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सुप्रीम कोर्ट में हिंदू संगठनों ने कहा, अयोध्या मामला शुद्ध रूप से ‘संपत्ति विवाद”

नयी दिल्ली : हिंदू धार्मिक संगठनों ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद शुद्ध रूप से एक ‘संपत्ति विवाद’ है और इसे वृहद पीठ को भेजने के लिए राजनीतिक या धार्मिक संवेदनशीलता को आधार नहीं बनाया जा सकता. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति […]

नयी दिल्ली : हिंदू धार्मिक संगठनों ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद शुद्ध रूप से एक ‘संपत्ति विवाद’ है और इसे वृहद पीठ को भेजने के लिए राजनीतिक या धार्मिक संवेदनशीलता को आधार नहीं बनाया जा सकता. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की तीन सदस्यीय विशेष खंडपीठ के समक्ष मूल वादी गोपाल सिंह विशारद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने यह दलील दी. विशारद 1950 में इस संबंध में दीवानी वाद दायर करने वाले पहले वादकारों में शामिल थे.

इसे भी पढ़ेंः राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मुद्दा पूरी तरह ‘‘भूमि विवाद’ का मामला : सुप्रीम कोर्ट

सुनवार्इ के दौरान साल्वे ने कहा कि इस मामले को वृहद पीठ को सौंपने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि तीन सदस्यीय खंडपीठ पहले से ही इस पर विचार कर रही है. साल्वे ने कहा कि शीर्ष अदालत में प्रचलित और मौजूदा परंपरा के अनुसार किसी भी हार्इकोर्ट की पूर्ण पीठ के आदेश के खिलाफ दायर अपील शीर्ष अदालत में दो न्यायाधीशों की पीठ की बजाय तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष ही निर्णय के लिए सूचीबद्ध होती हैं.

राम लला विराजमान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के पराशरण ने भी साल्वे की दलील का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि इस मामले को सिर्फ तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ द्वारा ही सुना जाना चाहिए. इलाहाबाद हार्इकोर्ट के 30 सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर शुक्रवार को सुनवाई अधूरी रही. अब इस मामले में 15 मई को आगे सुनवाई होगी.

प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली इस तीन सदस्यीय खंडपीठ के पास चार दीवानी वादों में हार्इकोर्ट के बहुमत के फैसले के खिलाफ 14 अपीलें विचारार्थ लंबित हैं. हार्इकोर्ट ने अपने फैसले में विवादित 2.77 एकड़ भूमि को तीन बराबर हिस्सों में सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बांटने का आदेश दिया था.

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