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रथयात्रा से संबंधित विवाद का समाधान होना बाकी

भुवनेश्वर: इस साल की रथयात्रा की तारीख 29 जून नजदीक आती जा रही है, लेकिन भगवान जगन्नाथ के भक्तों के रथों के ऊपर चढ़ने पर प्रतिबंध की सलाह से उत्पन्न विवाद का समाधान अभी तक नहीं हो पाया है. श्रद्धालुओं को वर्तमान में पंडों द्वारा भगवान बलभद्र, भगवान जगन्नाथ और देवी सुभद्रा के रथों पर […]

भुवनेश्वर: इस साल की रथयात्रा की तारीख 29 जून नजदीक आती जा रही है, लेकिन भगवान जगन्नाथ के भक्तों के रथों के ऊपर चढ़ने पर प्रतिबंध की सलाह से उत्पन्न विवाद का समाधान अभी तक नहीं हो पाया है. श्रद्धालुओं को वर्तमान में पंडों द्वारा भगवान बलभद्र, भगवान जगन्नाथ और देवी सुभद्रा के रथों पर चढ़ने की अनुमति दी जाती है.

विवाद 2011 में तब खडा हुआ जब लोगों को रथों के उपर चढ़ने की अनुमति देने को लेकर पुजारियों और पुलिस के बीच संघर्ष हुआ. 2012 में यह उस समय और गहरा गया जब एक अमेरिकी नागरिक की मंदिर पुलिस ने कथित तौर पर पिटाई कर दी और अगले साल जानी मानी ओडिसी नृत्यांगना इलेना सितारिस्ती से पुजारियों ने कथित र्दुव्‍यवहार किया.

श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) के प्रशासक अरविन्द पाधी ने बताया कि घटना को गंभीरता से लेते हुए मंदिर प्रशासन ने शंकराचार्य के विचार मांगे जिन्हें 12वीं सदी के मंदिर की निर्णय करने वाली इकाई का प्रमुख माना जाता है. शंकराचार्य से एसजेटीए को इस बारे में सलाह देने को कहा गया था कि क्या गैर हिन्दू भी रथों पर चढ़ सकते हैं और देवों को स्पर्श कर सकते हैं.

इस चलन की पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती और राजा दिव्यसिंह देव ने निन्दा की थी, जिन्होंने इसे महापाप करार दिया. गजपति के राजा दिव्यसिंह देव के नेतृत्व वाली श्री जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन समिति ने पुरी के शंकराचार्य द्वारा सुझाए गए प्रतिबंध का समर्थन किया है.

शास्त्रों और पुराणों का उल्लेख करते हुए पुरी के शंकराचार्य ने अपनी सिफारिश में स्पष्ट किया है कि मनोनीत पुजारियों और मंदिर प्रशासन के अधिकारियों के अतिरिक्त कोई और व्यक्ति रथों पर नहीं चढ़ सकता. गोवर्धन पीठ के एक अधिकारी ने बताया कि मत पर पहुंचने से पहले शंकराचार्य ने विभिन्न धार्मिक विशेषज्ञों और मठों के प्रमुखों से चर्चा की.

देव ने कहा कि शंकराचार्य का मत निर्णायक है और सरकार को इसे खारिज नहीं करना चाहिए. बारहवीं सदी के मंदिर के रिकॉर्ड ऑफ राइट्स (आरओआर) के अनुसार रस्‍मों और परंपराओं के मामले में शंकराचार्य का निर्णय अंतिम होना चाहिए. श्री जगन्नाथ मंदिर कानून, 1955 के अनुसार राज्य सरकार, प्रबंधन समिति से अधिक शक्तिशाली है.

सरकार की ओर से फैसला लेने में हो रहे विलम्ब से आशंका है कि प्रतिबंध से भगवना जगन्नाथ के भक्तों का असंतोष भड़क सकता है जो अपने ईश्वर से भावनात्मक रुप से जुडे हैं. एक वरिष्ठ कानून अधिकारी ने कहा, यह एक संवेदनशील मुद्दा है. सरकार को इससे जुडे सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद निर्णय करना चाहिए. दायतापाती पुजारी शंकराचार्य के मत के खिलाफ हैं और उन्होंने धमकी दी है कि यदि इस कदम को वापस नहीं लिया गया तो वे रथयात्रा समारोह का बहिष्कार करेंगे. वार्षिक रथयात्र के दौरान दायतापाती पुजारी देवों के बाहर आने के दौरान परंपरागत रुप से प्रभारी होते हैं.

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