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RBI ने रेपो-रिवर्स रेपो रेट यथावत रखी, बैंकों को कर्ज बढ़ाने के लिए किया प्रोत्साहित

मुंबई : भारतीय रिजर्व बैंक ने उम्मीद के अनुरूप बुधवार को मौद्रिक नीति की समीक्षा करते हुए प्रमुख नीतिगत दर (रेपो दर) में कोई बदलाव नहीं किया और इसे 6.5 प्रतिशत पर पूर्ववत रखा. हालांकि, केंद्रीय बैंक ने भरोसा दिया है कि यदि मुद्रास्फीति बढ़ने का जोखिम नहीं दिखाई देता है तो वह दर में […]

मुंबई : भारतीय रिजर्व बैंक ने उम्मीद के अनुरूप बुधवार को मौद्रिक नीति की समीक्षा करते हुए प्रमुख नीतिगत दर (रेपो दर) में कोई बदलाव नहीं किया और इसे 6.5 प्रतिशत पर पूर्ववत रखा.
हालांकि, केंद्रीय बैंक ने भरोसा दिया है कि यदि मुद्रास्फीति बढ़ने का जोखिम नहीं दिखाई देता है तो वह दर में कटौती करेगा. केंद्रीय बैंक ने वाणिज्यिक बैंकों को विभिन्न क्षेत्रों को अधिक कर्ज देने की भी सलाह दी है ताकि सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था को समर्थन दिया जा सके.
इसके साथ ही केंद्रीय बैंक ने सावधानी पूर्वक मौद्रिक नीति को कड़ा करने के अपने रुख में कोई बदलाव नहीं किया है. केन्द्रीय बैंक ने जनवरी से बैंकों की एसएलआर दर में हर तिमाही 0.25 प्रतिशत कटौती की भी घोषणा की है.
यह कटौती इसके 18 प्रतिशत पर नीचे आने तक जारी रहेगी. वर्तमान में एसएलआर दर 19.5 प्रतिशत पर है. इससे बैंकों के पास अतिरिक्त नकदी उपलब्ध होगी और वह अधिक कर्ज दे सकेंगे.
रिजर्व बैंक की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) तीन दिन चली बैठक के बाद नीतिगत दर को यथावत रखने के पक्ष में मत दिया. केंद्रीय बैंक इस साल दो बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर चुका है.
उसने सावधानीपूर्वक मौद्रिक नीति को सख्त करने के अपने रुख में कोई बदलाव नहीं किया है. केंद्रीय बैंक ने बयान में कहा, मुद्रास्फीति अनुमान को उल्लेखनीय रूप से संशोधित कर नीचे किया गया है.
इसके अलावा पिछली समीक्षा में जो जोखिम बताये गये थे, उनमें काफी कमी आयी है. विशेषरूप से कच्चे तेल के दाम. इसके बावजूद मुद्रास्फीति परिदृश्य को लेकर कई अनिश्चितताएं कायम हैं.
हालांकि, मौद्रिक नीति समीक्षा में ब्याज दरों पर भविष्य के परिदृश्य को लेकर कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन एमपीसी की बैठक के बाद होने वाली परंपरागत संवाददाता सम्मेलन में गवर्नर उर्जित पटेल ने उम्मीद जतायी कि यदि मुद्रास्फीति ऊपर जाने का जोखिम सही साबित नहीं होता है, तो ब्याज दरों में कटौती की जा सकती है.
पटेल ने कहा कि एमपीसी ने सोच विचार के सख्ती के अपने रुख को कुछ समय के लिए कायम रखा है. इससे वह भविष्य में नीतिगत कदम अधिक बेहतर मुद्रास्फीति संकेतों के साथ उठा सकेगा.
रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष 2018-19 की दूसरी छमाही के लिए खुदरा मुद्रास्फीति के अनुमान को घटाकर 2.7 से 3.2 प्रतिशत कर दिया है. केंद्रीय बैंक ने सामान्य मानसून और खाद्य वस्तुओं के दाम में नरमी को देखते हुए मुद्रास्फीति अनुमान को कम किया है.
इससे पिछली अक्तूबर की द्विमासिक समीक्षा में केंद्रीय बैंक ने चालू वित्त वर्ष की अक्तूबर-मार्च अवधि यानी दूसरी छमाही में खुदरा मुद्रास्फीति के 3.9 से 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था.
अक्तूबर महीने में खुदरा मुद्रास्फीति घटकर 13 माह के निचले स्तर 3.31 प्रतिशत पर आ गयी है. केंद्रीय बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के अनुमान को 7.4 प्रतिशत पर कायम रखा है.
बैंकों में नकदी संसाधनों को बढ़ाने और उन्हें अधिक कर्ज देने के लिए प्रोत्साहित करने के मद्देनजर रिजर्व बैंक ने बैंकों के सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) में कमी की भी घोषणा की है.
इस घोषणा पर अमल कैलेंडर वर्ष 2019 की पहली तिमाही से होगा. पहली तिमाही से हर तिमाही में एसएलआर में 0.25 प्रतिशत कमी लायी जायेगी. यह सिलसिला तब तक जारी रहेगा जब तक कि यह उनकी कुल जमाओं के 18 प्रतिशत पर नहीं आ जाता.
वर्तमान में यह अनुपात 19.5 प्रतिशत है. रिजर्व बैंक ने अलग से जारी एक बयान में कहा कि सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) फिलहाल 19.50 प्रतिशत है.
इस अनुपात को कम करने का मकसद बैंकों को अपनी नकदी को सरकारी प्रतिभूतियों की सुरक्षित पनाहगाह में रखने के बजाय कर्ज देने के लिए प्रोत्साहित करना है.
रिजर्व बैंक ने जून में रेपो दर को बढ़ाकर 6.25 प्रतिशत किया था. अगस्त में इसे और बढ़ाकर 6.50 प्रतिशत किया गया. अक्तूबर में केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं करते हुए अपने रुख को तटस्थ से सतर्कता के साथ सख्ती करने वाला कर दिया.
नीतिगत दरों में बदलाव नहीं करने का फैसला हालांकि, सर्वसम्मति से लिया गया. लेकिन समिति के एक सदस्य रविंद्र एच ढोलकिया ने मौद्रिक नीति रुख को बदलकर तटस्थ करने के पक्ष में मत दिया.
एमपीसी ने कहा कि मुख्य मुद्रास्फीति के नीचे आने की संभावना इसलिए बनी है क्योंकि खाद्य मुद्रास्फीति घट रही है और बेहद कम अवधि में कच्चे तेल के दाम नीचे आये हैं.
हालांकि, यदि खाद्य वस्तुओं को छोड़ दिया जाये, तो मुद्रास्फीति व्यापक रूप से बढ़ी है. एमपीसी ने कहा कि व्यापार को लेकर बढ़ते तनाव, वैश्विक वित्तीय स्थिति सख्त होने तथा वैश्विक मांग कम होने से भी घरेलू अर्थव्यवस्था के नीचे की ओर आने का जोखिम है.
हालांकि, कच्चे तेल की कीमतों में हाल में जो गिरावट आयी है, वह यदि कायम रहती है तो कुछ राहत मिलेगी. उल्लेखनीय है कि पिछली मौद्रिक समीक्षा के बाद से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट आयी है.
नवंबर अंत तक कच्चे तेल का भारत का खरीद मूल्य घटकर 60 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया है, जो अक्तूबर की शुरुआत में 85 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया था.

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