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नये मैसेजिंग ऐप का इस्तेमाल कर रहे आतंकवादी संगठन, सर्च ऑपरेशन में हाथ लगा अहम सुराग

jammu kashmir latest news, Terrorist organizations, new messaging app, Pakistan व्हाट्सऐप जैसे मैसेजिंग ऐप द्वारा निजता को लेकर की गई पेशकश के संबंध में हो रही बहस के बीच पाकिस्तान में आतंकवादी संगठन और उनके आका नये ऐप की ओर मुखातिब हो रहे हैं जिनमें तुर्की की कंपनी द्वारा विकसित ऐप भी शामिल है.

व्हाट्सऐप जैसे मैसेजिंग ऐप द्वारा निजता को लेकर की गई पेशकश के संबंध में हो रही बहस के बीच पाकिस्तान में आतंकवादी संगठन और उनके आका नये ऐप की ओर मुखातिब हो रहे हैं जिनमें तुर्की की कंपनी द्वारा विकसित ऐप भी शामिल है.

अधिकारियों ने यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ के बाद जुटाए गए सबूतों और आत्मसमर्पण करने वाले आतंकवादियों द्वारा पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों की ओर से कट्टरपंथी बनाए जाने की प्रक्रिया की दी गई जानकारी से तीन नए ऐप प्रकाश में आए हैं.

हालांकि, सुरक्षा कारणों से इन मैसेजिंग ऐप के नाम की जानकारी नहीं दी गई. अधिकारियों ने इतना बताया कि इनमें से एक ऐप अमेरिकी कंपनी का है जबकि दूसरा ऐप यूरोप की कंपनी द्वारा संचालित है. उन्होंने बताया कि नवीनतम तीसरे एप्लिकेशन को तुर्की की कंपनी ने विकसित किया है और आतंकवादी संगठनों के आका और कश्मीर घाटी में उनके संभावित सदस्य लगातार इनका इस्तेमाल कर रहे हैं.

उन्होंने बताया कि नया ऐप इंटरनेट की गति कम होने पर या टूजी कनेक्शन होने पर भी काम कर सकता है. उल्लेखनीय है कि सरकार ने अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा वापस लेने के बाद यहां पर इंटरनेट सेवाएं स्थगित कर दी थी और करीब एक साल बाद टूजी सेवा बहाल की गई थी. सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि इंटरनेट बाधित होने से आतंकवादी समूहों द्वारा व्हाट्सऐप और फेसबुक मैसेंजर का इस्तेमाल लगभग बंद हो गया था.

बाद में पता चला कि वे नये ऐप का इस्तेमाल कर रहे हैं जो वर्ल्ड वाइड वेब पर मुफ्त में उपलब्ध हैं. उन्होंने बताया कि इस ऐप में कूटलेखन एवं विकोडन सीधे उपकरण में होता है ऐसे में इसमें तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप की संभावना कम होती है और यह ऐप कूटलेखन अल्गोरिदम आरएसए- 2048 का इस्तेमाल करता है जिसे सबसे सुरक्षित कूटलेखन मंच माना जाता है.

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आरएसए अमेरिकी नेटवर्क सुरक्षा एवं प्रमाणीकरण कंपनी है जिसकी स्थापना वर्ष 1982 में की गई थी. आरएसए का पूरी दुनिया में इस्तेमाल कूट प्रणाली के आधार के तौर पर होता है. अधिकारियों ने बताया कि आतंकवादियों द्वारा कश्मीर घाटी में युवाओं को कट्टरपंथी बनाने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे एक ऐप में फोन नंबर या ई-मेल पते की भी जरूरत नहीं होती है जिससे इस्तेमाल करने वाले की पहचान पूरी तरह से गोपनीय रहती है.

उन्होंने बताया कि जम्मू-कश्मीर में ऐसे ऐप को बाधित करने की कोशिश की जा रही है. अधिकारियों ने बताया कि यह चुनौती ऐसे समय आई है जब घाटी में सुरक्षा एजेंसियां वर्चुअल सिम कार्ड के खतरे से लड़ रही हैं. आतंकवादी समूह पाकिस्तान में अपने आकाओं से संपर्क करने के लिए लगातार इनका इस्तेमाल कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि इस तकनीक की पहुंच का पता वर्ष 2019 में तब चला जब अमेरिका से पुलवामा हमले को अंजाम देने वाले जैश ए मोहम्मद के आत्मघाती हमलावर द्वारा इस्तेमाल किए गए वर्चुअल सिम के सेवा प्रदाता की जानकारी देने का अनुरोध किया गया.

इस हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे. हालांकि, राष्ट्रीय अन्वेषण एजेंसी और अन्य सुरक्षा एजेंसियों की जांच में संकेत मिला कि 40 वर्चुअल सिम का इस्तेमाल अकेले पुलवामा हमले में किया गया और संभवत: घाटी में और ऐसे सिम का इस्तेमाल हो रहा है. इस प्रौद्योगिकी में कंप्यूटर टेलीफोन नंबर जेनरेट करता है जिसके आधार पर यूजर अपने स्मार्टफोन में ऐप डाउनलोड कर सकता है और उसका इस्तेमाल कर सकता है.

Posted By – Arbind kumar mishra

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