।। कमलेश सिंह।।
(इंडिया टुडे ग्रुप डिजिटल के प्रबंध संपादक)
महाभारत की लड़ाई अठारह दिन चली थी. अभी जो महाभारत जारी है उसमें हम नौ दिन में अढ़ाई कोस. अपने महान देश में दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव चल रहा है. नौ चरणों में. जिन्होंने पहले चरण में वोट दिया वह फैसला होते-होते बूढ़े हो जाएंगे. खैर इतनी लंबी लड़ाई में हम भूल जा रहे हैं कि कौन किसका दुश्मन है और कौन किसका भाई है. भाई हो भी तो महाभारत तो भाइयों की ही लड़ाई थी. चूंकि इस लड़ाई में हथियारों का प्रयोग वर्जित है तो लोगों ने जुबान को हथियार बना लिया है. जिस ब्लेड से अपने चेहरे के बाल हटाने थे, दूसरों की गर्दन पर चला रहे हैं.
भाईचारे का माहौल बना रहे हैं. लड़ाई जितनी लंबी खिंच रही है, दुर्भावना भी साथ-साथ बढ़ रही है. एक-दो चरण में निपट जाता तो जहर भी कम उगलते. गिरिराज सिंह जैसे जंतु ‘सर्वे भवंतु सुखिन:’ पर जोर देते, मोदी-विरोधियों को पाकिस्तान नहीं भेजते. गिरिराज ने कहा उनकी बातों का गलत मतलब निकाला जा रहा है. बातों का चक्कर यही है. जिसको जो निकालना है, निकाल लेता है. मतलब निकल गया तो फिर पहचानते नहीं. चुनाव में द्विअर्थी संवादों की ऐसी भरमार है कि कादर खान शरमा जाएं. द्विअर्थी संवादों से संवाद की अर्थी निकल रही है. अच्छे दिन आने वाले हैं. इसके भी दो अर्थ हैं. गुजरात की तरह अच्छे या झारखंड की तरह अच्छे. जब भाजपा कहती है कि मोदी पूरे देश को गुजरात बना देंगे तो उससे बहुतों की उम्मीदें आसमान पर होती हैं और बहुतों को सिहरन. गुजरात के दो मायने हैं. सभी जानते हैं. बताने की जरूरत नहीं है.
एक द्विअर्थी संवाद ने महाभारत का रु ख बदल दिया था. अश्वत्थामा हतो, नरो वा कुंजरो वा. राहुल जी जहां जाते हैं वहां कहते हैं कि सारा सामान ‘मेड इन चाइना’ है और उनके सपनों के भारत में ‘मेड इन इंडिया’ हो जाएगा. वह देश को चीन बना देना चाहते हैं. मोदी जी की पार्टी भी शहरों को शंघाई बनाना चाहती है. कभी चीनी हमारे दुश्मन होते थे, हम उनके दांत खट्टे करने की बात करते थे. अब वही चीनी हो गए हैं. आर्थिक, सामरिक विश्वशक्ति बनने में हम फिसड्डी हो गए और चीन हमसे आगे निकल गया. अब सब चाहते हैं कि हम चीन बनें. देश को गुजरात बनाने की बात हो या चीन बनाने की, दोनों द्विअर्थी हैं. क्योंकि समर्थक सही बता सकते हैं और विरोधी गलत ठहरा सकते हैं. चीन के बारे में हमें सब अच्छा ही बताते हैं. हालांकि चाइना का माल कितना टिकता है, ये सब जानते हैं. चीन की चमकती तस्वीर के पीछे की सिसकियां सुनें तो पता चलता है कि वहां आजादी नहीं है. लोग अपनी सरकार के गुलाम हैं और वोट देकर उसे नहीं बदल सकते. हमारा चालू महाभारत चाहे जितना कठिन हो, हमारे पास एक बटन है जिससे हम अपनी राय बता देते हैं. वहां फेसबुक और ट्विटर नहीं है जिससे युवा अपनी बात दुनिया तक पहुंचा सकें. अखबार हैं पर सरकार जो चाहती है वही छपता है. वहां अट्टालिकाएं है, फैक्ट्रियां हैं, आइफोन बनते हैं, पर लोगों की आवाज दबी होती है. कहने को साम्यवाद है, पर माओ की संतानों ने अमीरी-गरीबी की खाई को पाटा नहीं, चौड़ा किया है. लगभग पचास करोड़ लोग बमुश्किल जीते हैं. तीन करोड़ से ज्यादा लोग गुफाओं में रहते हैं जबकि छह करोड़ मकान खाली पड़े हैं. सिर्फ 2005 में बाकी दुनिया में जितने लोगों को फांसी हुई, उससे चार गुना लोगों को खड़ा कर गोली मार दी गयी अकेले चीन में.
हमारे नेता जिस शंघाई की चमक से चौंधियाए हैं, उस शंघाई में हफ्तों सूरज नहीं दिखता. प्रदूषण ने हर नागरिक को मास्क पहन कर जीना सिखा दिया है. सांस लेने लायक हवा नहीं है और लगभग 70 करोड़ लोगों के हिस्से जो पानी आता है वह प्रदूषित हो चुका है. धर्म की आजादी का ये हाल है कि अवतार भी सरकार की परिमशन के बिना पैदा नहीं होते. दलाई लामा भारत में रहते हैं क्योंकि वहां की सरकार ने इस लामा अवतार को मान्यता नहीं दी. चीन चांद हो गया है. हम चांद को महबूब का मुखड़ा समझते हैं, उसके दाग को माफ करते हैं. कर भी दें तो चांद के एक हिस्से पर कभी रोशनी ही नहीं पड़ी. वह भी चांद का सच है. आधा सच. गुजरात मॉडल हो या चीन का मॉडल, सब के दूसरे पहलू हैं. भारत को भारत ही रहने दो. मोदी से जो डरते हैं, उन्हें डरने की जरूरत नहीं क्योंकि भारत पर भारत का मॉडल ही लागू हो सकता है. जो उम्मीदों के पुल बांधते हैं उन्हें भी आगाह रहना चाहिए क्योंकि मॉडल फैशन शो में चलते हैं, घर चलाने के लिए उसे गृहस्थ या गृहिणी होना पड़ता है. चांद के चक्र में अमावस भी है और पूनम भी. ये चलता रहता है. द्विअर्थी संवाद के विवाद में मत पड़िए, नहीं तो ये पूछ डालेंगे पूरी महाभारत पढ़ ली और सीता किसकी पत्नी है, यही मालूम नहीं.