14.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

सत्य की मुद्रा में असत्य!

II कुमार प्रशांत II गांधीवादी विचारक [email protected] सेवाग्राम की बापू-कुटी के भीतर की एक दीवार पर, जिसके सम्मुख गांधीजी बैठा करते थे, कुछ सुवाक्य लिखकर टांगे हुए हैं. वे अाज के नहीं हैं, बापू के वक्त के हैं. उसमें एक वाक्य कहता है कि झूठ कई तरह से बोला जाता है- मौन रखकर भी अौर […]

II कुमार प्रशांत II
गांधीवादी विचारक
सेवाग्राम की बापू-कुटी के भीतर की एक दीवार पर, जिसके सम्मुख गांधीजी बैठा करते थे, कुछ सुवाक्य लिखकर टांगे हुए हैं. वे अाज के नहीं हैं, बापू के वक्त के हैं.
उसमें एक वाक्य कहता है कि झूठ कई तरह से बोला जाता है- मौन रखकर भी अौर अांखों के इशारों से भी. वचन से बोले गये झूठ की अपेक्षा इन दो प्रकारों से बोला गया झूठ ज्यादा खतरनाक होता है. पता नहीं, प्रधानमंत्री मोदी ने यह सुवाक्य पढ़ा है या नहीं, लेकिन अाज हर कोई उनका मुरीद है कि वे किसी भी तरह का असत्य सत्य की मुद्रा में बोल सकते हैं.
चुनावी मौसम हो तब तो प्रधानमंत्री मोदी की यह कला बला की परवान चढ़ती है. वे यकीन करते हैं कि युद्ध व प्यार मेें सब कुछ जायज होता है; अौर कौन कहेगा कि चुनाव युद्ध का ही दूसरा नाम नहीं है? भारत के 15वें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निशाने पर हैं प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू! वे हर हथियार से, हर कहीं नेहरू पर प्रहार करते हैं.
अर्द्धसत्य अौर असत्य उनका सबसे बड़ा हथियार होता है, जिसे वे इतिहास के मैदान से चुनकर लाते हैं. लेकिन, इतिहास ही उनका हर वार तुक्का साबित करता जाता है. प्रधानमंत्री शायद इतिहास का यह गुण नहीं पहचानते हैं कि वह न तो सदय होता है, न निर्दय, वह तटस्थ होता है. यही नेहरू की ताकत है, यही नरेंद्र मोदी की कमजोरी है!
प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने गुजराती कार्ड खेला था अौर सरदार पटेल व नेहरू की कुश्ती कर्रवाई थी. वे ऐसा प्रचारित करने में जुटे रहे कि जैसे नेहरू किसी तिकड़म से देश के पहले प्रधानमंत्री बन गये थे.
उनकी सारी बातें खोखली साबित हुईं, क्योंकि वे यह सच कभी बोल ही नहीं पाये कि सही या गलत, देश के पहले प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू का चयन तो महात्मा गांधी ने किया था. तो गुजराती मोदी को लड़ाई लड़नी हो तो गुजराती महात्मा गांधी से लड़नी चाहिए, नेहरू से नहीं. गांधी ने ऐसा करके यह बतलाया कि लोकतंत्र केवल संख्यासुर का गणित नहीं होता है; गुणवत्ता की तुला पर भी उसे तोलना पड़ता है. नरेंद्र मोदी ने फिर यह सच खोज निकाला कि सरदार पटेल की मृत्यु के शोक में शरीक होने की मनुष्यता भी नेहरू नहीं दिखा सके. लेकिन, वे उस फोटो का जवाब नहीं दे सके, जिसमें सरदार के पार्थिव शरीर के पास शोकग्रस्त नेहरू को सबने देखा.
सरदार पटेल के निधन पर लोकसभा में उन्हें दी गयी नेहरू की श्रद्धांजलि का हर एक शब्द इन दो महापुरुषों के रिश्तों की गहराई का दस्तावेज ही है. मतभेद, तो वे तो थे; लेकिन दोनों ने बापू की खींची उस लक्ष्मण-रेखा को कभी पार नहीं किया, जिसे 30 जनवरी, 1948 को गांधी ने तब खींची थी, जब गोली खाने से ठीक पहले सरदार उनसे मिले थे.
नेहरू पर उन्होंने परिवारवाद का अारोप लगाया, लेकिन इस सच को वे कहां छुपा कर रखते कि नेहरू के बाद लालबहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री चुने गये थे अौर ताशकंद में अगर शास्त्रीजी की अचानक मौत नहीं हुई होती, तो इंदिरा गांधी के लिए प्रधानमंत्री बनना कभी शक्य नहीं होता.

शास्त्रीजी की मृत्यु के बाद, मोरारजी देसाई को पीछे कर इंदिराजी को नेहरू ने प्रधानमंत्री नहीं बनाया, बल्कि कामराज नडार की कमाल की खोपड़ी ने बनाया! यही इतिहास की तटस्थ गवाही है.
बीते दिनों कर्नाटक के चुनाव प्रचार में नरेंद्र मोदी को फिर जरूरत पड़ी कि प्रांतीयता की संकीर्णता को उभारकर जितना बटोर सकें, वोट बटोरें, तो उन्होंने एक सार्वजनिक सभा में असत्य की झड़ी लगा दी. उन्होंने कहा कि कर्नाटक के दो लालों को नेहरू ने अाजीवन अपमानित किया.
कौन थे ये दो लाल? जनरल थिमैया अौर जनरल करियप्पा. प्रधानमंत्री ने कहा कि 1948 में पाकिस्तान से युद्ध में कश्मीर को बचाने का अभूतपूर्व कार्य करनेवाले भारतीय सेना के चीफ जनरल थिमैया को नेहरू अौर उनके रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन ने इतना जलील किया कि उन्होंने इस्तीफा दे दिया.
यह इतिहास यदि बच्चे पढ़ने लगें, तो उन्हें यह कैसे पता चलेगा कि 1948 में भारतीय सेना के चीफ थिमैया थे ही नहीं, एक अंग्रेज जेनरल रॉय बुखर थे? तब कृष्ण मेनन नहीं, सरदार बलदेव सिंह देश के रक्षा मंत्री थे. थिमैया साहब 1957 में सेना प्रमुख बने अौर 1961 में अपना कार्यकाल पूरा कर विदा हुए. यह नेहरू ही थे, जिन्होंने अवकाशप्राप्ति के बाद जनरल थिमैया को विशेष भारतीय कार्यदल का प्रमुख बनाकर कोरिया भेजा था. थिमैया सेना के उन चुनिंदा लोगों में थे, जिन्हें नेहरू सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया था.
प्रधानमंत्री मोदी ने जनरल करियप्पा का प्रसंग उठाया अौर कहा कि 1962 में चीन से युद्ध में सेना प्रमुख पराक्रमी जनरल करियप्पा के साथ नेहरू ने कैसा दुर्व्यवहार किया! अब कोई उन्हें इतिहास की वह किताब दिखाये कि 1962 में भारत-चीन युद्ध से नौ साल पहले ही जनरल करियप्पा रिटायर हो चुके थे.
करियप्पा स्वतंत्र भारत के पहले भारतीय सेना प्रमुख थे अौर उन्हें यह पद नेहरू सरकार ने दिया था. नेहरू के साथ करियप्पा के मतभेद थे, लेकिन करियप्पा के साथ कोई बदसलूकी नहीं हुई थी. साल 1986 में राजीव गांधी की सरकार ने ही करियप्पा को देश का पहला फील्डमार्शल बनाकर सम्मानित किया था.
असत्य दो तरह का होता है- सफेद अौर काला! समाज में दोनों के विशेषज्ञ होते हैं. लेकिन एक असत्य अौर भी होता है- विषैला असत्य! यह समाज की जड़ में मट्ठा डालता है. चुनाव कोई भी जीते, ऐसे असत्य से समाज हारता ही है. हम इसी मुहाने पर खड़े हैं.
Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel