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विराट कोहली ने नीरस मैच को बना दिया रोचक

अनुज कुमार सिन्हा श्रीलंका के साथ काेलकाता में खेला गया पहला टेस्ट भले ही भारत जीत नहीं सका, लेकिन मैच में अंतिम क्षण तक राेमांच बना रहा. लगा था कि मैच का नीरस अंत हाेगा, लेकिन काेहली ने मैच काे राेमांचक बना दिया. पांचवें दिन दाेनाें टीमाें के लिए दरवाजे खुले हुए थे. पहली पारी […]

अनुज कुमार सिन्हा
श्रीलंका के साथ काेलकाता में खेला गया पहला टेस्ट भले ही भारत जीत नहीं सका, लेकिन मैच में अंतिम क्षण तक राेमांच बना रहा. लगा था कि मैच का नीरस अंत हाेगा, लेकिन काेहली ने मैच काे राेमांचक बना दिया. पांचवें दिन दाेनाें टीमाें के लिए दरवाजे खुले हुए थे.
पहली पारी में अच्छी लीड के कारण श्रीलंका अपने काे सुरक्षित मान रहा था, जबकि दूसरी पारी में बेहतर शुरुआत (एक विकेट पर 171 रन) के कारण भारत भी निश्चिंत था. लेकिन जिस तरीके से भारत की दूसरी पारी बाद में बिखरी, अगर काेहली नहीं जमे हाेते, ताे भारत हार भी सकता था. जिस समय अश्विन आउट हुए, भारत का स्काेर सिर्फ 269 था यानी बढ़त 150 से भी कम. लेकिन इसके बाद काेहली ने न सिर्फ शतक जमाया, बल्कि तेज बैटिंग की आैर श्रीलंका काे 231 रन का लक्ष्य दिया.
आेवर भी कम थे. लगभग 30 आेवर. काेहली भी जानते थे कि 30 आेवर में कमजाेर से कमजाेर टीम काे भी आउट करना मुश्किल है. काेहली चाहते, ताे कुछ पहले यानी 8-10 आेवर पहले भी पारी घाेषित कर सकते थे, लेकिन वह जाेखिम हाेता. एक ताे स्काेर (लक्ष्य) कम हाेता आैर दूसरा श्रीलंका काे समय भी मिल जाता.
ऐसे में टीम इंडिया हार भी सकती थी. क्रिकेट में रुचि रखनेवाले जानते हैं कि 1979 में कराची टेस्ट में भारत का क्या हाल हुआ था. पाकिस्तान ने (गाैर कीजिए टेस्ट मैच में) भारत के खिलाफ चाैथी पारी में सिर्फ 24.5 आेवर में 164 रन बना कर मैच जीत लिया था. काेहली ऐसा काेई माैका श्रीलंका काे देना नहीं चाहते थे.
हां, इतना तय था कि अगर आरंभ में एक-दाे विकेट गिर जाये, ताे मैच में राेमांच आयेगा. जीत भले ही न मिले. वही हुआ भी. श्रीलंका की टीम भुवनेश्वर कुमार आैर शमी के दबाव में दिखी. अगर किसी टीम काे सिर्फ 30 आेवर में विपक्षी टीम काे आउट करना हाे आैर उसने अगर 12वें आेवर में ही 22 रन पर चार विकेट गिरा दिये हाें, ताे मनाेबल बढ़ेगा ही.
अगर आज चांदीमल (20) आैर डिकवेला (27) थाेड़ा जमे नहीं हाेते, ताे श्रीलंका की हार तय थी. यह मैच भारत के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्याेंकि जाे टीम पहली पारी में 79 रन पर छह विकेट खाे चुकी थी, पहली पारी में 122 रन से पिछड़ रही थी, वह अंतिम दिन के अंतिम सत्र में विपक्षी टीम पर चढ़ बैठी. 75 रन पर सात विकेट उड़ा देना मामूली बात नहीं है.
अगर राेशनी ने साथ दिया हाेता, ताे जिस तरीके से भुवनेश्वर आैर शमी गेंदबाजी कर रहे थे, उन्हें तीन विकेट आैर गिराने में समय नहीं लगता. भारत जीत से वंचित रहा. जब अंतिम क्षण का खेल चल रहा था, बार-बार बल्लेबाज लाइट कम हाेने की अपील कर रहे थे. 1979 में इसी मैदान (काेलकाता) में वेस्टइंडीज के खिलाफ खेला गया मैच याद आ गया. वह मैच भी भारत जीतते-जीतते रह गया था.
कालीचरण की टीम उस मैच में 197 रन पर नाै विकेट गवां चुकी थी (लक्ष्य था 335 का). राेशनी कम हाे चुकी थी. राेशनी इतनी कम हाे चुकी थी कि कहीं-कहीं बल्ब जल चुके थे, लेकिन अंपायर खेल काे जारी रखे थे. बार-बार अपील के बाद मैच ड्रॉ घाेषित कर दिया गया था. भारत काे जीत के लिए उस समय सिर्फ एक विकेट आैर चाहिए था. 38 साल बाद काेलकाता में वही स्थिति बनी थी, लेकिन भारत जीत नहीं सका.
काेहली के लिए यादगार मैच. 18वां शतक (तीनाें फॉर्मेट काे मिला कर 50वां शतक). बड़ी उपलब्धि. जिस तरीके से अंत में श्रीलंका के बल्लेबाज एक-एक गेंद काे किसी तरह बचा रहे थे, उससे भारतीय गेंदबाजाें का मनाेबल बढ़ा है आैर इसका लाभ आनेवाले टेस्ट में देखने काे मिलेगा.
Prabhat Khabar Digital Desk
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