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चौधरी अजित सिंह ने यूएस की नौकरी छोड़ संभाली थी पिता की राजनीतिक विरासत

अजित ऐसे नेता थे जो लगभग हर सरकार में मंत्री रहे हैं. चाहे 1989 में वीपी सिंह की सरकार रही हो, 1991 में नरसिंह राव की सरकार या फिर 1999 की वाजपेयी सरकार. इतना ही नहीं मनमोहन सिंह की सरकार में भी वो मंत्री रहे हैं. वह दिसंबर 2011 से मई 2014 तक नागरिक उड्डयन मंत्री थे.

देश के राजनीतिक इतिहास में चौधरी चरण सिंह की एक अलग पहचान है. 80 के दशक में जब उनकी तबीयत नासाज रहने लगी तो पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने यूएस से उनके बेटे चौधरी अजित सिंह आये. अपने राजनीतिक सफर में वो 7 बाद सांसद और कई बार मंत्री रहे.

लगभग हर सरकार में रहे मंत्री

अजित ऐसे नेता थे जो लगभग हर सरकार में मंत्री रहे हैं. चाहे 1989 में वीपी सिंह की सरकार रही हो, 1991 में नरसिंह राव की सरकार या फिर 1999 की वाजपेयी सरकार. इतना ही नहीं मनमोहन सिंह की सरकार में भी वो मंत्री रहे हैं. वह दिसंबर 2011 से मई 2014 तक नागरिक उड्डयन मंत्री थे.

अजित सिंह का जन्म मेरठ के भडोला गांव में 12 फरवरी 1939 में हुआ था वह 82 साल के थे अजीत सिंह के बेटे और पूर्व सांसद जयंत चौधरी ने ट्वीट कर बताया कि अजीत सिंह 20 अप्रैल को कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए थे और छह मई की सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली.

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अमेरिका में पढ़े और सालों तक नौकरी की

अजित सिंह लखनऊ यूनिवर्सिटी से बीएससी की पढ़ाई पूरी करने का बाद आईआईटी खड़गपुर का रुख किया इसके बाद वो अमेरिका के इलिनाइस इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी से मास्टर ऑफ साइंस की पढ़ाई करने पहुंचे. पढ़ाई पूरी करके उन्होंने करीब 15 साल तक अमेरिका में नौकरी की. 1960 के दशक में आईबीएम के साथ काम करने वाले भारतीयों में एक थे.

जब आये राजनीति में और संभाली पिता की विरासत

चौधरी चरण सिंह की तबीयत जब नासाज रहने लगी तो पिता की मदद के लिए लौट आये यहां 1980 में चौधरी चरण सिंह ने उन्हें लोकदल की कमान सौंप दी. इस तरह राजनीति में उनका आना हो गया. पहली बार साल 1986 में वो बार उत्तर प्रदेश से होते हुए राज्यसभा पहुंच गये इसके एक साल के बाद ही उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गयी साल 1987 में उन्‍हें लोकदल का अध्‍यक्ष बना दिया गया एक साल बाद कद और बढ़ा तो उन्हें 1988 में जनता पार्टी के अध्‍यक्ष घोषित कर दिया गया.

कैसा रहा है चुनावी हार जीत का गणित

1986 में राज्यसभा पहुंचते ही उनके सफर की शुरुआत हो गयी लेकिन चुनावी राजनीति में अजित सिंह ने 1989 में कदम रखा और बागपत की सीट से लोकसभा का चुनाव जीता. साल 1998 में अजित सिंह इस सीट पर भाजपा नेता सोमपाल शास्त्री से चुनाव हार गये. इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) बनाई और 1999 में फिर चुनाव जीत गये.

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इस जीत के बाद वो लगातार 2009 तक इस सीट से जीतते रहे. साल 2014 में उन्हें फिर एक बार हार का सामना करना पड़ा जब भाजपा के ही नेता सत्यपाल ने उन्हें मात दे दी. 2019 में उन्होंने सीट बदली मुजफ्फरनगर से लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन फिर हार गये. चुनावी राजनीति में भले उतार चढ़ाव रहा हो लेकिन अपने पिता की विरासत को उन्होंने उतनी ही मजबूती से संभाला. देश की राजनीति में उनकी भूमिका प्रमुख रही.

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