रम में अपनी मुंबई यात्रा के दौरान वे एक हतोत्साह व्यक्ति नहीं, बल्कि एक ऐसे राष्ट्रनायक की तरह थे, जिसमें सभी घटनाओं-उपक्रमों को उपलब्धि एवं राष्ट्रीय गौरव के कृत्यों में बदलने का विलक्षण सामर्थ्य है.
व्यापक समर्थन के इस ज्वार ने इसरो को अनुप्राणित कर दिया कि वह अपने चंद्र मिशन पर सतत सन्नद्ध रहे. चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय प्रदेश का स्पर्श कर चंद्रयान-2 ने वह किया होता, जो इसके पूर्व किसी राष्ट्र ने नहीं किया.
इसरो के अनुसार, ‘उद्देश्य यह था कि चंद्रमा के बारे में हमारी समझ और विकसित हो-ऐसे अन्वेषण हों, जिनसे भारत तथा पूरी मानवता को लाभ पहुंचे.’ हालांकि यह स्वप्न पूरी तरह साकार नहीं हो सका, पर न्यूनतम लागत पर विकसित पूर्णतः स्वदेशी तकनीक तथा उपकरणों का उपयोग कर 95 प्रतिशत से ऊपर की सफलता हासिल कर लेने के कारण पूरी दुनिया ने इसरो की प्रशंसा की.
मोदी ने चंद्रयान-2 को महत्वाकांक्षी भारत का एक नया प्रतीक बताया. हरियाणा में अपने चुनावी भाषण के क्रम में उन्होंने कहा, ‘7 सितंबर की रात्रि में 1.50 बजे के बाद 7 सेकेंड की एक घटना ने पूरे देश को जगाकर एकजुट कर दिया. खेल भावना की ही तरह एक ‘इसरो भावना’ पूरे देश में व्याप्त है. देशवासी किसी नकारात्मकता को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं. उन सौ सेकेंड में देश ने जो कुछ भी किया, उसने 130 करोड़ देशवासियों की शूरता प्रदर्शित की.’
दरअसल, चंद्रयान-2 इस तथ्य का एक और उदाहरण है कि मोदी किस तरह ऐसे नारों, योजनाओं तथा परियोजनाओं का सृजन करते हैं, जो न केवल राष्ट्रीय महत्व हासिल कर लेते हैं, बल्कि जन आंदोलनों की शक्ल भी अख्तियार कर लेते हैं. ये सब विपक्ष को नेस्तनाबूद करने के हथियार भी हैं.
प्रारंभ में उन्होंने मीडिया से लेकर मनोरंजन की दुनिया की शख्सीयतों को साथ कर ‘स्वच्छ भारत’ के शुरुआत द्वारा ‘अस्वच्छ भारत’ की छवि रूपांतरित करने की मुहिम चलायी. उसके बाद बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और स्टार्ट अप इंडिया की बारी आयी.
दूसरा कार्यकाल हासिल करने के बाद उन्होंने संविधान की धारा 370 तथा 35ए को निष्प्रभावी किया. तीन तलाक को एक आपराधिक कृत्य बनाते हुए उन्होंने ‘फिट इंडिया अभियान’ की शुरुआत की. ‘यदि बॉडी फिट है, तो माइंड हिट है’ का उनका नारा युवाओं में बेहद लोकप्रिय हुआ. उनके पूर्ववर्तियों ने भी कई कल्याणकारी योजनाओं का आरंभ किया, मगर उनमें से कोई भी जन आंदोलन का रूप नहीं ले सका.
अपने वैचारिक तथा प्रशासनिक उपक्रमों के साथ जाति एवं पंथ से परे जनता की सहभागिता सुनिश्चित करना ही ‘मोदीकृत भारत’ की कामयाबी का मंत्र है. मोदी ने सीधा जनता तक पहुंचने की कला में प्रवीणता हासिल कर उसे भारत के भाग्य का हितभागी बना दिया है. वे जनता से सीधा संवाद करते हैं. वे परिणामों को सीधा उस तक पहुंचाते हैं.
वे ऐसे प्रथम नेता हैं, जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा एवं अर्थव्यवस्था को राष्ट्रीयता के पोषण में प्रयुक्त किया है. उन्होंने धर्मनिरपेक्षता को सियासी रूप से त्रुटिपूर्ण अवधारणा में तब्दील कर दिया है. एक आंशिक सफलता का जश्न एक विराट मिशन युक्त विजन के रूप में मनाकर मोदी ग्लैमरस उदारवाद को एक अप्रासंगिक कथ्य बना देने पर कटिबद्ध हैं.
(अनुवाद: विजय नंदन)
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