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प्राथमिकता होनी चाहिए सुरक्षा
अवधेश कुमार वरिष्ठ पत्रकार awadheshkum@gmail.com पूरे चुनाव अभियान के दौरान एक बात लगातार गूंजती रही है कि सुरक्षा खतरा का हव्वा वस्तुतः सत्तारूढ़ घटक जान-बूझकर लोगों का ध्यान जरूरी मुद्दों से भटकाने के लिए खड़ा कर रहा है. जबसे मजहबी चरित्र वाला वैश्विक आतंकवाद प्रचंड रूप में सामने आया है हमारे देश में लगातार बहस […]
अवधेश कुमार
वरिष्ठ पत्रकार
awadheshkum@gmail.com
पूरे चुनाव अभियान के दौरान एक बात लगातार गूंजती रही है कि सुरक्षा खतरा का हव्वा वस्तुतः सत्तारूढ़ घटक जान-बूझकर लोगों का ध्यान जरूरी मुद्दों से भटकाने के लिए खड़ा कर रहा है. जबसे मजहबी चरित्र वाला वैश्विक आतंकवाद प्रचंड रूप में सामने आया है हमारे देश में लगातार बहस चलती रही है कि यह खतरा वाकई है या सरकार लोगों का ध्यान भटकाने के लिए भय पैदा करती है?
जैसे ही आप देश की सुरक्षा की बात करेंगे एक वर्ग द्वारा आपको त्वरित प्रतिक्रिया मिलेगी कि भाजपा अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए राष्ट्रवाद और सुरक्षा की बात कर रही है. यह विषय का कितना सरलीकरण है, इसका अंदाजा उन लोगों को अवश्य है, जिन्हें विश्वव्यापी आतंकवाद के खतरनाक आयामों से लेकर पड़ोस के अन्य मंसूबों का पता है.
दुनिया के किसी भी देश के लिए सुरक्षा प्राथमिकता होती है. जिस देश और समाज ने सुरक्षा प्रबंधके प्रति लापरवाही की, उसे भयावह परिणाम भुगतने पड़े. श्रीलंका इसका ज्वलंत उदाहरण है.
आईएस ने श्रीलंका में फिर हमलों की धमकी दी है. इस धमकी से परे आपातकाल के बीच कई हजार फौज और पुलिस के जवानों के ऑपरेशन के दौरान बीच-बीच में हो रहे विस्फोट इसकी पुष्टि कर रहे हैं कि पूरे देश में बारूद बिछ गया था.
एक दूसरी घटना सैंदामरुडु में हुई, जहां तलाशी अभियान के दौरान आतंकवादी गोली चलाने लगा. पंद्रह लोग मारे गये. ऐसी और न जाने कितनी घटनाएं सामने आयेंगी. श्रीलंका इस भयावह स्थिति से बच सकता था. भारत ने उसे खुफिया इनपुट दिये थे, अमेरिका ने भी चेताया था, लेकिन वहां के अधिकारी यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि आतंकवाद उनके यहां आ सकता है. चर्च पर धमाके की सटीक सूचना भारत ने हमले के दिन एवं उसके कुछ दिनों पूर्व भी दी थी. लेकिन, पुलिस प्रमुख ने उसे गंभीरता से लिया ही नहीं.
वस्तुतः 2009 में लिट्टे के अंत के साथ श्रीलंका आंतरिक सुरक्षा को लेकर धीरे-धीरे निश्चिंत हो गया था. इसका लाभ उठाकर आईएस से प्रेरित आतंकवादियों ने व्यापक जाल फैला लिया. घटना वहां होती है और बयान आईएस जारी कर देता है.
वह उन आतंकवादियों के नाम भी बता देता है, जो संघर्ष में या आत्मघाती हमले में मारे गये. जिस नेशनल तौहीद जमात और उसके नेता जाहरान हाशिम को आतंकवाद का मुख्य सूत्रधार माना गया है, उसके बारे में पुलिस को कई बार शिकायतें मिलीं, पर गंभीरता से उसकी छानबीन नहीं की गयी.
भय यह पैदा हो रहा है कि भारत जिस तरह की मानसिकता में जी रहा है, कहीं एक दिन हमारे यहां भी वैसी स्थिति पैदा न हो जाये. आखिर श्रीलंका हमले के सूत्र भारत से भी तो जुड़े हैं. जाहरान हाशिम गुपचुप तरीके से भारत आता था और उसके भाषण के वीडियो यहां पहुंचते थे. हाशिम 2017 में दो बार भारत आया था और कुछ महीनों तक यहीं रहा.
हाशिम तमिलनाडु तौहीद जमात (टीएनटीजे) के साथ भी जुड़ा हुआ था. हालांकि, अभी तक इस संगठन के आतंकवादी गतिविधियों में किसी तरह की संलिप्तता के प्रमाण नहीं है. किंतु यह तथ्य देश को पता होना चाहिए कि एनआईए को कोयम्बटूर में आईएस मॉड्यूल की जानकारी मिली और उसकी जांच के दौरान जो कुछ प्राप्त हुआ, उनके आधार पर भारतीय अधिकारियों ने श्रीलंका की खुफिया एजेंसियों को आतंकवादी हमले के संबंध में अलर्ट भेजे थे.
एनआईए की जांच के दौरान बहुत सारे तथ्य सामने आये और छह लोग गिरफ्तार किये गये. सात लोगों के खिलाफ न्यायालय में आरोपपत्र भी दायर हो चुका है. एनआईए की जांच में साफ हो गया कि ये सभी आईएस की हिंसक चरमपंथी विचारधारा से प्रभावित थे.
सोचनेवाली बात है कि जिन आरोपियों की गिरफ्तारी से श्रीलंका में हमला किये जाने की जानकारी मिली, उनसे भारत में हमले की कोई सूचना नहीं मिली होगी, ऐसा हो सकता है क्या?
जांच एजेंसियां संपूर्ण मामले के सामने आने के बीच आये तथ्यों को सार्वजनिक नहीं करतीं. अगर ये भारत में पकड़े गये, तो खतरा किसी दूसरे देश के लिए नहीं हो सकता. आप एक वर्ष में ही आईएस से प्रभावित संभावित आतंकवादियों या मॉड्यूलों के पकड़े जाने या सामने आने की घटनाओं पर नजर दौड़ा लीजिये, तो आपको आसन्न खतरे का अहसास हो जायेगा.
खतरा काल्पनिक नहीं, वास्तविक है. दुर्भाग्य यह कि हमारे यहां आतंकवाद के खतरे को लेकर इतने मतभेद हैं कि अगर कोई घटना हो जाये, तो उसकी पुनरावृत्ति रोकने के लिए सख्त कदम उठाने का माद्दा भी कमजोर हो गया है. श्रीलंका तो हमले के बाद जड़ता की स्थिति से बाहर आकर पूरी तरह गतिशील हो गया है.
मसनल, बुर्का एवं नकाब पहनने का निषेध, शुक्रवार को नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद में एकत्रित न होने, चर्चों को खतरा समाप्त होने तक बंद रखने जैसे कदम उठाये हैं. स्वयं मुस्लिम समुदाय के अग्रणी लोग आगे आकर अपील कर रहे हैं कि सुरक्षा खतरा देखते हुए बुर्का और नकाब नहीं पहनना चाहिए. हमारे यहां ऐसे कदम उठाये जायें, तो धार्मिक स्वतंत्रता पर आघात से लेकर न जाने क्या-क्या आरोप लगने लगें.
भारत आतंकवाद ही नहीं, आंतरिक सुरक्षा पर मंडराते हर प्रकार के खतरे से लड़ने के लिए आवश्यक संकल्प के अभाव वाला देश बन चुका है. पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के विरुद्ध कदम भी यहां विवाद के विषय बनते हैं और एक वर्ग तो इसे उन्मादित राष्ट्रवाद का कदम तक साबित करने लगता है. यह स्थिति हर विवेकशील व्यक्ति के लिए चिंताजनक है.
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