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बाढ़ का पानी नहीं निकलने से खरीफ फसल हुई बर्बाद

जिले का एक मात्र प्रखंड घाटकोसुम्भा वासियों को बाढ़ की परेशानी झेलनी पड़ती है. गंगा नदी के उफान पर आने से प्रखंड की हरोहर नदी की धारा उल्ट जाती है.

शेखपुरा. जिले का एक मात्र प्रखंड घाटकोसुम्भा वासियों को बाढ़ की परेशानी झेलनी पड़ती है. गंगा नदी के उफान पर आने से प्रखंड की हरोहर नदी की धारा उल्ट जाती है. इस बार घाटकोसुम्भा प्रखंड में बाढ़ के कारण धान ,मकई,अरहर की फसलें पानी में डूब कर पूरी तरह से नष्ट हो गई है. पिछले डेढ़ माह से खेतों के डूबे रहने के कारण धान और मकई की फसलों के साथ ही अब दलहनी फसलों का भी नुकसान झेलने की संभावना सामने दिख रही है. इस सम्बन्ध में घाटकोसुम्भा गांव के किसान शिवशंकर महतों का कहना है कि पानी नहीं निकलने से खेतों में दलहनी फसलें लगने में काफी पिछड़ जाने की उम्मीद हैं. जिससे दाल के कटोरा के रूप में अपनी पहचान रखने वाले इस घाटकोसुम्भा प्रखंड में दलहनी फसलोंकी उपज भी बुरी तरह से प्रभावित होगी.अभी खेतों से पानी निकलने में ही एक महीने से अधिक का समय लगेगा.जिसके कारण रबी फसल की बुआई में देर होने की संभावना से प्रखंड के किसान परेशान हैं. दलहनी फसलें किसानों के होती है वरदान

घाटकोसुम्भा प्रखंड के डीह कोसुम्भा के पप्पू महतों ने कहा कि किसानों के जीवन यापन पूरी तरह से दलहनी फसलों पर निर्भर करता है. मसूर ,चना , मटर, तेलहनीं फसलें राई,सरसों,तीसी कम लागत में अच्छा उत्पादन दे जाता है. इससे किसानों की अच्छी आय होती है.जिससे किसानों के घर –परिवार के सारे खर्चे चलते हैं. चाहे वह बच्चों की पढ़ाई की बात हो या शादी विवाह जैसे बड़े आयोजन दलहनी फसलें वरदान होती है. इस बार खरीफ फसलें धान, मकई, अरहर बाढ़ में डूब कर पूरी तरह से नष्ट हो गया. अब दलहनी रबी तिलहन फसलों की बारी आई तब अनुमान लगाया जा रहा है कि अधिक पानी के कारण समय से खेत तैयार नहीं होंगे. अगर समय से लगौनी नहीं हुई तो पैदावार नहीं होगा जिसके कारण किसान को खाने –पीने की समस्या खड़ी हो जायगी.

लोगों की परेशानी नहीं हो रही कम

गंगा के उफान से हरोहर नदी के उफनाने पर कारण आई बाढ़ से फसलें नष्ट होने के साथ ही पशुपालकों के सामने चारे की सबसे बड़ी समस्या है. बाढ़ में जिला प्रशासन की ओर से एक दो दिन प्रभावित गाँवों में पशुचारा बांटा गया. जो ऊंट के मुहं में जीरा वाली कहावत को चरितार्थ कर गया. अब डेढ़ महीना हो चूका है ऐसे में पशुपालकों को पशुचारे की सबसे ज्यादा कठिनाई झेलनी पड़ रही है. उधर खेतों में पानी जमा है.

सरकार की कागजी कारवाई में बूरी तरह फंसे प्रखंड के हजारों किसान

घाटकोसुम्भा प्रखंड के किसान बाढ़ के कारण बड़ा नुकसान झेल रहे हैं. लेकिन जन प्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यशैली के कारण 32 गांवों की करीब 35 हजार की आबादी बेबसी में जीवन जीने को मजबूर हैं. इस प्रखंड को सरकार की फाइलों में बर्ष 2008 को जलजमाव क्षेत्र घोषित कर दिया गया. जिसके बाद बाढ़ आपदा में मिलने वाले सहायता राशि से इन्हें वंचित कर दिया गया. इसके बाद अब घाटकोसुम्भा प्रखंड के लोगों को बाढ़ राहत के नाम पर प्लास्टिक की शीट और पशुचारे का वितरण की जाती है. वहीं, जिस हरोहर नदी से घाटकोसुम्भा के साथ ही लखीसराय जिला का बड़हिया प्रखंड डूबता है उसे बाढ़ प्रभावित बताकर सहायता दी जा रही है. एक नदी के दो किनारों से फैले पानी में दोरंगी नीति घाटकोसुम्भा की बड़ी आबादी पर भारी पड़ रही है. इसकों लेकर अब प्रखंड के लोग आंदोलन पर उतर गए हैं. घाटकोसुम्भा को बाढ़ग्रस्त घोषित करने की मांग को लेकर धरना- प्रदर्शन कर चुके हैं.10 हजार लोगों का हस्ताक्षर युक्त ज्ञापन भी डीएम को सौंप चुके हैं.

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