9.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

डॉ महीप सिंह का जाना

अनेकों सम्मान से नवाजे जा चुके साहित्यकार डॉ महीप सिंह का व्यक्तित्व बहुत ऊंचा था. उन्हें शब्दों से नापा-तौला नहीं जा सकता. उनका जाना बरगद के पेड़ के गिरने जैसा है. ऐसी छांव देनेवाला व्यक्ति मिलना बहुत कठिन है. एक लंबे पेड़ की गहराई तक पहुंचना या उसकी सबसे ऊंची डाल को छूना क्या आसान […]

अनेकों सम्मान से नवाजे जा चुके साहित्यकार डॉ महीप सिंह का व्यक्तित्व बहुत ऊंचा था. उन्हें शब्दों से नापा-तौला नहीं जा सकता. उनका जाना बरगद के पेड़ के गिरने जैसा है. ऐसी छांव देनेवाला व्यक्ति मिलना बहुत कठिन है.

एक लंबे पेड़ की गहराई तक पहुंचना या उसकी सबसे ऊंची डाल को छूना क्या आसान है? प्रख्यात साहित्यकार और विचारक डाॅ महीप सिंह के पास पहुंच कर हम पेड़ की छांव, सुकून और अपनत्व को महसूस करते थे. उनके व्यक्तित्व की गहराइयों पर लिखना हमारे लिए बहुत ही कठिन है. उनकी लिखी कहानियां ‘दिशांतर और कितने सैलाब’, ‘लय’, ‘पानी और पुल’, ‘सहमे हुए’, ‘अभी शेष है’ को पढ़ कर अलग अनुभूति का एहसास होता है. ऐसे साहित्यकार का जाना हमारे लिए बहुत बड़ा नुकसान है.

प्रसिद्ध लेखक, स्तंभकार और पत्रकार डॉ महीप सिंह को पढ़ने-लिखने का शौक बहुत ज्यादा था. उनसे जब भी मिलना होता था, तो उनके हाथ में कोई न कोई किताब होती ही थी. वह दूसरे लेखकों की लिखी किताबें पढ़ना खूब पसंद करते थे. उन्होंने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया था. 1930 में उनका परिवार पाकिस्तान से भारत आया था. महीप सिंह आगरा विश्वविद्यालय से पीएचडी करने के बाद दिल्ली आ गये थे. लेकिन, उन्होंने जीवन भर अपनी पढ़ाई जारी रखी. मैंने महीप सिंह के संघर्ष और सफलता के दोनों क्षण देखे हैं. उन्हें जीवन में कभी डगमगाते नहीं देखा. भारत भारती सम्मान से नवाजे जा चुके डाॅ सिंह ने अपनी कलम से कभी भी समझौता नहीं किया. वह कई बार कट्टपंथियों के निशाने पर आये.

साल 2006 में ओड़िशा के मंदिरों में वंचितों के प्रवेश को लेकर जब खूब हंगामा हो रहा था, तब डॉ महीप सिंह ने सरकार से देश में वंचितों के साथ समान दर्जे के व्यवहार की वकालत की थी. उन्होंने कहा कि ओड़िशा में मंदिर में वंचितों के प्रवेश के संदर्भ में जो हुआ, वह वाकई दुखद है. उनका मानना था- ‘देश में वंचितों के प्रति उत्पीड़न आज भी जारी है. यह हमारे देश के माथे पर कलंक है. जैसे भी हो, यह सब अब बंद होना चाहिए और इस संदर्भ में हिंदू संगठनों और धर्माचार्यों को अभी बहुत प्रयास करने की जरूरत है. व्यापक रूप से हिंदू समाज को छुआछूत के कलंक के विरुद्ध एकजुट प्रयास करने ही होंगे. विश्व हिंदू परिषद् इस ओर ही अपने को केंद्रित कर ले, तो समाज का बहुत भला होगा. अन्याय-असमानतामूलक समाज यदि नहीं बदलता, तो बाकी सद्प्रयास व्यर्थ ही होंगे.’

महीप सिंह का व्यक्तित्व बहुत ऊंचा था. उन्हें शब्दों से नापा-तौला नहीं जा सकता. उनका जाना बरगद के पेड़ के गिरने जैसा है. ऐसी छांव देनेवाला व्यक्ति मिलना बहुत कठिन है. महीप सिंह अपने दो करीबी दोस्तों डॉ लक्ष्मीमल्ल सिंघवी व गुजराल के ज्यादा नजदीक थे. महीप सिंह से जब भी मैंने किसी की मुसीबत का जिक्र किया, भले ही रात के 12 बजे हों, उनका उत्तर होता था- चलो, अभी चलते हैं. बताओ, हम उनके लिए क्या कर सकते हैं… कोई पद पर न हो, बाहर पुलिस लगी हो, अस्पताल में डॉक्टर हाथ खड़े कर चुके हों, लेकिन महीप सिंह उसी जोश के साथ पहुंचते थे, मानो वह व्यक्ति सत्ता के शिखर पर हो.

कुछ कवि, राजनेता अपनी पोथी खोल कर बैठ जाते थे और देर रात तक सुनना पड़ता था. महीप सिंह की महफिल जमती ही थी रात 11 बजे के बाद और सुबह तीन बजे तक यही लगता था कि शाम के सात बजे हैं. डॉ महीप सिंह दिल्ली पहुंचें या लखनऊ या जर्मनी, उन्हें सिर-आखों पर बिठानेवाले मित्रों की कमी नहीं होती थी. डॉ महीप सिंह की बातों में सच्चाई होती थी. वह तोड़ने की नहीं, बल्कि हमेशा जोड़ने की बात करते थे. उनके लिए हिंदू-मुसलिम एक-समान थे, इसलिए कुछ लोगों को वे खटकते थे.

उनके परिवार में पत्नी, दो पुत्र और एक पुत्री है. उनका जन्म 15 अगस्त, 1930 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था. बाद में उनका परिवार कानपुर चला गया. सिंह ने 1954 में कानपुर के डीएवी कालेज से हिंदी में एमए की उपाधि हासिल की और 1963 में आगरा विवि से ‘गुरु गोविंद सिंह और उनकी हिंदी कविताएं’ विषय पर पीएचडी की थी. उनका पहला लघुकथा संग्रह ‘सुबह के फूल’ 1959 में आया. इसके बाद उनके 20 से अधिक लघुकथा संग्रह प्रकाशित हुए. उनके उपन्यासों में ‘ये भी नहीं’, ‘अभी शेष है’ और ‘बीच की धूप’ प्रमुख है. सिंह ने 50 से अधिक शोध पत्र लिखे और पिछले 45 वर्षों से साहित्य पत्रिका ‘संचेतना’ का संपादन कर रहे थे. उन्होंने 1978 में भारतीय लेखक संगठन की स्थापना की थी. केंद्र, राज्य और साहित्यिक संस्थानों की ओर से डाॅ महीप सिंह को साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया था. विनम्र श्रद्धांजलि!

(रमेश ठाकुर से बातचीत पर आधारित)

डॉ धनंजय सिंह

वरिष्ठ साहित्यकार[email protected]

Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel