नयी दिल्ली : सर्दियों में अन्य बीमारियों के साथ ही हृदय रोग के कारण होने वाली मौतों का जोखिम 50 फीसदी बढ़ जाता है. डॉक्टरों का कहना है कि इस दौरान सर्दी-जुकाम और खांसी की शिकायतों के साथ ओपीडी में आने वाले बच्चों की तादाद में 20 फीसदी की बढ़ोतरी हो जाती है. लिहाजा, इस मौसम में बच्चों और बुजुर्गों को खास देखभाल की जरूरत है.
राजधानी के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में डिपार्टमेंट ऑफ पल्मोनोलॉजी, क्रिटिकल केयर एंड स्लीप मेडिसिन के एसोसिएट प्रोफेसर, डॉक्टर करण मदान का कहना है कि सर्दी के मौसम में हवा में प्रदूषक तत्वों के जमा होने से अस्थमा और सीओपीडी की समस्याओं का जोखिम बढ़ जाता है. इन दिनों बच्चों और बुजुर्गों के मामले में खास ख्याल रखना जरूरी है. बच्चों को खांसी या सांस की थोड़ी भी तकलीफ होने पर डॉक्टरी सलाह लें और अस्थमा या सीओपीडी से संबंधित बीमारियों से पीड़ित लोग अपने इनहेलर तथा दवाइयां अपने साथ हमेशा रखें.
धर्मशीला नारायणा सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल में सीनियर कंसल्टेंट, सीटीवीएस, डॉक्टर मितेश बी शर्मा का कहना है कि सर्दियों में रक्त की नसों में सिकुड़न आने से हृदय की ओर जाने वाली रक्त वाहिकाओं में रक्त संचालन प्रभावित होता है. परिणामस्वरूप स्ट्रोक एवं हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है. दिल से जुड़ी किसी भी तरह की परेशानी से पीड़ित लोगों को विशेष ध्यान रखने की जरूरत है. बच्चों को खूब खेलने और बुजुर्गों को हल्के-फुल्के व्यायाम के लिए प्रोत्साहित करें, ताकि शरीर में रक्तचाप सामान्य बना रहे और रक्त वाहिकाएं सुचारु रूप से काम करतीं रहें.
श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट में चीफ एंड सीनियर कंसल्टेंट, यूरोलॉजी, डॉक्टर अतुल गोस्वामी ने बताया कि सर्दियों में पसीना कम आता है और शरीर की तरलता बार-बार पेशाब आने से बैलेंस होती है. कई बार देखा गया है कि पेशाब बार-बार न जाना पड़े, इसलिए लोग इस मौसम में पानी का सेवन कम देते हैं, लेकिन ऐसा करना ठीक नहीं है. सर्दियों में भी भरपूर मात्रा में पानी पीना चाहिए, क्योंकि सर्द मौसम में भी शरीर में तरलता की आवश्यकता होती है, बस उसके बैलेंस होने का तरीका बदल जाता है. इसलिए पानी कम पीना कोई विकल्प नहीं है.
डॉ गोस्वामी ने बताया कि 50 वर्ष की उम्र के बाद प्रोस्टेट बढ़ने की समस्या आम है, लेकिन सर्दियों में खासतौर पर इससे संबंधित कठिनाइयां बुजुर्गों में बढ़ जाती हैं. ऐसे में उनका समय-समय पर टेस्ट, उपचार और डॉक्टर से परामर्श जारी रखें.