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चीनी सेना को धूल चटाने वाली SFF कमांडो के बारे में जानें खास बातें, चीते सी फुर्ती और बाज की नजर…

नयी दिल्ली : पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर पैंगोंग झील (Pangong Lake) के दक्षिणी छोर पर भारतीय सेना के साथ मिलकर चीनी आर्मी को धूल चटाने वाली स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (Special Frontier Force) को दुश्मनों के इलाके में तेजी से हमला करने में माहिर माना जाता है. स्पेशल फ्रंटियर फोर्स को विकास रेजिमेंट (Vikas Regiment) के नाम से भी जाना जाता है. चीन (China) ने जब एक बार फिर घुसपैठ करने की कोशिश की थी तो विकास रेजिमेंट ने उसका प्लान चौपट कर दिया था. आइए जानते हैं इस स्पेशल फोर्स के बारे में कुछ खास बातें

नयी दिल्ली : पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर पैंगोंग झील (Pangong Lake) के दक्षिणी छोर पर भारतीय सेना के साथ मिलकर चीनी आर्मी को धूल चटाने वाली स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (Special Frontier Force) को दुश्मनों के इलाके में तेजी से हमला करने में माहिर माना जाता है. स्पेशल फ्रंटियर फोर्स को विकास रेजिमेंट (Vikas Regiment) के नाम से भी जाना जाता है. चीन (China) ने जब एक बार फिर घुसपैठ करने की कोशिश की थी तो विकास रेजिमेंट ने उसका प्लान चौपट कर दिया था. आइए जानते हैं इस स्पेशल फोर्स के बारे में कुछ खास बातें

भारत में रह रहे तिब्बत मूल के जवान हैं शामिल

स्पेशल फ्रंटियर फोर्स एक ऐसी फोर्स है जो चीन बॉर्डर पर खुफिया मिलिट्री ऑपरेशंस को अंजाम देती है. इस फोर्स की खास बात ये है कि इसमें भारत के रह रहे तिब्बती मूल के जवान शामिल होते हैं. जिन्हें पहाड़ी युद्ध में महारत हासिल है. इस फोर्स का नाम लोगों ने पहले कभी नहीं सुना, क्योंकि इसके ऑपरेशन्स की तरह ही ये फोर्स इतनी खुफिया है कि इसके मूवमेंट की जानकारी भारतीय सेना को भी नहीं होती. बहादुरी के लिए इस फोर्स के जवानों को सार्वजनिक रूप से सम्मानित भी नहीं किया जाता.

1962 में चीन के हमले के बाद नेहरु ने किया था गठन

1962 में चीन ने भारत पर तबाही बरपाई थी. इससे सबक लेते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने इंटेलिजेंस ब्यूरो के फाउंडर डायरेक्टर भोलानाथ मलिक और बीजू पटनायक की सलाह पर एक अलग फोर्स के गठन को मंजूरी दी थी. जिसका नाम स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (एसएसएफ) रखा गया. 14 नवंबर 1962 को ये फोर्स अस्तित्व में आई. शुरुआत में इसमें 5,000 जवान थे, जिन्हें देहरादून के चकराता में एक नया ट्रेनिंग सेंटर बनाकर वहां ट्रेंड किया गया. इन जवानों को पहाड़ों पर चढ़ने और गुरिल्‍ला युद्ध के गुर सिखाये गये. रॉ के अधिकारियों और अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के अधकारियों की मदद से इन्हें ट्रेनिंग दी गयी.

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सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करती है यह फोर्स

भारत से जंग होने की सूरत में चीनी सीमा में घुसकर खुफिया ऑपरेशन करने के लिए इसो फोर्स का गठन किया गया है. इसके पहले इंस्पेक्टर जनरल मेजर जनरल (रिटायर्ड) सुजान सिंह उबान थे. सुजान सिंह उबान दूसरे विश्व युद्ध के समय ब्रितानी भारतीय सेना के 22 माउंटेन रेजिमेंट के कमांडर थे. इस वजह से कुछ लोग एसएफएफ को ‘इस्टैब्लिशमेंट 22’ के नाम से भी बुलाते हैं. बता दें कि लद्दाख, सिक्किम आदि जगहों में रहने वाले तिब्बत मूल के लोग काफी पहले से भारतीय फौज का हिस्सा हैं. सीधे प्रधानमंत्री की देख-रेख में तैयार और इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी आईबी का हिस्सा बनायी गयी एसएफएफ अब रॉ के अधीन है और इसका हेडक्वॉर्टर उत्तराखंड के चकराता में है. रॉ के माध्यम से यह फोर्स सीधा प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करती है.

कई अहम लड़ाइयों में दुश्मनों को चटाई धूल

स्पेशल फ्रंटियर फोर्स ने कई अहम लड़ाइयों में भारतीय सेना के सबल साबित हुए. एसएफएफ ने इन लड़ाइयों में दुश्मनों को धूल चटाई है. 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में ऑपरेशन ईगल को सफल बनाने में इस फोर्स का अहम रोल था. इस ऑपरेशन में इस फोर्स के 46 जवान शहीद हुए थे. 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार में भी एसएफएफ के कमांडोज शामिल थे. सियाचीन की चोटियों पर आपरेशन मेघदूत लांच किये जाने के समय भी इस फोर्स के कमांडो ने अहम भूमिका निभाई थी. साल 1999 के कारगिल युद्ध के वक्त भी एसएफएफ ने ऑपरेशन विजय में अहम रोल निभाया था.

Posted By: Amlesh Nandan.

Prabhat Khabar Digital Desk
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