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अंतरिक्ष कार्यक्रमों की तरह अन्य क्षेत्रों में अनुसंधान से भारत छू सकता है नयी ऊंचाई

बेंगलुरु : मंगलयान की सफलता के साथ भारत ने अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक नया इतिहास रचा. मंगलयान की सफलता के रथ पर सवार भारत उस दिशा में आगे बढ़ चुका है, जिस ओर अबतक अमेरिका व जापान जैसे प्रगतिशील राष्ट्र भी नहीं बढ़ सके हैं. ऊर्जा संकट जैसी चुनौतियों का सामना कर रही इस दुनिया […]

बेंगलुरु : मंगलयान की सफलता के साथ भारत ने अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक नया इतिहास रचा. मंगलयान की सफलता के रथ पर सवार भारत उस दिशा में आगे बढ़ चुका है, जिस ओर अबतक अमेरिका व जापान जैसे प्रगतिशील राष्ट्र भी नहीं बढ़ सके हैं.
ऊर्जा संकट जैसी चुनौतियों का सामना कर रही इस दुनिया के लिए हमारा यान मंगल ग्रह पर मिथेन गैस होने का का पता लगायेगा. सवा अरब भारतीय अपने वैज्ञानिकों की अनथक प्रयास से मिली इस उपलब्धि को अपनी उपलब्धि मान रहे हैं और राष्ट्रगौरव से फुले नहीं समा रहे हैं. लेकिन हर भारतीय अपने-अपने कार्यक्षेत्र में राष्ट्र को इसी तरह का गौरव दिलाने की लिए इसी समर्पण भाव से काम करें, तो जल्द ही भारत विकसित राष्ट्र बन जायेगा.
लेकिन, असल सवाल यह है कि अंतरिक्ष कार्यक्रमों में भारत को जैसी सफलता मिली है, वह दूसरे क्षेत्रों में क्यों नहीं मिल पाती? जबकि उन कार्यक्रमों व अभियानों में भारतीय ही लगे हैं और उनकी निजी प्रतिभा, निष्ठा व क्षमता पर भी सवालिया निशान नहीं लगता है. तो क्या हमारे नेतृत्व में कहीं कमी हैं या टीम भावना व समर्पण का अभाव है! या फिर दूसरे क्षेत्र के कार्यक्रमों में भी राजनीति घर कर गयी है?
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम या परमाणु कार्यक्रम की तरह अबतक हमारे देश ने कृषि कार्यक्रमों में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल नहीं की है. हां, इसमें 60 व 70 के दशक में हुई हरित क्रांति अपवाद मात्र है, वह भी रासायनिक खादों व कीटनाशकों के भरपूर प्रयोग की शर्त पर. जिसके दुष्परिणाम तीन-चार दशक बाद आज महामारी की शक्ल ले रही कैंसर व अन्य घातक बीमारियों के रूप में दिख रही है. क्या हमारा कृषि अनुसंधान कार्यक्रम, जैविक कृषि अनुसंधान कार्यक्रम में रूपांतरित नहीं हो सकता.
स्वास्थ्य के विभिन्न मानकों पर भी भारत पिछड़ा हुआ है. वैश्विक सूचकांक बताते हैं कि भारत अपने पड़ोसी पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान व श्रीलंका से पिछड़ा हुआ है. एक अध्ययन में बताया गया है कि स्वास्थ्य मानकों में भारत का पिछड़ापन भी उसकी गरीबी का प्रमुख कारण है.
अध्ययन के अनुसार, एक औसत ग्रामीण आबादी शहरी आबादी की तुलना में अपनी आय का अधिक हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं को हासिल करने पर खर्च करता है. इसके लिए उसे कर्ज भी लेना होता है. इसलिए वह गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों के बावजूद भी उससे बाहर नहीं आ पाता. भारत में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा भी कमजोर व खराब है.
अगर, स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में अंतरिक्ष कार्यक्रमों की तरह अनुसंधान हो तो न केवल लोगों का जीवन स्तर बेहतर होने में मदद मिलेगी, बल्कि लोगों का जीवन स्तर भी ऊपर होगा. इसके अतिरिक्त रोजमर्रा के जीवन से जुड़े कई और क्षेत्र हैं, जहां पर बेहतर शोध व अनुसंधान भारत की तरक्की का नया इतिहास बना सकता है.

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