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नालंदा विश्वविद्यालय बना राजनीति का अखाड़ा, बोर्ड में बदलाव के विरोध में कुलपति ने दिया इस्तीफा

नयी दिल्ली/पटना : नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन के बाद नालंदा विश्वविद्यालय के दूसरे चांसलर जॉर्ज यो ने शुक्रवार को यह कहते हुए पद से इस्तीफा दे दिया कि विश्वविद्यालय की स्वायत्तता को प्रभावित किया जा रहा है, क्योंकि उन्हें संस्थान में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर नोटिस तक नहीं दिया गया. कुलपति जॉर्ज येओ ने […]

नयी दिल्ली/पटना : नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन के बाद नालंदा विश्वविद्यालय के दूसरे चांसलर जॉर्ज यो ने शुक्रवार को यह कहते हुए पद से इस्तीफा दे दिया कि विश्वविद्यालय की स्वायत्तता को प्रभावित किया जा रहा है, क्योंकि उन्हें संस्थान में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर नोटिस तक नहीं दिया गया.

कुलपति जॉर्ज येओ ने विश्वविद्यालय के पूर्ववर्ती बोर्ड के सदस्यों को भेजे एक बयान में कहा कि जिन परिस्थितियों में नालंदा विश्वविद्यालय में नेतृत्व परिवर्तन अचानक और तुरंत क्रियान्वित किया गया, वह विश्वविद्यालय के विकास के लिए परेशानी पैदा करने वाला तथा संभवत: नुकसानदायक है. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने विश्वविद्यालय के विजिटर के रूप में 21 नवंबर को बोर्ड का पुनर्गठन किया था, जिससे प्रतिष्ठित संस्थान की संचालन इकाई का सरकार द्वारा पुनर्गठन किये जाने के बाद संस्थान के साथ सेन का लगभग एक दशक पुराना संबंध खत्म हो गया था.

येओ ने कहा कि यह समझ से परे है कि मुझे चांसलर के रूप में इसका नोटिस क्यों नहीं दिया गया. जब मुझे पिछले साल अमर्त्य सेन से जिम्मेदारी लेने को आमंत्रित किया गया था, तो मुझे बार-बार आश्वासन दिया गया था कि विश्वविद्यालय की स्वायत्तता रहेगी. अब ऐसा प्रतीत नहीं होता. उन्होंने कहा कि तदनुसार, और गहरे दुख के साथ मैंने विजिटर को चांसलर के रूप में अपना त्यागपत्र भेज दिया है.
सूत्रों ने बताया कि राष्ट्रपति ने विश्वविद्यालय के विजिटर के रूप में अपनी क्षमता के तहत नालंदा विश्वविद्यालय कानून 2010 के प्रावधानों के अनुरूप संचालन बोर्ड के पुनर्गठन को मंजूरी दे दी. उन्होंने वाइस चांसलर का अस्थायी प्रभार विश्वविद्यालय के सबसे वरिष्ठ डीन को दिये जाने को भी मंजूरी दे दी, क्योंकि वर्तमान वाइस चांसलर गोपा सबरवाल का एक साल का विस्तार गुरुवार को पूरा हो गया. नये वाइस चांसलर की नियुक्ति होने तक यह व्यवस्था होगी.

अमर्त्य सेन, मेघनाद देसाई और सुगता बोस को बोर्ड में नहीं दी गयी जगह

पिछले दिनों इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के अनुसार, नालंदा विश्वविद्यालय के नये बोर्ड में भारतीय मूल के अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन के अलावा हॉवर्ड विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और टीएमसी सांसद सुगता बोस और यूके के अर्थशास्त्री मेघनाद देसाई को भी जगह नहीं दी गयी है. वे दोनों भी एनएमजी के सदस्य थे. अखबार ने लिखा था कि विश्वविद्यालय में नये बोर्ड का गठन कर दिया गया है. नये बोर्ड में कुलाधिपति, उप कुलपति और पांच सदस्य होंगे. ये पांच सदस्य भारत, चीन, ऑस्ट्रेलिया, लाउस पीडीआर और थाईलैंड के होंगे. बोर्ड को तीन साल तक अधिकतम वित्त सहायता भी प्रदान की जाती है.

अरविंद पनगढ़िया और एनके सिंह बोर्ड में शामिल

अखबार में प्रकाशित खबर के अनुसार, भारत की तरफ से पूर्व नौकरशाह एनके सिंह को बोर्ड में चुना गया है. वह भाजपा सदस्य और बिहार से राज्यसभा सांसद भी हैं. इसके अलावा, केंद्र सरकार द्वारा तीन और नामों को दिया गया है. उनमें कनाडा के मैकगिल विश्वविद्यालय के धार्मिक अध्ययन संकाय के प्रोफेसर अरविंद शर्मा, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अध्यक्ष प्रोफेसर लोकश चंद्रा और नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ अरविंद पनगढ़िया के नाम शामिल हैं. अखबार के अनुसार, राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने नालंदा विश्वविद्यालय के विजिटर की क्षमता से गर्वनिंग बॉडी के निर्माण की इजाजत दी थी. नालंदा विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक-2013 को अगस्त 2013 में राज्यसभा के सामने लाया गया था. इसमें नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम-2010 के कुछ प्रावधानों में संशोधन करने को कहा गया था, लेकिन फिर लोकसभा चुनाव की वजह से उस पर काम नहीं हो पाया था.

Prabhat Khabar Digital Desk
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