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पीड़ादायक और बीमारियों का कारण है महिला खतना (FGM), संविधान पीठ को सौंपा जायेगा प्रतिबंध का मामला

नयी दिल्ली : कल केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में महिलाओं का खतना करने की प्रथा का विरोध करने वाली याचिका का समर्थन करती है. केंद्र की ओर से हाजिर अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा , ‘ मैं याचिकाकर्ता का समर्थन करता हूं. प्रधान न्यायाधीश […]


नयी दिल्ली
: कल केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में महिलाओं का खतना करने की प्रथा का विरोध करने वाली याचिका का समर्थन करती है. केंद्र की ओर से हाजिर अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा , ‘ मैं याचिकाकर्ता का समर्थन करता हूं. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा , न्यायमूर्ति ए एम खानविल्कर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने पक्षकारों से याचिका और इस पहलू पर दलील रखने को कहा कि क्या इसे संविधान पीठ के पास भेजा जा सकता है.

वहीं मुस्लिम समूह की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने मामले की पहले हुई सुनवाई में कहा था कि शुरूआती सुनवाई के दौरान मामले को संविधान पीठ के पास भेजा जाए क्योंकि यह धर्म के अनिवार्य दस्तूर के मुद्दे से जुड़ा है , जिसका परीक्षण किये जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा था कि महिलाओं का खतना किया जाना धार्मिक और पारंपरिक प्रथा है और अदालतों को इस क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.

गौरतलब है कि वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन द्वारा फरवरी 2017 में एक फैक्ट रिपोर्ट जारी की गयी थी जिसके तथ्य ना सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि महिलाओं की जिंदगी की एक ऐसी सच्चाई से रूबरू कराते हैं, जो रूह कंपा देने वाली है. WHO के अनुसार विश्व जनसंख्या में 20 करोड़ महिलाएं ऐसी हैं जो इस अमानवीय व्यवहार का शिकार होती हैं. यह अमानवीय परंपरा बेहद पीड़ादायक है. इस प्रक्रिया को Female genital mutilation कहा जाता है. यह परंपरा अफ्रीका, मध्य पूर्व और एशिया में कायम है. भारत में भी यह परंपरा मौजूद है, जिसके खिलाफ कोर्ट में केस चल रहा है.

FGM पीड़ादायक और कई बीमारियों का कारण

Female genital mutilation एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मादा जननांग के ऊपरी भाग को गैर-चिकित्सा कारणों से काटकर निकाल दिया जाता है. इस प्रक्रिया का कोई शारीरिक फायदा महिलाओं को नहीं होता है. इस प्रक्रिया में अत्यधिक रक्तस्राव होता है और इसके बाद महिलाओं में पेशाब की समस्या उत्पन्न हो जाती है. साथ ही कई तरह के संक्रमण और प्रसव के दौरान जटिलताएं भी उभर आती हैं, जिसके कारण कई बार नवजात की मौत भी हो जाती है. जब लड़की छोटी होती है तभी उसके साथ इस तरह की क्रिया को अंजाम दिया जाता है.

महिला अधिकारों का हनन है FGM

FGM पूरी तरह से महिला अधिकारों का उल्लघंन है. यह लैंगिक असमानता का परिचायक है. इस प्रक्रिया के द्वारा लड़कियों की सेक्स इच्छा को दबाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इससे महिलाएं नियंत्रित रहती हैं. WHO का कहना है कि यह गलत परंपरा है और लैंगिक विभेद का सूचक भी, इसलिए WHO डॉक्टरों से यह आग्रह करता है कि वे इस तरह के किसी भी कार्य का हिस्सा ना बनें. यह एक व्यक्ति के जीने के अधिकारों का भी उल्लंघन है क्योंकि कई बार इस प्रक्रिया में महिला की मौत तक हो जाती है.

क्या है FGM की प्रक्रिया

FGM की प्रक्रिया चार चरणों में पूरी होती है. पहली चरण में मादा जननांग के बाहरी भाग (clitoris) को पूरी तरह या आशंक रूप से काटकर हटा दिया जाता है. दूसरे चरण में योनि की आंतरिक परतों को भी काटकर हटाया जाता है. तीसरा चरण इन्फ्यूब्यूलेशन का होता है, जिसमें योनि द्वार को बांधकर छोटा कर दिया जाता है. चौथे चरण में भी वो तमाम क्रियाएं की जातीं हैं, जो जननांग को नुकसान पहुंचाती हैं. इससे प्रक्रिया का दुष्परिणाम सेक्स के दौरान और प्रसव के दौरान भी नजर आता है.

परंपरा के नाम पर महिलाओं का शोषण

अकसर यह देखा गया है कि परंपराओं के नाम पर महिलाओं का शोषण होता है. FGM भी उसी का हिस्सा है. इसके जरिये ना सिर्फ महिलाओं की सेक्स इच्छा को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है, बल्कि उसे कई तरह की यातना झेलने को भी मजबूर किया जाता है. माहवारी और प्रसव के दौरान उसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

सोशल मीडिया के जरिये हो चुका है विरोध

FGM को महिला अधिकारों का हनन मानते हुए कई लोग इसके विरोध में सामने आयीं हैं. एक महिला जो खुद इस परंपरा से पीड़ित हैं ने बताया कि उन्हें अब भी याद है जब वह मात्र सात वर्ष की थीं, तब उनके साथ यह दर्दनाक हादसा हुआ था. इन लोगों ने इस परंपरा के खिलाफ और इसे गैरकानूनी घोषित करने के लिए सरकार पर दबाव बनाने के लिए आनलाइन अभियान शुरु किया है. इन्होंने एक ग्रुप बनाया है Speak Out on FGM‘, . इस ग्रुप ने वेबसाइट लॉन्च किया है ‘Change.org’ जिसके जरिये पीटिशन दाखिल किया जा रहा है और इस परंपरा का विरोध किया जा रहा है. अब तक हजारों लोग इस अभियान का हिस्सा बन चुके हैं. अब तो सोशल मीडिया फेसबुक और व्हाट्‌सएक के जरिये भी इस परंपरा का विरोध किया जा रहा है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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