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WHO ने जारी किया वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश, गरीब और विकासशील देशों के स्वास्थ्य को लेकर दी ये चेतावनी…

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2005 के बाद यानी 16 साल बाद वायु गुणवत्ता को लेकर दिशानिर्देश जारी किये हैं. जिसमें यह विस्तार से बताया गया है कि वायु प्रदषण का इंसानी स्वास्थ्य पर क्या और कितना प्रभाव पड़ता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश जारी करते हुए एशियाई देशों में भारत को बांग्लादेश और पाकिस्तान के बाद तीसरे सबसे प्रदूषित देशों में शामिल किया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन के बाद वायु प्रदूषण इंसानों के लिए सबसे बड़ा खतरा है, क्योंकि यह इंसान के स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2005 के बाद यानी 16 साल बाद वायु गुणवत्ता को लेकर दिशानिर्देश जारी किये हैं. जिसमें यह विस्तार से बताया गया है कि वायु प्रदषण का इंसानी स्वास्थ्य पर क्या और कितना प्रभाव पड़ता है.

डब्ल्यूएचओ ने कहा कि उसके नये वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश का उद्देश्य लाखों लोगों को वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव से बचाना है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि पहले यह माना जाता था कि कम मात्रा में प्रदूषण होने से मानव समाज पर असर नहीं पड़ता,लेकिन नये शोध में यह बात सामने आयी है कि अगर वायु में प्रदूषण का स्तर कम हो तो तब भी वह मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करती है.

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ये दिशानिर्देश अहम वायु प्रदूषकों में कमी लाकर लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए नये वायु गुणवत्ता स्तरों की सिफारिश करते हैं. हवा में मौजूद ये प्रदूषक जलवायु परिवर्तन में भी अहम भूमिका निभाते हैं.

डब्ल्यूएचओ ने कहा, 2005 के सूचकांक के बाद ऐसे सबूत बहुत अधिक आये हैं जो दर्शाते हैं कि कैसे वायुप्रदूषण स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करते हैं. उस कारण से तथा संकलित सबूतों की व्यवस्थित समीक्षा के बाद डब्ल्यूएचओ ने एक्यूजी के सभी स्तरों में नीचे की ओर फेरबदल किया एवं चेतावनी जारी की कि नये वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश स्तरों का संबंध स्वास्थ्य पर अहम जोखिमों से है.

डब्ल्यूएचओ ने स्पष्ट किया है कि वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा पर्यावरणीय खतरा है और ध्यान देने वाली बात यह है कि यह असुरक्षित रूप से कमजोर आबादी को प्रभावित करता है. यहां गौर करने वाली बात यह है कि वायु प्रदूषण के कारण जो भी मौतें होती हैं उनमें से 91 प्रतिशत निम्न-आय और मध्यम-आय वाले देशों में होती हैं.

भारत में, 2019 में 116,000 शिशुओं की मृत्यु वायु प्रदूषण के कारण हुई, जबकि कोयले के जलने से 100,000 मौतें हुईं और परिवेशी वायु प्रदूषण ने 16.7 लाख भारतीयों की जान ली. बच्चे भी विशेष रूप से कमजोर होते हैं, क्योंकि बचपन में वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से फेफड़ों की क्षमता कम हो सकती है. विश्व स्तर पर, कोविड -19 से होने वाली लगभग 15% मौतें PM2.5 वायु प्रदूषण से जुड़ी हैं.

Posted By : Rajneesh Anand

Prabhat Khabar Digital Desk
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