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जानिये क्या है राफेल से जुड़ा पूरा विवाद, कब कैसे तय हुआ सौदा

नयी दिल्ली : राफेल डील पर कांग्रेस सरकार को घेरने में लगी है. सदन में जोरदार हंगामा हो रहा है और कांग्रेस जांच की मांग पर अड़ी है. दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले से जुड़ी याचिकाएं खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा , राफेल डील पर सवाल उठाना गलत है. हमें रक्षा […]

नयी दिल्ली : राफेल डील पर कांग्रेस सरकार को घेरने में लगी है. सदन में जोरदार हंगामा हो रहा है और कांग्रेस जांच की मांग पर अड़ी है. दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले से जुड़ी याचिकाएं खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा , राफेल डील पर सवाल उठाना गलत है. हमें रक्षा सौदे में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला. फ्रांस सरकार और डसाल्ट ने भी इस पूरे समझौते पर कंपनी चुनने में भारत सरकार की किसी भी तरह की भागीदारी से इनकार किया है.

कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद भी जांच की मांग कर रही है. भारतीय जनता पार्टी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से माफी मांगने का दबाव बना रही है. जाहिर है राफेल का मामला लंबे वक्त तक चर्चा में रहेगा. ऐसे में जरूरी है कि राफेल से जुड़ी हर बात आप समझ सकें. पढ़ें राफेल से जुड़ी हर एक बात. कब क्या हुआ ?
कहां से हुई शुरुआत
अटलबिहारी वाजपेयी ने फ्रांस के साथ इस विमान को लेकर सौदा किया था. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 126 लड़ाकू विमान खरीदेने का फैसला किया था. लंबे अरसे तक यह सौदा अटका रहा कांग्रेस ने भी अपने कार्यकाल के दौरान इस सौदे को आगे बढ़ाने की कोशिश की. अगस्त 2007 में तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी की अगुवाई वाली रक्षा खरीद परिषद ने 126 एयरक्राफ्ट की खरीद को मंजूरी दे दी थी. बोली लगने की प्रक्रिया के बाद लड़ाकू विमानों की खरीद का आरएफपी जारी कर दिया गया. इस बोली में कई लड़ाकू विमानों ने हिस्सा लिया जिसमें अमेरिका की बोइंग एफ/ए-18ई/एफ सुपर हॉरनेट, फ्रांस का डसॉल्‍ट राफेल, ब्रिटेन का यूरोफाइटर, अमेरिका का लॉकहीड मार्टिन एफ-16 फाल्‍कन, रूस का मिखोयान मिग-35 और स्वीडन के साब जैस 39 ग्रिपेन जैसे एयरक्राफ्ट शामिल थे. इसमें जीत हुई डसाल्ट एविएशन के राफेल की.
इस विमान पर सहमति इसलिए बन पायी क्योंकि अन्य लड़ाकू विमान की तुलना में इसकी कीमत कम और तकनीक दमदार थी. इसके अलावा रख – रखाव में भी ज्यादा खर्च नहीं था. विमान तय होने के बाद इसकी जांच और तकनीक प्रशिक्षण हुआ साल 2011 तक यह प्रक्रिया चलती रही. साल 2012 में राफेल का बिडर में विजेता घोषित किया. उत्पादन के लिए बातचीत शुरू हुई लेकिन 2014 तक किसी मुद्दे तक नहीं पहुंच सकी. यहां तक आपने समझा कि कैसे अटल बिहारी वाजपेयी ने लड़ाकू विमान खरीदने का फैसला लिया और कांग्रेस इसे राफेल तक लेकर आयी.
नरेंद्र मोदी ने इस सौदे में क्या किया
नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद इस सौदे को आगे बढ़ाया. साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्रांस गए थे. फ्रांस दौरे के दौरान ही चर्चा थी कि राफेल पर बातचीत होगी हुआ भी वही राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद को लेकर समझौता कर लिया गया. रिपोर्ट्स की मानें तो समझौते के तहत भारत ने जल्द से जल्द उड़ान के लिए तैयार 36 राफेल लेने की बात की थी. इसके लिए 18 महीने की समय सीमा तय की गयी. इतना ही नहीं विमान आने के बाद रख – रखाव की जिम्मेदारी भी फ्रांस को दिया गया. साल 2016 में आईजीए हुआ. यहां तक सब ठीक था.
कांग्रेस के सवाल क्या हैं, क्यों उठा रही है मुद्दा
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल पर सवाल खड़े किये. आप कांग्रेस के सवाल ऐसे समझिये कि कांग्रेस दो सवाल खड़े कर रही है जिनमें से पहला है- कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यूपीए ने 126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ रुपये में सौदा तय किया था. मोदी सरकार सिर्फ 36 विमानों के लिए 58,000 करोड़ रुपये क्यों दे रही है. दूसरा सरकारी कंपनी HAL की जगह रिलायंस को इस डील में क्यों शामिल किया गया.
इन दो सवालों के साथ ही कांग्रेस का तर्क है कि नये समझौते के तहत एक राफेल विमान 1555 करोड़ रुपये का है जबकि हमने 428 करोड़ रुपये में डील तय कर ली थी. सरकार रिलायंस को फायदा पहुंचाने में लगी है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा, पीएम मोदी ने जानबूझ कर रिलायंस को फायदा पहुंचाने के लिए डील (Rafale Deal) के साथ छेड़छाड़ की है.
क्यों राफेल बन गया बड़ा मुद्दा
सदन में जब राफेल पर सवाल किया गया तो रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारत सरकार और फ्रांस सरकार के बीच हुए गोपनीय समझौते का जिक्र किया. इस पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन का जिक्र करते हुए कह दिया. जब मेरी उनसे बात हुई तो उन्होंने कहा, राफेल जेट विमान पर भारत के साथ उनका कोई भी गोपनीय समझौता नहीं हुआ है. मामले ने तूल पकड़ा तो फ्रांस की सरकार को बयान जारी कर राहुल के बयान का खंडन करना पड़ा.
इस बीच राफेल डील के विरोध में सरकार के खिलाफ यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी सरीखे दिग्गज भी आ गये. वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने दावा कर दिया है कि राफेल लड़ाकू विमान सौदा ‘इतना बड़ा घोटाला है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. ऑफसेट करार के जरिये अनिल अम्बानी के रिलायंस समूह को ‘दलाली (कमीशन)’ के रूप में 21,000 करोड़ रुपये मिले हैं. इस पूरे विवाद में आग में घी का काम किया फ्रांस्वा ओलांद के उस बयान में जिसमें उन्होंने अखबार को दिए इंटरव्यू में कह दिया अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस का नाम खुद भारत सरकार ने सुझाया था.

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